तीन राज्यों से गुजरती है 84 कोसी परिक्रमा
इस यात्रा को पूरा करने में कम से कम एक सप्ताह और अधिक से अधिक 12 दिन लगते हैं। यात्री अपने साथ राशन और बिस्तर लेकर चलते हैं। जो लोग इस यात्र में नहीं ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, बल्लभगढ़। मलमास (अधिक मास) में पूजा और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, इसलिए इस महीने में लोग कांसे के बर्तन में रखकर अन्न, कपड़ा और गुड़ ब्राह्मणों को दान करते हैं। श्रद्धालु ब्रज 84 कोस (एक कोस= साढ़े तीन किलोमीटर) की पैदल चलकर परिक्रमा भी कर रहे हैं। यात्रा हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई जिलों से होकर गुजरती है।
गांवों में भी महिला, बच्चे रोजाना परिक्रमा और कीर्तनों का आयोजन करते हैं। मलमास का महीना 15 जून अमावस्या से 16 जुलाई अमावस्या तक है। वैदिक संस्कृति के मुताबिक चंद्र मास 28 दिन का होता है और सूर्य मास 30 दिन का होता है।
इस यात्रा को पूरा करने में कम से कम एक सप्ताह और अधिक से अधिक 12 दिन लगते हैं। यात्री अपने साथ राशन और बिस्तर लेकर चलते हैं। जो लोग इस यात्र में नहीं गए हैं, वे अपने-अपने गांवों में गांव की परिक्रमा करते हैं और रोजाना मंदिरों में कीर्तन करते हैं।
सूर्य और चंद्र मास के अंतर को पूरा करने के लिए हर तीसरे वर्ष अधिक मास (मलमास) आता है। इस मास में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है, इसलिए इस महीने में भक्ति का खास महत्व होता है। मलमास के महीने में भक्तों को भगवान विष्णु और सूर्य की पूजा करनी चाहिए।
यही वजह है कि ब्रज 84 कोस की परिक्रमा का खास महत्व है। यह परिक्रमा हर तीसरे वर्ष मलमास के महीने में आयोजित की जाती है। इस बार भी ग्रामीण क्षेत्र से हजारों की संख्या में लोग ब्रज 84 कोस की पैदल चल कर परिक्रमा करने के लिए गए हैं। यह परिक्रमा बंचारी गांव के दाऊ जी मंदिर से शुरू होती है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।