दिल्ली की इस हवेली में पंडित नेहरू और कमला की हुई थी शादी -- पढ़े खबर
सीताराम बाजार की मुख्य सड़क पर एक गली हकसर की हवेली की ओर खुलती है, इस हवेली में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की शादी हुई थी।
नई दिल्ली [विजयालक्ष्मी] । पुरानी दिल्ली की शानशौकत बयां करने वाली हवेलियों की दरों दीवारें आज जर्जर हो चुकी हैैं। लेकिन कुछ तो ऐसी बात है इन हवेलियों की दीवारें, दरवाजों, छतों, झरोखों में जो इसमें लोगों की उत्सुकता पैदा कर देता है। राहगीर एक पल के लिए इन हवेलियों की भव्यता में खो जाता है। जाहिर है पुरानी हवेलियों का रोचक इतिहास है जिसे सुन कर कुछ देर के लिए सही लोग फ्लैशबैक में चले जाते है और इनकी भव्यता को जी लेते हैैं। दिलकश हवेलियों को देख कर लोगों के दिलों में उठते जज्बात को देखते हुए अब इनके अस्तित्व को बचाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जरुरत है।
कुछ लोगों ने हवेलियां को मल्टीकॉम्पलैक्स में तब्दील कर दिया तो कुछ खत्म होने के कगार पर है। लेकिन अब अच्छी खबर है पुरानी हवेलियों की दशा अब सरकार सुधारना चाहती है और इसे सहेजने की कवायद शुरू करने जा रही है। सिविक एजेंसियों ने जहां इसके लिए इंटेक और आगा खां फाउंडेशन से मदद मांगी है वहीं, सरकार ने अब इनका सर्वे शुरू किया है। वैसे तो पुरानी दिल्ली में कुछ 500 हवेलियां हैैं लेकिन कुछ ऐसी हवेलियां है जिनकी बनावट जितनी सुंदर है उतनी रोचक इनके मालिकान की कहानी।
जहां प्रथम प्रधानमंत्री की हुई थी शादी
सीताराम बाजार की मुख्य सड़क पर एक गली हकसर की हवेली की ओर खुलती है, इस हवेली में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की शादी हुई थी। सन 1850-1900 में कई कश्मीरी पंडित पुरानी दिल्ली आए थे, जिनमें कमला नेहरू, उनकी मां राजपति कौल और उनके पिता जवाहर मल कौल भी शामिल थे। उसी दौरान यह हवेली भी बनवाई गई ।
8 फरवरी 1916 में जवाहर लाल नेहरू इस हवेली में बारात लेकर आए थे। इसी हवेली में धूमधाम से शादी की गई थी। 1960 में कौल परिवार ने इस हवेली को बेच दिया जिसके बाद इसमें दुकाने खुल गई। 1983 में इंदिरा गांधी भी इस हवेली को देखने आई थी और उन्होंने यहां आधा घंटा बिताया था। इस हवेली में अब शूटिंग भी होती है।
नमक हराम की हवेली
बल्लीमारन के पंडित घासीराम के कूचे में एक हवेली है, जो नमक हराम की हवेली के नाम से भी जानी जाती है। 1750 के आस पास में निर्मित हुई इस हवेली का अब इसका कुछ ही भाग शेष बचा हुआ है। इस हवेली का इतिहास भी रोचक है। दरअसल इस हवेली में मुंशी भवानी शंकर रहा करते थे। भवानी शंकर खत्री इंदौर के राजा यशवंत राव होलकर की सेना में मुख्यपद पर थे। सन 1803 में यशवंत राव होलकर और भवानी के बीच अनबन हो गई और वो वापस दिल्ली आ गए और अंग्रेजों के साथ मिल गए।
कहा जाता है कि राव होलकर की सेना की सारी जानकारी भवानी शंकर ने अंग्रेजों को दे दी। जिसका नतीजा राव होलकर की युद्ध में हार हुई। अंग्रेजों ने भवानी को इसका इनाम भी दिया जिसमें बल्लीमारन में एक भव्य हवेली भी शामिल थी। आसपास के लोगों को जब भवानी शंकर के बारे में पता चला तो उन्हें लोग नमक हराम कहने लगे। जिसके बाद से इस हवेली का नाम नमक हराम पड़ गया। मौजूदा समय में इस हवेली की हालत बेहद खराब है। हवेली के कुछ हिस्से पर लोगों ने घर बना लिए तो कुछ पर दुकानें खोल दी है।
हैदर कूली खान की हवेली
फतेहपुरी मस्जिद के पास ही कटरा बरियान जिसमें हैदर कुली खान की हवेली है। यह हवेली मुगलकाल शैली का खूबसूरत उदाहरण है। मौजूदा समय में इस हवेली के अब कुछ ही अंश शेष है। यहां हवेली अब बाजार में तब्दील हो चुका है। लेकिन आज भी इसे हैदर कूली खान ही नाम से जाना जाता है। हैदर कूली खान के बारे में लोग कहते हैैं कि वे शासक मोहम्मद शाह के सेना में शामिल थे, लेकिन कुछ लोग मानते है कि वे कूली थे लेकिन और उन्होंने राजा के बेटे की जान बचाई थी जिसके इनाम में शाहजहानाबाद में हवेली मिली थी।
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