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    ठप ड्रेन-सिस्टम फेल: डूबते शहरों को दावों का सहारा, रिपोर्ट में पढ़ें चौंकाने वाले फैक्ट्स

    दिल्ली-एनसीआर में मानसून के दौरान जलभराव एक गंभीर समस्या है क्योंकि यहां की ड्रेनेज व्यवस्था दशकों पुरानी है और बढ़ती आबादी के लिए अपर्याप्त है। सरकारें आश्वासन देती हैं, लेकिन जनता जानती है कि स्थिति खराब है। पुराने मास्टर प्लान छोटी आबादी के लिए बने थे, जबकि अब आबादी कई गुना बढ़ गई है। विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी भी समस्या को बढ़ाती है। 

    By Pooja Tripathi Edited By: Pooja Tripathi Updated: Thu, 26 Jun 2025 06:24 PM (IST)
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    इस बार मानसून आएगा तो शहर डूबेगा नहीं, इन दिनों सरकार की ओर से इसका आश्‍वासन दिया जा रहा है। लेकिन पब्लिक सब जानती है, उसे गले ये बात सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी है। स्‍वाभाविक है, वर्तमान सरकार, पूर्ववर्ती सरकारों के कारण बिगड़ी स्थितियों को सुधारने के कदम बढ़ा रही है।

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    लेकिन दिल्‍ली का मर्ज इतना आसान नहीं है। यहां का ड्रेनेज सिस्‍टम अब से पांच दशक पहले बना, तब से दिल्‍ली की आबादी तीन-चार गुना बढ़ चुकी है। अब इसमें ड्रेनेज सिस्‍टम का क्‍या दोष है, किसी पर भी अधिक बोझ पड़ेगा तो उफन कर बाहर ही आएगा।

    और बरसात में तो जहां पानी जमीन में जाना चाहिए वो कंक्रीट से टकराकर नालियों में भटककर वक्‍त के साथ खुद ही खत्‍म हो जाता है। लोग मानसून आने पर झूमते हैं बेसब्री से इंतजार करते हैं राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लोग डरते हैं कि बारिश आई तो लबालब जलभराव वाली सड़कों पर वाहन खींचना पड़ेगा, जाम में फंसना पड़ेगा।

    शहर की ये पीड़ा और उनके कष्‍ट की ये अवधारणा यूं ही नहीं बनी है, हर साल दिल्‍ली डूबती है। क्‍योंकि जब तक नया ड्रेनेज मास्‍टर प्‍लान नहीं होगा तब तक शहर के हालात ठीक नहीं होंगे। लेकिन इस पर सिर्फ मानसून आवागमन के समय ही चर्चा और चिंता होती है।

    अब सवाल यही है कि आखिर शहरवासियों को जलभराव जैसे हालात के डर से कैसे निकालें? अब तक नया ड्रेनेज मास्टर प्लान क्यों नहीं बन पाया? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ड्रेनेज व्यवस्था कई सरकारी एजेंसियों के जिम्‍मे क्‍यों रहे इसे सिंगल विंडो सिस्‍टम की तरह क्‍यों नहीं किया जा सकता?

    इसी की पड़ताल हमारा आज का मुद्दा है :

    क्या आप मानते हैं कि दिल्ली समेत एनसीआर में मानसून में जलभराव रोकने के लिए ड्रेनेज मास्टर प्लान जरूरी है?

    क्या दिल्ली में ड्रेनेज व्यवस्था कई एजेंसियों के हाथ में होना प्रभावी ड्रेनेज मास्टर प्लान बनाने में एक बड़ा गतिरोध है?

    ठप ड्रेन, सिस्‍टम फेल

    हम रहते दिल्‍ली-एनसीआर में हैं लेकिन यहां की सिविक समस्‍याएं ही मुद्दों से कम नहीं हैं, क्‍योंकि समस्‍याओं में भी विभाग और सरकारों के इतने पेंच अटक जाते हैं, काम गति पकड़ नहीं पाता, फिर भले आबादी दो गुना चार गुना होती रहे, या योजना का बजट।

    दिल्‍ली जलभराव से डरती है क्‍योंकि यहां जभराव से बुरा हाल हो जाता है, लोग घंटों जाम में फंसते हैं, घरों में पानी भर जाता है, रहना मुश्किल हो जाता है।

    ये बदहाली कमोबेशन एनसीआर के शहरों की भी है, कहीं भी ड्रेनेज मास्‍टर प्‍लान चार-पांच दशक से बना ही नहीं है, तबसे आबादी दो गुना तो बढ़ ही गई है। अब इसी से विभाग और सरकारों की अनयमनस्‍कता, गैरजिम्‍मेदारान रवैया का अंदाजा लगाया जा सकता है।

    दिल्‍ली :

    बना था ड्रेनेज मास्टर प्लान-2021 :

    • क्‍या करना था : नाले-नालियों में जरूरी बदलाव होने थे।
    • क्‍या किया : पीडब्ल्यूडी ने शहर को तीन बेसिनों नजफगढ़, बारापुला और ट्रांस-यमुना में विभाजित भी किया।
    • अधर में : 4 साल बाद भी अधूरा है ड्रेनेज मास्टर प्लान
    • वास्‍तविकता : 80% ही ड्राफ्ट तैयार हुआ है इस काम का।
    • दावा : जुलाई तक ड्राफ्ट तैयार करने का पूरा हो सकता है काम


    पहले कब बना मास्‍टर प्‍लान :

    • 1976 में 60 लाख आबादी के लिहाज से बनाया गया था मास्टर प्लान
    • 5 गुना बढ़ चुकी है तब से दिल्‍ली की आबादी।
    • 50 मिमी वर्षा तक संभाल पाने में सक्षम है तबका ड्रेनेज सिस्‍टम।
    • 201 प्राकृतिक नाले, 3 प्राकृतिक जल निकासी बेसिन के जरिये यमुना में गिरते हैं।

     

     

    नाला : ड्रेन मिलते हैं

    नजफगढ़ : 123

    बारापुला : 44

    ट्रांस यमुना बेसिन : 34

    ड्रेनेज मास्टर प्लान में ये होने हैं काम :

    • जल निकासी में सुधार, एक समय-सीमा में
    • 50-55 वर्षों के लिए जल निकासी के संदर्भ में एक मास्टर प्लान तैयार करना।
    • नाली का स्लोप की गुणवत्‍ता, नालियों की कनेक्टिविटी, कहां जुड़नी है।

    गौतमबुद्ध नगर :

    • कब बना था पहला ड्रेनेज मास्‍टर प्‍लान : 1991
    • आबादी के हिसाब से बना : 10 लाख
    • अब आबादी : 22 लाख
    • वर्षा की क्षमता : 80 एमएम वर्षा के अनुरूप तैयार।
    • अधिकतम वर्षा हुई थी : अगस्‍त, 2024 में 53 मिमी

    बन रहा मास्‍टर प्‍लान

    2041 मास्टर प्लान के तहत ड्रेनेज सिस्टम पर काम होगा, मार्च में प्रदेश सरकार ने इसे स्वीकृति दी थी। अभी कार्ययोजना तैयार की जा रही है।

    • छोटे नाले : 150
    • बड़े नाले : 5
    • नालों से जुड़ा नहीं क्षेत्र : 25%

    किन विभागों के पास जिम्‍मेदारी

    डासना नाला, आरसीसी नाला, कोट स्केप नाला, आइटीबीपी नाला ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अंतर्गत है। हवेलिया नाला सिंचाई विभाग के अंतर्गत है। 

    गाजियाबाद

    • कब बना था पहला ड्रेनेज मास्‍टर प्‍लान : 2001
    • आबादी के हिसाब से बना : 3.4 लाख
    • अब आबादी : 45 लाख
    • वर्षा की क्षमता : 75 एमएम वर्षा के अनुरूप तैयार।
    • अधिकतम वर्षा हुई थी : अगस्‍त, 2024 में 53 मिमी
    • बड़े नाले : 8
    • छोटे नाले : 101
    • जीडीए के पास केवल 5 नाले हैं
    • नगर निगम के पास 104 नाले हैं

     नालों से जुड़ा नहीं क्षेत्र : 20%

    गुरुग्राम

    • कब बना था पहला ड्रेनेज मास्‍टर प्‍लान : 1996
    • आबादी के हिसाब से बना : 7 लाख
    • अब आबादी : 40 लाख
    • वर्षा की क्षमता : 50 एमएम वर्षा के अनुरूप तैयार।
    • अधिकतम वर्षा हुई थी : वर्ष 2024 में 157 मिमी

     

    • नालों से नहीं जुड़ा क्षेत्र : 25%
    • बड़े नाले : 3
    • तीन बड़े नाले : नाम और क्षमता (क्यूसिक)
    • लेग- 1 : 541
    • लेग- 2 : 1305
    • लेग-3 - : 3702
    • छोटे नाले : 125

     

    कितने नाले किसके पास

    • नगर निगम: 65
    • सिंचाई विभाग : 1
    • एनएचएआइ: 4
    • एचएसवीपी : 25
    • जीएमडीए : 30

    फरीदाबाद

    • कब बना था पहला ड्रेनेज मास्‍टर प्‍लान : 1986
    • आबादी के हिसाब से बना : 10 लाख
    • अब आबादी : 30 लाख
    • वर्षा की क्षमता : 50 एमएम वर्षा के अनुरूप तैयार।
    • अधिकतम वर्षा हुई थी : वर्ष 2024 में 64 मिमी

     

    • छोटे नाले : 45
    • बड़े नाले : 8
    • नालों से जुड़ा नहीं क्षेत्र : 30%

    शहर की बसावट के बाद ड्रेनेज मास्टर प्लान लागू करना जटिल काम

    देश की राजधानी दिल्‍ली का ड्रेनेज मास्टर प्लान 50 साल पुरानी व्यवस्था पर चलना अच्छी बात नहीं है। पुरानी व्यवस्था के तहत जलनिकासी व्यवस्था होने से कई तरह की समस्याएं हो रही हैं।

    दिल्ली के जो वर्तमान हालात हैं, उसमें बेहतर जलनिकासी व्यवस्था की उपयोगिता दिल्ली के लिए अधिक बढ़ जाती है। इतने लंबे समय तक बेहतर जल निकासी की व्यवस्था क्यों नहीं बनाई गई, इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि शायद पहले इसकी इतनी जरूरत नहीं रही होगी।

    अगर बेहतर ड्रेनेज सिस्टम के न होने से नुकसान की बात करें तो इससे दो तरीके से नुकसान पहुंच रहा है। एक तो लोगों को आवागमन में परेशानी होती है, पानी भर जाने से उनके वाहन खराब होने से नुकसान होता है, दूसरा सड़कें खराब होती हैं, क्योंकि बिटुमिनस सड़क के लिए पानी सबसे बड़ा दुश्मन है।

    पानी भरने से सड़कों की ताकत कम हो जाती है और वह जल्दी टूट जाती हैं, सड़कों पर गड्ढे हो जाते हैं, इससे तमाम तरह की और समस्याएं खड़ी होती हैं। अब अगर यह बात की जाए कि इसे कैसे लागू किया जाए तो इसके दो प्रमुख तकनीकी पहलू हैं।

    एक मुद्दा यह है कि इसे शहर की वर्तमान बसावट के हिसाब से लागू किया जाए, दूसरा है कि या फिर इस तरह से लागू किया जाए कि जिससे शहर को अधिक लाभ मिल सके। अब यह दोनों चीज अलग-अलग हैं।

    एक तो यह है कि शहर की बनावट के हिसाब से इसे लागू किया जाता है तो इससे शहर को उतना लाभ नहीं मिल सकता है जितना कि उस लिहाज से लागू किया जाए कि जिसकी ज्यादा जरूरत है। एक तकनीकी विशेषज्ञ की हैसियत के तहत बात करें तो शहर के लिए अधिक लाभ वाली परियोजना पर काम करने में काफी तोड़फोड़ हो सकती है।

    इस तरह की योजना को लागू करने को कई बार उचित नहीं माना जा सकता है। क्योंकि ऐसा करने से बहुत सारी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं और योजना अधर में लटक सकती है।

    अब दूसरा मुद्दा है कि शहर की बसावट के हिसाब से इसे लागू किया जाए। इसी पर काम हो रहा है। इसमें भी लंबी प्रक्रिया है। पहले दिल्ली भर के लिए डिटेल रिपोर्ट तैयार होगी और फिर सभी संबंधित एजेंसियां अपने अपने क्षेत्र के लिए प्लान बनाएंगी या बनवाएंगी। 

    दिल्ली की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए इसमें तमाम पहलुओं पर तकनीकी प्रविधानों पर काम होना है, काम हो रहा है। बहरहाल लोक निर्माण विभाग पिछले चार साल से इस पर काम कर रहा है।

    इसमें एक बात जरूर है कि इसे लागू करने में कई चुनौतियां भी हैं इसी के चलते इसमें विलंब भी हुआ है। जहां तक इसकी जरूरत और उपयोगिता की बात है तो किसी भी शहर के लिए ड्रेनेज मास्टर प्लान भी उतना ही जरूरी है जितना शहर के लिए सड़कों और गलियों की जरूरत होती है।

    किसी भी शहर के ड्रेनेज मास्टर सबसे पहले बनता है। क्योंकि बाद में इसे बनाना और लागू करना कठिन हो जाता है। दिल्ली की स्थिति ऐसी है कि यहां पर कुछ इलाका निचले भाग में है कुछ ऊंचाई पर स्थित है ऐसे में इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है।

    क्योंकि जल निकासी को लेकर बरसात के समय समस्या खड़ी होती है। हालांकि व्यवस्थाएं की गई हैं मगर कई बार वे भी नाकाफी साबित हो जा रही हैं। अगर यह कहा जाए कि पूरी दिल्ली प्लान में नहीं बसी है तो गलत होगा। शहर का बहुत सा भाग प्लान में बसा है सब कुछ वहां व्यवस्थाएं प्लान से की गई हैं।

    कुछ इलाका ऐसा भी है जहां पर सभी कुछ प्लान के हिसाब से नहीं है ऐसे में इन इलाकों के कारण भी समस्या खड़ी होती है। अगर पूर्व में जाएं तो उस समय बहुत सा इलाका नगर निगम के तहत नहीं आता था।

    जिसके चलते उनके आसपास और गांव के इलाकों में डेवलपमेंट को लेकर व्यवधान रहा। इसी तरह बहुत सी अनधिकृत कालोनियां भी बस गईं और बढ़ती चली गईं। जिनके लिए जल निकासी व्यवस्था कामचलाऊ आधार पर बनाई गई या फिर बनाई ही नहीं गई। जिसके कारण भी समस्याएं खड़ी हो रही हैं।

    डॉ. ओपी त्रिपाठी, पूर्व प्रमुख अभियंता, लोक निर्माण विभाग ने जैसा वीके शुक्‍ला को बातचीत में बताया

     

    मास्टर प्लान की अवधारणा के अनुरूप ड्रेनेज सिस्टम का प्रविधान जरूरी 

    देश की राजधानी सहित एनसीआर के प्रमुख शहरों गुरुग्राम, फरीदाबाद, रेवाड़ी, सोनीपत, गाजियाबाद, नोएडा सहित अन्य शहरों की सड़कें वर्षा होने पर जलभराव में डूबना बेहद ज्वलंत व संजीदा मुद्दा है।

     

    गुरुग्राम और नोएडा जैसे शहर भी जलभराव में डूबते हैं, जबकि ये नए शहर हैं। और साइबर सिटी के रूप में विकसित हुए हैं। यह तो किसी भी शहर के विकास की मूलभूत जरूरी सुविधा होती है कि शहर में जलभराव न हो, मास्टर प्लान बनाते समय हम इसका ही सटीक प्रविधान करना या तो भूल जाते हैं अथवा औपचारिकता करते हैं।

    ब्रिटिश काल के अधिकारियों से ही हम सीख ले लेते तो कभी भी जलभराव न होता। ब्रिटिश काल में हर शहर के मास्टर प्लान में योजनाबद्ध तरीके से ड्रेनेज सिस्टम विकसित होता था और ग्रामीण अंचल में रिंगबंध होते थे। यह देखा जाता था कि पानी कहां एकत्रित होता है, आता कहां से है और इसे कौन सी दिशा में जाना चाहिए।

    इसका बहुत अच्‍छा उदाहरण एनआइटी यानी न्यू इंडस्ट्रियल टाउन है। फरीदाबाद के एनआइटी का डिजाइन जर्मन आर्किटेक्ट निसन ने बनाया था। उस दौरान आर्किटेक्ट ने खुली चौड़ी सड़कें, हर मोहल्ले में पार्क के साथ-साथ मास्टर प्लान के तहत ड्रेनेज सिस्टम भी जोर दिया गया।

    बड़े चौड़े नाले बनाए गए, अरावली क्षेत्र ऊंचाई पर है, वहां से वर्षा का पानी आएगा तो उसे कैसे बड़खल क्षेत्र में रोकना है। यह पानी बड़खल में रुकता था तो यहां सुंदर भव्य झील बन गई। एसजीएम नगर में रिंगबंध होता था और बाकी पानी जो एकत्रित होता था तो उसके लिए हर क्षेत्र में बनी नालियां, यह नालियां आगे बड़े नालों में जुड़ी होती थीं। 

    यह बड़े नाले, बंध आगे बुढ़िया नाले से जुड़े और यह नाले आगे कहीं नहरों से जुड़े और कहीं यमुना से। ऐसे में वर्षा होने पर पानी तो यहां एकत्रित होता भी नहीं था और ग्रामीण अंचल में जहां एकत्रित होता था, वहां तालाब, जोहड़ के लिए जगह छोड़ी गई।

    यह वर्षा जल संचयन का काम करते थे, जिससे भूजल का स्तर बरकरार रहता था, पर बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों को छोड़ दिया जाए तो बाद की राज्य सरकारों के प्रशासनिक अधिकारियों ने मास्टर प्लान में ड्रेनेज सिस्टम को महत्व नहीं दिया।

    जो जोहड़, तालाब बनाए गए थे, उन पर, नालों पर अतिक्रमण कर लिया गया। साइबर सिटी में घाटा में जोहड़ों की जमीन पर अतिक्रमण इसका उदाहरण है।

    कुल मिलाकर इस मामले में अधिकारियों का नकारापन, उनकी जवाबदेही न होना और भ्रष्टाचार होना है। इसे दूर करने के लिए मास्टर प्लान की जो अवधारणा है, उसके मुताबिक ही 100 फीसद ड्रेनेज सिस्टम का प्रविधान करना ही होगा और इसकी निर्धारित समय पर पूरी तरह से साफ-सफाई करने और फिर ड्रेनेज सिस्टम को आगे बड़े नालों से और इन नालों से पानी शोधित करके नहरों, नदियों में डालने से इसका समाधान निकलेगा।

    अब इसमें हरियाणा सरकार ने इस वर्ष से एक अच्छी पहल की है कि ड्रेनेज सिस्टम को सिंचाई विभाग से अलग कर दिया है। क्योंकि पहले सिंचाई विभाग के अधिकारी यह कहते थे कि हमारे पास तो ड्रेनेज के लिए बजट ही नहीं है।

    अब ड्रेनेज पर 100 फीसद ध्यान दिया जाएगा और इसके आने वाले दिनों में अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद है, साथ ही ड्रेनेज से जुड़े अधिकारियों को अपनी नैतिक जिम्मेदारी भी समझनी होगी और उनकी जवाबदेही भी सुनिश्चित करने से समस्या का समाधान निकलेगा।

    डॉ. एनसी वधवा, पूर्व आयुक्त, फरीदाबाद नगर निगम ने जैसा बातचीत में सुशील भाटिया को बताया