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    ससुराल में बहु का यौन उत्पीड़न भी 498ए के तहत क्रूरता, अलग ट्रायल की जरूरत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    Updated: Tue, 23 Dec 2025 05:26 AM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम फैसला देते हुए कहा कि ससुराल पक्ष द्वारा बहू का यौन उत्पीड़न भी आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता की श्रेणी में आता है और इसक ...और पढ़ें

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    सांकेतिक तस्वीर।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। ससुराल में महिला से क्रूरता व यौन उत्पीड़न के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम निर्णय सुनाया कि ससुराल पक्ष द्वारा बहू का यौन उत्पीड़न भी भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता का एक रूप है और इसके लिए अलग से ट्रायल की जरूरत नहीं है। न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा कि अगर महिला ससुराल पक्ष पर ऐसे आरोप लगाती है, तो यह धारा 498ए में बताई गई शारीरिक क्रूरता का भी हिस्सा हो सकता है।

    पीठ ने कहा कि अदालत की राय में, अगर ससुराल वालों द्वारा शारीरिक क्रूरता के गंभीर रूप में दुष्कर्म किया जाता है, तो इसे क्रूरता के अपराध से अलग नहीं माना जा सकता है ताकि अलग ट्रायल की जरूरत पड़े, खासकर इसलिए क्योंकि इससे होने वाला मनोवैज्ञानिक तनाव भी इसी तरह बना रहेगा।

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    अदालत ने उक्त निर्णय एक महिला की ट्रायल कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। इसमें ट्रायल कोर्ट ने ससुर और देवर को क्षेत्राधिकार के आधार पर दुष्कर्म के अपराध से बरी कर दिया गया था और पुलिस को उचित कोर्ट में आरोपित व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की स्वतंत्रता दी थी।

    अदालत ने रिकार्ड पर लिया कि पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसके साथ हरियाणा में उसके ससुराल में दुष्कर्म हुआ था और ट्रायल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में ऐसी कोई घटना होने का आरोप नहीं लगाया गया था।

    ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद करते हुए पीठ ने कहा कि दुष्कर्म और क्रूरता के आरोप सीआरपीसी की धारा 220 की जरूरतों को पूरा करते हैं और इस तरह, संबंधित आरोपी पर प्रत्येक अपराध के लिए एक ही ट्रायल में आरोप लगाया जा सकता है और मुकदमा चलाया जा सकता है।

    अदालत ने माना कि मामले में दुष्कर्म और क्रूरता के अपराध इस तरह से जुड़े हुए थे कि वे एक ही प्रकरण हिस्सा थे और इसलिए ट्रायल कोर्ट के पास दुष्कर्म के अपराध के संबंध में उचित अधिकार क्षेत्र था। उक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने मामले को ट्रायल कोर्ट को वापस भेजते हुए तथ्यों पर नए सिरे से विचार करने का आदेश दिया।