सरोजिनी नगर धमाका: 20 साल बाद भी अपनों की तलाश जारी, क्या है पूरा मामला?
दक्षिणी दिल्ली के सरोजिनी नगर मार्केट में हुए बम धमाके की 20वीं बरसी पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई। पीड़ितों के परिवारजनों ने अपनों को खोने का दर्द साझा किया। कई लोगों को अपने परिजनों के अवशेष तक नहीं मिल पाए थे। साउथ एशियन फोरम ने सरकार से मृतकों के परिवारों को नौकरियों में आरक्षण देने की मांग की है ताकि पीड़ितों को कुछ राहत मिल सके।

दक्षिणी दिल्ली के सरोजिनी नगर मार्केट में हुए बम धमाके की 20वीं बरसी पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई।
जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। कुछ शवों के सिर मिले, तो कुछ के सिर्फ़ धड़। एक कोने में सिर्फ़ हाथ-पैर मिले। वे अपनों की तलाश में मुर्दाघर गए, लेकिन जले हुए शवों के ढेर में उनकी हिम्मत जवाब दे गई। घटना को बीस साल बीत चुके हैं, लेकिन वह मंज़र आज भी ताज़ा है।
सरोजिनी नगर मार्केट में हुए बम धमाकों के बाद लाशों के टुकड़ों के बीच अपनों को तलाशते परिजनों की यही दास्तान है। बुधवार को सरोजिनी नगर मार्केट में मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई, दो मिनट का मौन रखा गया और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई।
मार्केट एसोसिएशन के सदस्यों और मृतकों के परिजनों ने इसमें हिस्सा लिया। साउथ एशियन फोरम (पीपुल्स अगेंस्ट टेरर) के अध्यक्ष अशोक रंधावा का कहना है कि वे सरकार से मृतकों के परिवारों को दो प्रतिशत नौकरियों में आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं ताकि पीड़ितों को कुछ राहत मिल सके।
10 साल तक घर पर मनाई दिवाली
उस समय घर में तीन शादियों की तैयारियाँ चल रही थीं, और खुशियाँ छाई हुई थीं। पल भर में मातम छा गया। इस त्रासदी ने सालों तक दिवाली को काला कर दिया। झज्जर से आए सुरेंद्र बताते हैं कि इस हादसे में उन्होंने अपने चाचा दिलबाग, चाची सुमन और अपने दो बच्चों को खो दिया।
उनके चाचा, चाची और आठ साल की बेटी प्रियंका के शव अगले दिन बरामद हुए, लेकिन तीन साल के निखिल का शव नहीं मिला। उन्होंने कई दिनों तक शवगृह में तलाश की, आखिरकार 12 दिन बाद उसके पिता के डीएनए की मदद से शव मिला। वे बताते हैं कि 10 साल बाद, 2015 में आज ही के दिन उनके बेटे का जन्म हुआ, जिसके बाद से परिवार ने दिवाली मनानी शुरू कर दी।
'हमें अपनों से मिलने का भी सौभाग्य नहीं मिला'
मैं और मेरा भाई, दोनों सरोजिनी नगर मार्केट में काम करते थे। उस दिन, अपने भाई से कुछ सामान लेने के बाद, हम बस 150 मीटर ही चले थे कि एक ज़ोरदार धमाका हुआ और चीख-पुकार मच गई। कई दिनों तक शवगृह में अधजले शवों और चिथड़ों को देखते रहने के बाद, हमारी हिम्मत जवाब दे गई।
डीएनए टेस्ट से पता चला कि उसके भाई का शव किसी दूसरे परिवार को सौंप दिया गया था। यह कहना है मूल रूप से बिहार निवासी सुरेंद्र का, जिसने हादसे में अपने भाई कौशलेंद्र को खो दिया था। उसने कहा कि हादसे के पांच साल बाद वह दिल्ली लौटने की हिम्मत जुटा पाया और आज भी इस जगह पर आकर उसका दिल बैठ जाता है।
दिलशाद गार्डन निवासी मनीषा का कहना है कि उसके माता-पिता और भाई कपड़े खरीदने बाजार आए थे। 82 फीसदी जली हुई उसकी मां की 45 दिन बाद मौत हो गई और उसके भाई का आधा शव 15 दिन बाद मिला। उसके पिता का अभी तक पता नहीं चल पाया है। उस समय वह केवल नौ साल की थी और उसका पालन-पोषण उसके दादा-दादी ने किया था। उसकी दादी का साल 2022 में निधन हो गया और वह फिलहाल अपने दादा के साथ रहती है।

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