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    दीवाली के बाद अब सारनाथ को मिल सकता है विश्व धरोहर का तमगा, यूनेस्को की बैठक में होगा फैसला 

    Updated: Thu, 11 Dec 2025 02:27 PM (IST)

    दीवाली के बाद, सारनाथ को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की तैयारी है, जिसका फैसला यूनेस्को की अगली बैठक में होगा। एएसआई ने सारनाथ के लिए यूनेस्को को ...और पढ़ें

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    वी के शुक्ला, नई दिल्ली। दीवाली को अमूर्त धरोहर की सूची में शामिल कराने के बाद अब मूर्त धरोहर की सूची में सारनाथ को शामिल कराने की तैयारी है। सारनाथ पर अगले साल जून-जुलाई में यूनेस्को की होने वाली बैठक में फैसला होगा।

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    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सारनाथ को लेकर कुछ साल पहले यूनेस्को में प्रस्ताव भेजा था। माना जा रहा है कि महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल सारनाथ के स्मारक परिसर को विश्व धरोहर का तमगा मिल सकता है।

    एएसआई (Archaeological Survey of India) ने सारनाथ को यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने के लिए 2025-26 नामांकन चक्र के तहत एक डोजियर (प्रस्ताव) यूनेस्को को भेजा हुआ है। उसके बाद यूनेस्को टीम की सारनाथ को लेकर सितंबर अंत में दौरा कर निरीक्षण कर चुकी है। जिसमें स्थानीय निकाय, जिला प्रशासन से लेकर अन्य स्थानीय एजेंसियों के साथ बैठक कर उस इलाके के भविष्य के विकास पर चर्चा कर चुकी है और सभी जरूरी और महत्वपूर्ण जानकारियों की रिपोर्ट लेकर यूनेस्को में सौंप चुकी है।

    Sarnath

    इतिहास की जानकारी को किया गया संशोधित 

    सितंबर से पहले ही एएसआई सारनाथ स्मारक को बेहतर बनाने के लिए सभी प्रयास कर चुका है। सबसे महत्वपूर्ण है कि सारनाथ में पट्टिकाओं (प्लैक्स) पर उपलब्ध इतिहास की जानकारी को संशोधित किया गया है। जिसमें इतिहास को सही किया गया है, ऐतिहासिक सुधार में पुरानी पट्टिकाओं में बदलाव किया गया है।

    पहले सारनाथ की खोदाई में निकले ऐतिहासिक साक्ष्यों का श्रेय वहां लगे मुख्य शिलापट्ट पर अंग्रेज खोजकर्ताओं को दिया जा रहा था। संशोधित किए गए इतिहास में नई पट्टिकाओ में 18वीं सदी में काशी के जमींदार रहे बाबू जगत सिंह को इसका श्रेय दिया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक डा वाई एस रावत कहते हैं कि बाबू जगत सिंह को लेकर पूरे प्रमाण उपलब्ध हैं।

    पूर्व में अंग्रेजों के समय से गलत जानकारी चली आ रही थी। उन्होंने कहा कि शोध अध्ययन टीम ने तत्कालीन आर्काइव, गजेटियर और अनेक संग्रहालयों तथा ब्रिटिश सरकार के अभिलेखों के अध्ययन के पश्चात यह पाया है कि सारनाथ की ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर करने वाली खोदाई सबसे पहले बनारस राजघराने से जुड़ बाबू जगतसिंह ने कराई थी।

    जून-जुलाई में होगी यूनेस्को की बैठक

    एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यूनेस्को अपनी टीम की रिपोर्ट के अनुसार मई में इस स्मारक को लेकर इस स्थिति स्पष्ट करेगा और जून जुलाई में यूनेस्को की होने वाली बैठक में इस बार भारत की ओर से केवल सारनाथ का प्रस्ताव है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बार सारनाथ विश्च धरोहर की सूची में शामिल हो सकेगा। इस धरोहर को लेकर सभी प्रक्रियाएं और पूरी की जा चुकी हैं।

    यहां बता दें कि सारनाथ बौद्ध धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहीं ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था, जिसे ''धर्म चक्र प्रवर्तन'' कहते हैं, और यहीं बौद्ध संघ (भिक्षु समुदाय) की स्थापना हुई थी, जिससे बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ।

    यह बोधगया, लुम्बिनी और कुशीनगर के साथ बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है और सम्राट अशोक के समय में कला व धर्म का प्रमुख केंद्र था, जहां से भारत का राष्ट्रीय चिह्न (अशोक स्तंभ) भी लिया गया है। बताया जाता है कि मौर्य सम्राट अशोक ने स्तंभ लगभग 250 ईसा पूर्व में बनवाया था। एएसआई को 1904-05 में यहां की गई खोदाई में मिला था। यह स्तंभ के शीर्ष पर चार शेरों की आकृति है, जो भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का आधार है, जिसमें धर्मचक्र और ''सत्यमेव जयते'' भी शामिल हैं।