अमल से जिंदगी बनती है जन्नत भी, जहन्नुम भी
अमल से जिंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नुम भी इंसानी जिंदगी में सफलता के लिए तीन पक्तियां जरूरी हैं। श् ...और पढ़ें

- डॉ. अब्दुल नसीब खा
प्रिंसिपल सैयद आबिद सीनियर सेकेंडरी स्कूल, जामिया मिलिया इस्लामिया
इंसानी जिंदगी में सफलता के लिए तीन पक्तियां जरूरी हैं। शारीरिक, मानसिक और आत्मिक। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग निवास करता है और सेहतमंद दिमाग आत्मिक विकास के लिए नितांत आवश्यक है। स्वस्थ शरीर और स्वस्थ दिमाग धर्म और मोक्ष के भी साधन है। स्वस्थ शरीर और दिमाग के लिए खेल-कूद, व्यायाम, संतुलित आहार जरूरी है। खेल-कूद और व्यायाम से शरीर और दिमाग की साधना होती है। मन के विचार में पवित्रता आती है। अविवेक, विचार शून्यता, आलस्य वैर-भाव, क्रोध, ईष्र्या, असहिष्णुता जैसे अवगुण कोसों दूर भागते है और प्रबल आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, सहनशीलता, धैर्य, निर्भीकता, अनुशासन जैसे गुणों का विकास होता है। खेल-कूद हमें उस अनुशासन की दीक्षा देते हैं जो स्वयं, समाज, अपने मुल्क और दूसरे राष्ट्रों के लिए कल्याणकारी होता है।
खिलाड़ी स्वार्थ भूलकर स्वधर्म की चिंता करते हैं। सामूहिक हितों, अधिकारों, कर्तव्यों, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय भावनाओं को बढ़ावा देते है। उनसे हमें यह सीख मिलती है कि जिंदगी में सबसे अहम कर्म है। कामयाबी उन्हीं के कदम चूमती है जो कर्म को सर्वोपरि मानते हैं। उर्दू के शायर इकबाल कहते है कि अमल (कर्म) से जिंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नुम भी। इंसान को अपने मंसूबों पर अमल करते रहना चाहिए। जहां चाह वहां राह, पुरानी कहावत है। इतिहास के पन्ने उन लोगों के नामों से भरे हुए हैं जिन्होंने हिम्मत, साहस और दृढ़ता से अपने कर्म किए और जिंदगी के हर मैदान में कामयाब हुए। खेलकूद की दुनिया में मैरीकॉम वह नाम है जो इतिहास में हमेशा स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। 35 वर्षीय मैरीकॉम मुक्केबाजी में पांच बार विश्व चैंपियन रही। उन्होंने रिंग के अंदर अपना जौहर दिखाया। दृढ़तापूर्वक अपना लोहा मनवाया। यह साबित कर दिया कि कर्मवीर हमेशा अपनी मंजिल तक पहुंचता है। कर्मवीर हमेशा अपने भाग्य को बदलने की क्षमता रखता है। उन्होंने जिस आत्मविश्वास और दृढ़संकल्प का प्रदर्शन किया वह एक मिसाल है। 2008 में उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा था लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्हें पता था कि अगर इंसान का संकल्प दृढ़ है तो मकसद में कामयाबी होगी। एक कर्मठ खिलाड़ी की यही निशानी होती है।
एक बार एक सन्यासी से एक ऐसे व्यक्ति की भेंट हुई जो तमाम इंसानी गुण धर्मो के साथ समाज में रहता है और अपने कर्तव्यों का पालन करता है। भेंट होने पर उसने सन्यासी से पूछा, बाबा आपने सन्यास क्यों धारण किया? सन्यासी ने कहा एक बार मैं एक जंगल से गुजर रहा था तो देखा कि एक बीमार प¨रदा बैठा है। फिर मैंने सोचा कि लाओ देखूं कि इसको खाना कहां से मिलता है। थोड़ी देर में एक स्वस्थ्य परिंदा आया और अपनी चोंच से उसकी चोंच में दाना डाल दिया। फिर मुझे लगा कि ईश्वर खाना सभी को देता है, इसीलिए मैं संसार त्यागकर ईश्वर की पूजा-पाठ में लग गया ताकि उसका परम भक्त बन जाऊं। उस व्यक्ति ने कहा आपने एक गलती कर दी। सन्यासी ने पूछा कैसी गलती। व्यक्ति ने कहा कि आपने स्वस्थ परिंदा नहीं बीमार परिंदा बनना पसंद किया। मैरीकॉम ने स्वस्थ परिंदा बनकर दुनिया में सम्मान हासिल किया। भारत को गौरवान्वित किया और आजकल कर्मठता के साथ सांसद की तमाम जिम्मेदारियां संभाल रही है। उनकी जिंदगी हमारे लिए मिसाल है। इकबाल कहते हैं
खुद को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है।

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