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    'हिंदुओं के खिलाफ एक और निर्णय...' मतांतरण रोकने के कानून से जुड़ीं याचिकाओं की SC में सुनवाई का विरोध

    Updated: Thu, 09 Oct 2025 09:03 PM (IST)

    अखिल भारतीय संत समिति ने मतांतरण रोकने के कानूनों से संबंधित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का विरोध किया है। संतों ने इसे हिंदुओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया बताया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली और जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन की घोषणा की है, ताकि समाज में जागरूकता फैलाई जा सके।

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    नार्थ एवेन्यू में प्रेसवार्ता के दौरान स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती (मध्य में), डा. सुरेंद्र जैन (दाएं) तथा महंत राजेंद्र दास। जागरण

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। हिंदू संत समाज ने मतांतरण रोकने के कानूनों से जुड़ीं याचिकाओं को विभिन्न हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांरित करने का विरोध किया है।

    इसे हिंदुओं के प्रति सुप्रीम कोर्ट एक और भेदभावपूर्ण निर्णय बताते हुए राष्ट्रीय आंदोलन की घोषणा की है। कहा है कि उसके ऐसे निर्णयों तथा सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट में नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर राष्ट्रीय विमर्श खड़ा किया जाएगा।

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    नार्थ एवेन्यू में प्रेसवार्ता के दौरान निर्मोही आणि अखाड़े के अध्यक्ष व अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत राजेंद्र दास व विहिप के केंद्रीय संयुक्ति मंहामंत्री डाॅ. सुरेंद्र जैन की मौजूदगी में अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि अवैध मतांतरण से राष्ट्र के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।

    जिसके मद्देनजर मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, समेत अन्य राज्यों ने धर्म स्वतंत्रता अधिनियम बनाए, जिसमें छल-कपट, बल प्रयोग व प्रलोभन के माध्यम से मतांतरण को अवैध बनाया। जिसे मतांतरण करने वाली शक्तियों व उनके समर्थकों ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी है, लेकिन दुर्भाग्य से सर्वोच्च न्यायालय ने उन सबको इकट्ठा कर एक साथ सुनवाई का आदेश दिया है।

    उन्होंने कहा कि संतों का मानना है कि मतांतरण संबंधित कानून का मामला राज्य सरकारों का विषय होने के कारण पहले मामलों की सुनवाई उच्च न्यायालयों में होनी चाहिए थी। हर मामले में मतांतरण की परिस्थिति भी अलग-अलग है। ऐसे में भला सबको एक साथ कैसे सुना जा सकता है?

    उसमें भी सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों से भी राय मांगी है जहां के सत्ताधारी दल स्वयं मतांतरण का कुचक्र रचने वाली शक्तियों के साथ खड़े हैं। पूर्व में भी ऐसे कई पक्षपातपूर्ण निर्णय हिंदू समाज में संदेह को बल देते हैं।

    स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने याद दिलाते हुए कहा कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने को लेकर स्वामी दयानंद सरस्वती की याचिका को 13 साल रोके रखने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहकर लौटा दिया था कि यह राज्यों का विषय है।

    आगे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति मामले में कॉलेजियम सिस्टम में भाई-भतीजवाद का आरोप लगाते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति मामले में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (एआईजीएस) की संवैधानिक व्यवस्था है, लेकिन उसको दरकिनार कर न्यायाधीशों केवल अपने परिवारों को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे कई सवाल है जिसपर राष्ट्रीय विमर्श शुरू करने के लिए यह आंदोलन चलाया जाएगा।

    उन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई को जूता दिखाने और उसपर विपक्ष के दलित सियासत के सवाल पर कहा कि विरोध की संवैधानिक व्यवस्था है, हिंसा किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं है। आगे कहा कि यह सियासत इसलिए टिक नहीं पाएगी क्योंकि जूता दिखाने वाले वकील भी दलित समुदाय से हैं।

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