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    बटला हाउस में ध्वस्तीकरण के खिलाफ सात लोगों को राहत, DDA को 10 जुलाई तक यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश

    Updated: Mon, 23 Jun 2025 07:26 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने बटला हाउस क्षेत्र में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा जारी ध्वस्तीकरण नोटिसों को चुनौती देने वाली सात लोगों की याचिका पर 10 जुलाई तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि डीडीए ने मनमाने ढंग से संपत्तियों को निशाना बनाया है और उनकी संपत्तियां पीएम-उदय योजना के अंतर्गत आती हैं। कोर्ट ने डीडीए को नोटिस जारी कर मामले को अन्य याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध किया।  

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। बटला हाउस क्षेत्र में ध्वस्तीकरण को लेकर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देने वाली सात लोगों की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 10 जुलाई तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति रजनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने डीडीए को मामले पर नोटिस जारी करते हुए मामले को अन्य याचिकाओं के साथ 10 जुलाई के लिए सूचीबद्ध क दिया।

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    याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता फहद खान ने तर्क दिया कि डीडीए और दिल्ली सरकार ने पहचाने गए क्षेत्र से परे और व्यक्तिगत नोटिस जारी किए बिना अंधाधुंध तरीके से संपत्तियों को निशाना बनाया है। यह भी कहा कि चार जून को एक फील्ड सर्वे के दौरान याचिकाकर्ताओं की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए चिह्नित किया गया था और उन्हें ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के बारे में सूचित किया गया था, जबकि उनकी संपत्ति ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से बाहर के क्षेत्र या पीएम-उदय योजना के अंतर्गत आती हैं।

    यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया

    याचिका में दावा किया गया है कि उन्हें आज तक कोई सीमांकन रिपोर्ट या पीएम-उदय पात्रता का सत्यापन प्रदान नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई आजीविका के अधिकार के साथ ही गारंटीकृत समान सुरक्षा का स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने तर्क दिया कि मामले में अन्य याचिकाकर्ताओं को दी गई अंतरिम सुरक्षा की तरफ से उन्हें भी राहत दी जाए। 16 जून को अदालत ने डीडीए के ध्वस्तीकरण आदेश के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसी तरह की यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।

    वहीं, मामले में आप विधायक अमानतुल्लाह खान की जनहित याचिका यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि इस तरह की जनहित याचिका में संरक्षण का सामान्य आदेश पारित करने से व्यक्तिगत वादियों का मामला खतरे में पड़ सकता है।