उर्दू से मोहब्बत के इजहार के लिए जश्न ए रेख्ता पहुंचे लोग
अभिनव उपाध्याय,नई दिल्ली जश्न ए रेख़्ता का दूसरा दिन गुलाबी सर्दी और गुनगुनी धूप के बीच गुलजार
अभिनव उपाध्याय,नई दिल्ली
जश्न ए रेख़्ता का दूसरा दिन गुलाबी सर्दी और गुनगुनी धूप के बीच गुलजार रहा। मेजर ध्यान चंद स्टेडियम परिसर में आयोजित इस उत्सव में महफिल-खाना, बज्म ए खयाल, दयार ए इजहार और कुंज ए सुखन में आयोजित सभी कार्यक्रमों में दर्शक खचाखच भरे थे। जगह जगह उर्दू के बडे़ शायर और उनकी तस्वीर के नीचे उनकी शायरी और उस पोस्टर के साथ बड़े अपनापे के साथ तस्वीर खिंचवाते लोग उर्दू से अपनी मोहब्बत का इजहार कर रहे थे।
उर्दू अदब के जाने माने नाम यहां की महफिल में चार चांद लगाने और युवाओं से मिलने के लिए मौजूद थे। महफिल-खाना में आयोजित मंटो के रूबरू कार्यक्रम में अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मशहूर अफसानानिगार सआदत हसन मंटो के बहाने बंटवारे के दर्द को ताजा कर दिया। उन्होंने जैसे ही मंटो को केंद्र में रखकर अपनी आने वाली फिल्म कि ये पंक्तियां,
¨हदुस्तान जिंदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद इन चीखते चिल्लाते नारों के बीच कई सवाल थे। मैं इसे अपना मुल्क कहूं, लोग धड़ाधड़ क्यों मर रहे थे। इन सब सवालों के एक मुख्तलिफ जवाब थे, एक ¨हदुस्तानी जवाब, एक पाकिस्तानी जवाब एक ¨हदू जवाब और एक मुसलमान जवाब। कोई इसे 1857 के खंडहर में ढूंढता है तो कोई इसे मुगलिया हुकूमत के मलबे में टटोलने की कोशिश करता है। सब पीछे देख रहे हैं लेकिन आज के कातिल लहू और लोहे से तारीख लिखते जा रहे हैं। ये मजनून सुनाते सुनाते आप सब से मार खा लूंगा लेकिन ¨हदू मुस्लिम फसाद में अगर कोई मेरा सर फोड़ दे तो मेरे खून की हर बूंद रोती रहेगी..
सुनाई तो खचाखच भरे सभागार में बैठे लोग रोमांचित हो उठे और अंतिम वाक्य कहने से पहले ही तालियों की गूंज परिसर में एक लहर की तरह उठी और फिर शांत हो गई।
बंटवारे के दर्द को बयां करने वाले मंटों की कहानियों और खुद मंटो के जीवन को ध्यान में रखकर आयोजकों ने मंटो के रूबरू नाम से एक सत्र रखा था। जिसमें नंदिता दास और नवाजुद्दीन सिद्दीकी मंटो के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर रहे थे। एक सवाल के जवाब में नवाजुद्दीन ने कहा कि जिनके पास इमानदारी होती है उनको शोहरत की जरूरत नहीं होती। मंटो ऐसे ही थे। मैंने मंटो से बहुत कुछ सीखा। मंटो ने हमेशा सच लिखा, जो देखा वही लिखा। लेकिन मैं जब सच बोलने लगा तो विवाद में फंस गया। जब हिम्मत बंधी और सच बोला तो बहुत से लोगों ने गालियां देनी शुरू कर दी। मंटो ने समाज की छिपी तहों को उजागर किया लेकिन अब मैं मंटो को अपने अंदर से निकालना चाहता हूं। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि अब मैं सोच रहा हूं कि मैं इमानदार रहूं कि नहीं।
अभिनेत्री और निर्देशक नंदिता दास ने कहा कि मंटो अपने अफसानों को आइना समझते थे। मंटो कहते थे कि यदि आप हमारे अफसाने को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब यह है कि जमाना ही नाकाबिले बर्दाश्त है।
मंटो ने कभी इसलिए नहीं लिखा कि वह उर्दू में अच्छा लिखते थे। उनको जैसा लगा उन्होंने वैसा लिखा।