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    लाल किला धमाके में मृतकों के परिवारों पर टूटा दुखों का पहाड़, किसी का रोजगार छिना को कहीं बिखर गया परिवार

    Updated: Wed, 10 Dec 2025 06:56 AM (IST)

    दिल्ली के लाल किला धमाके में मृतकों के परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। इस घटना ने कई परिवारों को झकझोर कर रख दिया है, किसी ने अपना रोजगार खो द ...और पढ़ें

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    लाल किला धमाके में जान गंवाने वाले अमर कटारिया व मृतक मोहसीन के बच्चे।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। सब कुछ सही चल रहा था लेकिन सोमवार 10 नवंबर का दिन उन लोगों व उनके परिवारों के लिए मनहूस साबित हुआ जो या तो लाल किला के सामने हुए धमाके में घायल हो गया फिर उनकी जान चली गई। परिवारों पर एक तरह से दुखों का पहाड़ टूट गया है।

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    क्योंकि कुछ लोगों का अच्छा खासा व्यवसाय चल रहा था वह ठप हो गया और तो परिवार के लोगों का जीवन सामाजिक और आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हो गया है। क्योंकि घटना के एक माह बाद सरकार से तो कोई मदद नहीं मिली है बल्कि घटना की जानकारी के लिए विभिन्न एजेंसियां जरुर कुछ न कुछ पूछताछ कर रही हैं।

    घटना में कुल 15 लोगों की जान गई थी जबकि 22 घायल हुए थे। इसमें से दिल्ली के पांच लोगों की जान चली गई थी। जबकि कई घायल हैं। घायलों का भी व्यवसाय चौपट हो गया और जिनकी जान गई हैं उनके परिवार की स्थिति खराब है। मृतकों के बच्चे और उनके माता-पिता से लेकर नाते रिश्तेदार अभी तक सदमे में है।

    घटना के एक माह बाद क्या है घायलों के परिवार की स्थिति इसको लेकर जागरण टीम ने मृतकों के परिवार के लोगों से बातचीत की जिसमें परिवारों ने अपनी पीड़ा सुनाई है। पेश हैं रिपोर्ट...

    एक माह से मुआवजे के लिए चक्कर काट रहा परिवार

    10 नवंबर को लाल किले के बाहर हुए आतंकी हमले की चपेट में आए मोहसिन की दर्दनाक हो गई थी। मूल रूप से मेरठ के रहने वाले मोहसिन चांदनी चौक के आसपास ई-रिक्शा चलाते थे और पत्नी और दो बच्चों के साथ दरिया गंज के सूईवालान इलाके में रहते थे। उनकी मौत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ तो टूटा ही साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति और भी खस्ता हाल में चल रही है।

    सरकार द्वारा परिवार को दस लाख के मुआवजे का ऐलान तो किया गया लेकिन, पिछले एक महीने से मुआवजे के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। मृतक मोहसिन की भाभी नाजिश ने बताया कि घटना के बाद से पत्नी सुल्ताना, बेटी हिफ्जा और बेटा अहद आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। परिवार में मोहसिन ही कमाने वाले थे।

    उनकी मौत के बाद ब्यूटी पार्लर चलाने वाली नाजिश ने ही परिवार का जिम्मा संभाला हुआ है। दोनों बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं, लेकिन घर का किराया व अन्य जरूरत की चीजों के लिए परिवार को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि चार दिन पहले ही मुआवजे के लिए वेरिफिकेशन हुई है और उन्हें आश्वासन दिया गया है कि जल्द ही उन्हें मुआवजे का पैसा मिल जाएगा।

    मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए दर-दर भटक रहे मृतक के पिता

    लाल किले में विस्फोट की चपेट में आए 22 वर्षीय पंकज की दर्दनाक मौत हो गई थी। पिता राम बालक सैनी को अस्थमा के अलावा हार्ट की परेशानी से जूझ रहे हैं। शादीशुदा बड़ा भाई परिवार से अलग रहता है। पंकज कैब चलाकर अपने परिवार का खर्चा उठा रहे थे।

    स्वजन निकेश कुमार ने बताया कि मूलरूप से समस्तीपुर बिहार का रहने वाला पंकज अपने परिवार के साथ कंझावला के सावदा स्थित उपकार विहार कालोनी में रहते थे। परिवार में पिता राम बालक, मां गायत्री देवी, दो बहनें जूली, दीपा, बड़े भाई के अलावा एक छोटा भाई संजीव है।

    पीड़ित परिवार का कहना है कि पंकज परिवार में अकेला ही कमाने वाला था। उसके जाने के बाद परिवार आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। अभी तक मुआवजे की रकम तक नहीं मिली है। वहीं, एक कमाई का साधन वैगनआर कार थी, वह भी इस हादसे में जल गई। फिर भी कोई मदद के लिए अभी तक आगे नहीं आया है। बहन जूली की शादी की तैयारी भी चल रही थी।

    पंकज दिन-रात कैब चलाकर बहन की शादी के लिए पैसे जमा करने में जुटा हुआ था। लेकिन अब उसके जाने के बाद बहन की शादी कैसे होगी, इसकी चिंता भी परिवार को सताने लगी है। पीड़ित परिवार का आरोप है कि अंतिम संस्कार के बाद पीड़ित परिवार से कोई भी अधिकारी मिलने तक नहीं आया। डेथ सर्टिफिकेट के लिए भी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पीड़ित परिवार की मांग है कि बिना किसी देरी उन्हें मुआवजे की रकम दी जाए।

    सदमे में दादा ने भी दम तोड़ा

    पोते की मौत की खबर सुनकर दादा वालेश्वर सहनी की तबियत अचानक बिगड़ी, 12 दिन बाद उन्होंने सदमे में अपना दम तोड़ दिया। हादसे के समय वालेश्वर सहनी समस्तीपुर स्थित गांव फतेहपुर में थी। जिनकी उम्र 65 वर्ष थी। पीड़ित परिवार का कहना है कि इस एक महीने से सबकुछ बदल गया। जो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था।

    आज भी माता-पिता और बहनों का रो-रोककर बुरा हाल है। पीड़ित परिवार का कहना है कि कोई भी सुध नहीं वाला नहीं है। हादसे के बाद कारोबार बंद हुआ, परिवार आज तक नहीं संभला श्रीनिवास पुरी निवासी अमर कटारिया इकलौते बेटे थे 'मम्मा-दादू पापा कब आएंगे? मुझे उनके साथ सोना है।'

    रोज रात तीन साल का मासूम ये सवाल पूछता है और हम उसे बस दिलासा देते हैं कि बेटा पापा भगवान जी के पास गए हैं, जल्द आ जाएंगे। हादसे को महीना भर बीत चुका है, परिवार उबर नहीं पाया है। ये कहना है श्रीनिवासपुरी निवासी जगदीश कुमार का, जिन्होंने पिछले महीने हुए बम धमाके में अपने इकलौते बेटे अमर को खोया है। पीड़ित परिवारों के लिए सरकार ने मुआवजे की घोषणा तो की थी, लेकिन अभी मुआवजा नहीं मिला है।

    जगदीश अपने भाई के साथ मयूर विहार में टेलरिंग शाप चलाते हैं। बताते हैं कि समय बिताने के लिए दुकान पर जाता था। बेटा ने कई बार कहा था मत जाया करो थक जाते होंगे। सोच रहा था कि बेटे ने घर संभाल ही लिया है दुकान पर जाना छोड़ दूंगा।

    मुझे क्या पता था कि इस उम्र में परिवार की जिम्मेदारी निभाने की नौबत आ जाएगा। मुआवजे के लिए कल भी एसडीएम कार्यालय से फोन पर कुछ जानकारी मांगी थी। कब मिलेगा इस बार में कुछ नहीं पता।

    कारोबार हुआ बंद

    अमर भागीरथ पैलेस में पार्टनर के साथ होलसेल फार्मेसी चलाते थे, जोकि हादसे के बाद से बंद है। जगदीश बताते हैं कारोबार ठप हो गया है। मेरी उम्र 60 साल है और पत्नी घुटने की बीमारी से परेशान है। बहू कृति एमबीए है, सरकार से मांग है कि अगर उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाए, तो परिवार संभल जाएगा।

    अमर की चार साल पहले ही शादी हुई थी और बेटा फिलहाल प्ले स्कूल में है। जगदीश बताते हैं 17 दिसंबर को बेटे अमर का जन्मदिन था, वो आज होता तो सब खुशी से जश्न की तैयारी में लगे होते लेकिन आज खामोशी छाई है।