Delhi Blast: 'शरीर ठीक हो जाएगा, दिल के डर का इलाज कौन करेगा?', पीड़ितों को अपने भविष्य की चिंता
लाल किला विस्फोट के पीड़ितों का दर्द असहनीय है। विस्फोट के बाद, कई लोग डर और सदमे में हैं। कुछ ने अपनी आंखें खो दी हैं, कुछ की हड्डियां टूट गई हैं, जिससे उनके जीवन और आजीविका पर गहरा प्रभाव पड़ा है। पीड़ितों को भविष्य की चिंता सता रही है और वे सामान्य जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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लाल किला विस्फोट के पीड़ितों का दर्द असहनीय है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। लोगों की दर्दनाक चीखें, भागने की होड़ और मदद की गुहार के बीच सड़क पर लेटे-लेटे मैंने आंखें बंद कीं और इस मंजर ने मेरी सांसें रोक दीं। मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा। विस्फोट पीड़ित जोगिंदर कहते हैं कि विस्फोट के बाद मैं न सुन सकता था, न सोच सकता था। जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया। जब भी कोई पटाखा फूटता है, मेरा शरीर कांप उठता है। मेरी सांस फूलने लगती है और मैं पसीने से तर हो जाता हूं।
शाहिना परवीन कहती हैं कि हर तेज आवाज दर्द और डर लेकर आती है। उन्हें बताया जा रहा है कि मैं जल्द ठीक हो जाऊंगी, मेरा शरीर ठीक हो जाएगा। लेकिन मेरे दिल में बसे डर का इलाज कौन करेगा? कोई भी दवा मेरे दिल में बसे डर का इलाज नहीं कर सकती। सोमवार को लाल किला विस्फोट में घायल हुए लोगों की यही व्यथा है। तीन दिन बीत चुके हैं, लेकिन वे और उनके परिवार अभी भी उस दिन के खौफ से उबर नहीं पाए हैं।
विस्फोट के खौफ ने उनके जीवन में डर, सिहरन और गहरा सदमा छोड़ दिया है। वे भविष्य को लेकर चिंतित हैं। कुछ लोगों की आँखें चली गई हैं, कुछ की हड्डियाँ टूट गई हैं, और आजीविका व घर-परिवार संकट में हैं। उनका कहना है कि उन्हें अपनी ज़िंदगी पटरी पर लाने के लिए लंबा संघर्ष करना होगा।
शाहदरा निवासी अंकित शर्मा बताते हैं कि उनका भाई सोमवार को गौरी शंकर मंदिर गया था। वह अभी पहुँचा ही था कि धमाका हुआ। "इसने मेरे भाई की ज़िंदगी बदल दी। अंकुश ने अपनी एक आँख हमेशा के लिए खो दी। उसके हाथ-पैरों में कई फ्रैक्चर हैं, उसकी प्लास्टिक सर्जरी हुई है और वह इस समय आईसीयू में है।"
लाल किले पर बमबारी में घायल हुए भवानी शंकर शर्मा कहते हैं कि उस दिन उन्होंने जो देखा उसे वह भूल नहीं सकते। "किसी की चीख, किसी का हाथ—सब कुछ मेरे ज़हन में बसा है। डर आज भी मेरे ज़हन में है।" धमाके में गंभीर रूप से घायल हुई रीता कहती हैं, "मुझे बस इतना याद है कि तेज़ आवाज़ के साथ गर्म हवा का एक झोंका आया और मैं ज़मीन पर गिर पड़ी। अब, ऐसी हर आवाज़ सुनकर मेरी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं और मैं पसीने से तरबतर हो जाती हूँ।"
रीता की बहन अंजू, जो घटना के बाद से अस्पताल में भर्ती हैं, कहती हैं कि परिवार अभी भी सदमे में है। विनोद कहते हैं, "भगवान का शुक्र है कि रीता बच गई। मैंने ज़िंदगी में बहुत कुछ देखा है, लेकिन ऐसा नहीं। घटनास्थल और अस्पताल में घायलों की चीखें आज भी मेरे कानों में गूंजती हैं। मुझे घर से बाहर कदम रखने में भी डर लगता है।"
कैब ड्राइवर रोहित बताते हैं कि उनकी गंभीर चोटों के इलाज से उनके परिवार पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा। "मैं घर का इकलौता कमाने वाला हूँ; मेरे माता-पिता, पत्नी और आठ साल की बेटी, सब मुझ पर निर्भर हैं। मुझे उनकी चिंता है।"

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