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    एक चॉकलेट के लिए शुरू हुई दौड़ ने बना दिया इंटरनेशनल पैरा एथलीट, 22 साल की उम्र में जीते 30 गोल्ड मेडल

    By Lokesh SharmaEdited By: Monu Kumar Jha
    Updated: Fri, 27 Jun 2025 07:11 PM (IST)

    मुखर्जी नगर के चिराग खन्ना, जिन्हें डॉक्टरों ने कभी चलने में असमर्थ बताया था, आज दुनिया भर में दौड़कर देश के लिए पदक जीत रहे हैं। जन्म से ही उनके शरीर का बायां हिस्सा 50% काम नहीं करता था। सात साल की उम्र तक पैरों में रॉड लगे थे, लेकिन एक दौड़ में हिस्सा लेने पर चमत्कारिक रूप से वे निकल गए। अपनी माँ के संघर्ष और कोच के मार्गदर्शन से चिराग ने 30 से अधिक स्वर्ण पदक जीते हैं और उनका लक्ष्य पैरालंपिक्स में स्वर्ण जीतना है। यह कहानी दिव्यांग बच्चों के लिए प्रेरणा है।  

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    फोटो जागरण

    लोकेश शर्मा, नई दिल्ली। फिल्मों में तो अक्सर देखा है कि दिव्यांग व्यक्ति चमत्कारिक रूप से दौड़ने लगता है, लेकिन हकीकत में ऐसा होता देखना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता।

    दिल्ली के मुखर्जी नगर स्थित इंद्र विकास कॉलोनी के रहने वाले चिराग खन्ना की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जिसे डाक्टरों ने कभी कहा था कि यह बच्चा जिंदगीभर चल भी नहीं पाएगा, आज वही दुनिया भर में दौड़ रहा है और देश के लिए पदक जीत रहा है।

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    चिराग की जिंदगी की कहानी अनिल कपूर की 2002 में आई फिल्म रिश्ते से मिलती झुलती है। जन्म से ही चिराग के शरीर का बायां हिस्सा 50 प्रतिशत तक काम नहीं करता। सात साल की उम्र तक उसके पैरों में लोहे की रॉड और बोल्ट लगे हुए थे, जिनके सहारे वह मुश्किल से चल पाता था।

    आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में पले-बढ़े चिराग ने सिर्फ एक चाकलेट पाने के लिए दौड़ने की ठान ली। स्कूल की टीचर ने मना किया, लेकिन मां की गुहार पर उसे दौड़ने की अनुमति मिली। जब उसने पहली बार दौड़ में हिस्सा लिया, तो दौड़ने का जोश ऐसा चढ़ा कि रॉड और बोल्ट खुद-ब-खुद निकल गए और वह दौड़ता ही चला गया।

    यह दृश्य देख स्कूल वाले और मां स्तब्ध रह गए। चिराग ने उस दौड़ को जीत लिया, और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पांच साल की उम्र में छिना पिता का साया 22 वर्षीय चिराग जब महज पांच साल के थे, तब एक दुर्घटना में पिता का निधन हो गया।

    मां सुनीता खन्ना ने ही उन्हें पाला-पोसा। पहले टिफिन बनाने का काम करती थीं, लेकिन आज उनका बेटा एक निजी कंपनी में नौकरी करता है और घर का खर्च चला रहा है। यह कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, एक मां के संघर्ष, बेटे की हिम्मत और उम्मीदों की उड़ान की सच्ची मिसाल है जो हजारों दिव्यांग बच्चों और उनके परिवारों के लिए प्रेरणा है।

    मां की प्रेरणा और कोच का मार्गदर्शन बना ताकत चिराग की कामयाबी में उनकी मां के समर्पण और एथलेटिक्स कोच सुनीता राय के मार्गदर्शन का बड़ा हाथ है। चिराग कहते हैं पहले मैं अपने लिए दौड़ता था, अब मां का सपना पूरा करने के लिए दौड़ता हूं। कोच सुनीता की ट्रेनिंग के दम पर वह कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश का नाम रोशन कर चुके हैं।

    देश के अंतर ही ही स्कूल लेवल और नेशनल लेवल की प्रतियोगिता में 30 से अधिक स्वर्ण पदक जीत चुका है। मां को पड़ चुके हैं दो दिल के दौरे चिराग की मां उनके हर टूर्नामेंट में साथ जाती हैं। दौड़ के प्रति बेटे की लगन और समाज में कुछ कर दिखाने की उनकी दीवानगी ने उन्हें दो बार दिल का दौरा भी दिला दिया, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी।

    उनका सपना है कि चिराग पैरालंपिक्स में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतकर देश का मान बढ़ाए। चिराग की उपलब्धियां ग्रां प्री दुबई 2025 - 100 मीटर दौड़ में रजत पदक गोवा नेशनल चैंपियनशिप 2024।

    स्वर्ण पदक दिल्ली राज्य चैंपियनशिप (2022-2023)- दोनों वर्षों में स्वर्ण पदक पुणे में आयोजित पैरा नेशनल- 3.54 सेकंड में दौड़ पूरी कर स्वर्ण पदक विश्व पैरा एथलेटिक्स (2025)- 400 मीटर में कांस्य पदक।

    100 मीटर में चौथा स्थान खेलो इंडिया पैरा 2023- स्वर्ण पदक ओपन इंडिया बेंगलुरू- कांस्य पदक एशियन गेम्स ट्रायल- स्वर्ण पदक स्वर्ण पदक कांस्य पदक स्वर्ण पदक।