धड़ल्ले से हो रहा पॉलीथिन का प्रयोग
पर्यावरण को प्रदूषित करने में पॉलीथीन सबसे आगे है। सड़क किनारे से लेकर पार्कों में पॉलीथीन जगह-जगह बिखरे हुए मिलते हैं। इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण पर हो रहा है। इसी को देखते हुए राजधानी में पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाए गए थे। निगम की ओर से इस वर्ष के शुरू में समय-समय पर औचक निरीक्षण किया जाता था। जो दुकानदार पॉलीथीन का प्रयोग करते हुए दिखाई देते थे उनका चालान भी किया जाता था, लेकिन थोड़े ही दिनों के बाद इसका असर कम हो गया और फिर से पॉलीथीन का उपयोग धड़ल्ले से होने लगा है। अब न तो निगम की टीम और न ही दुकानदारों व लोगों में जागरूकता दिखाई दे रही है।
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली :
पर्यावरण को प्रदूषित करने में पॉलीथिन सबसे आगे है। सड़क किनारे से लेकर पार्को में पॉलीथिन जगह-जगह बिखरे हुए मिलते हैं। इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण पर हो रहा है। इसी को देखते हुए राजधानी में पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाए गए थे। निगम की ओर से इस वर्ष के शुरू में समय-समय पर औचक निरीक्षण किया जाता था। जो दुकानदार पॉलीथिन का प्रयोग करते दिखाई देते थे उनका चालान भी किया जाता था, लेकिन थोड़े ही दिनों के बाद इसका असर कम हो गया और फिर से पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से होने लगा है। अब न तो निगम की टीम और न ही दुकानदारों व लोगों में जागरूकता दिखाई दे रही है।
दिल्ली देहात व दिल्ली शहरी क्षेत्र को जोड़ने वाले नजफगढ़ में पॉलीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। वहीं, द्वारका की बात करें तो यहां भी दुकानों में इसका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। जब पॉलीथिन के प्रयोग पर रोक लगी थी, तो कुछ दिन तक दुकानदारों ने इसका प्रयोग करना बंद कर दिया था, लेकिन समय के साथ वे भी इसका इस्तेमाल करने लगे। पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर, विकासपुरी, जनकपुरी व राजौरी गार्डन जैसे इलाकों में अभी बड़ी संख्या में ऐसे लोग दिखते हैं जो पॉलीथिन में सामान लेकर जाते हैं। सबसे ज्यादा पॉलीथिन का प्रयोग रेहड़ी व सब्जी वालों की ओर से किया जाता है।'दिल्ली रहे हरी भरी, नहीं चाहिए पॉलीथीन भरी'। इस नारे के माध्यम से पर्यावरण के लिए खतरा बन चुकी पॉलीथिन की थैलियों के प्रयोग को बंद करने की अपील की गई थी। इसके लिए कई जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया था लेकिन, पॉलीथिन आज पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है। लोगों को चाहिए कि वे इन थैलियों के प्रयोग को बंद करें। पॉलीथिन के थैलों के बजाय हमें कपड़े के थैलों का प्रयोग करना चाहिए।
पर्यावरण विशेषज्ञ कपूर ¨सह छिक्कारा ने बताया कि पॉलीथिन के उपयोग पर पाबंदी लगने के बाद भी इसका असर बाजार पर नहीं दिख रहा है। इससे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इसके पीछे का कारण आम लोगों की लापरवाही और सरकार में इच्छाशक्ति की कमी है। जब पाबंदी लगाई जाती है तो कुछ दिनों तक उसका असर होता है, लेकिन समय के साथ सबकुछ पहले जैसा होने लगता है। सरकार को चाहिए कि इस पर लगातार कार्रवाई करे, जिससे पॉलीथिन का उपयोग करने वालों में खौफ हो। उन्होंने कहा कि सिक्किम में पॉलीथिन पर पूर्णतया बैन लगा हुआ है और इस कानून का पालन वहां के लोग करते हैं। ऐसे ही यहां के लोगों को भी इस नियम का पालन करना चाहिए। अगर व्यक्ति खुद पॉलीथिन लेने से इन्कार करेगा तो दुकानदार को देने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
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