हर साल सात लाख नवजातों की मौत: भारत में जन्म के बाद भी देखभाल की कमी बनी चुनौती, विश्व रैंक ने बढ़ाई चिंता
भारत में नवजातों की मृत्यु दर चिंताजनक है, जहाँ हर साल लगभग सात लाख शिशु जन्म के बाद उचित देखभाल न मिलने के कारण मर जाते हैं। विश्व रैंकिंग में भारत की स्थिति इस समस्या की गंभीरता को दर्शाती है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। जन्म के बाद की देखभाल में कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। भारत में हर साल सात लाख से अधिक नवजात शिशु जन्म के 28 दिनों के भीतर दम तोड़ देते हैं, जो दुनिया में होने वाली लगभग 23 लाख नवजात मौतों का 30 प्रतिशत है। यानी विश्व के हर तीन में से एक नवजात मृत्यु भारत में होती है। दिल्ली में यह आंकड़ा हर एक हजार जीवित जन्मों पर 14 नवजात मौत का बताया जाता है। यह स्थिति देश में जन्म के बाद शिशुओं की देखभाल और मातृ सहयोग में गंभीर कमी के कारण है।
इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ ने मिलकर ‘गर्भ के बाद भी स्नेहपूर्ण देखभाल’ कार्यक्रम आरंभ किया है। जिसका उद्देश्य नवजातों विशेषकर अल्पवज़न और बीमार बच्चों के प्रारंभिक मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास को प्रोत्साहित करना है। इस पहल को देश में नवजात मृत्यु दर घटाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
इस पर विमर्श करने को मंगलवार को दिल्ली के सुचेता कृपलानी मेडिकल कालेज में देश भर के विशेषज्ञ जुट रहे हैं। उद्देश्य है, ‘इलाज केवल दवाओं या मशीनों से नहीं, बल्कि मां के स्नेह और परिवार की भागीदारी से भी संभव है। साथ ही यह सुनिश्चित करना कि अस्पतालों में नवजातों को केवल चिकित्सकीय नहीं बल्कि मानवीय व स्नेहपूर्ण देखभाल मिले’, का संदेश देना है। इससे हर बच्चे को जन्म के बाद सुरक्षित और स्नेहपूर्ण वातावरण मिल सके।
सरकार की ओर से इसके लिए स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि वे शिशुओं की देखभाल में स्पर्श, सुकून व संवेदना को प्राथमिकता दें। आयोजित होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन में नीति आयोग के सदस्य प्रो. विनोद के पाल, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की डा. सुनीता शर्मा और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डाॅ. राजीव बाहल इस पर अपना पक्ष और सरकार की नीति के बारे में जानकारी देंगे।

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