न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर रेयर है पर संभव है इलाज
-एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स का निधन इस बीमारी के कारण ही हुआ था -इस बीमारी का
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली :
फिल्म अभिनेता इरफान खान को न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने की सूचना सामने आने के बाद डॉक्टरों के बीच इस पर चर्चा शुरू हो गई है। इस बीमारी के नाम में न्यूरो शब्द जुड़े होने के बावजूद मस्तिष्क (ब्रेन) से उसका सीधा ताल्लुक नहीं है। डॉक्टर कहते हैं कि इस बीमारी का नाम भले ही न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर है, लेकिन यह ज्यादातर पैंक्रियाज (अग्नाशय), फेफड़े , छोटी आंत, बड़ी आंत व पेट के अन्य हिस्सों में होता है। यह बीमारी बहुत कम लोगों को होती है। इसलिए इसे दुर्लभ बीमारियों की श्रेणी में रखा जाता है इसका इलाज संभव है।
डॉक्टर कहते हैं कि हर न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर कैंसर भी नहीं होता। पर शुरुआती चरणों में बीमारी का पता नहीं चलने पर यह कैंसर में तब्दील हो जाता है। सर्जरी, हार्मोनल इंजेक्शन, रेडिएशन व कीमोथेरपी के संयुक्त इस्तेमाल से इसका इलाज संभव है। यह मरीज व ट्यूमर की स्थिति पर निर्भर करता है कि इलाज के कौन से तरीके कारगर साबित होंगे। एम्स के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. निखिल टंडन ने कहा कि इस बीमारी के नाम में न्यूरो शब्द जुड़े होने का यह मतलब नहीं कि यह ट्यूमर ब्रेन में होगा। सामान्य तौर पर यह ट्यूमर पेट से संबंधित अंगों व फेफड़े में होता है। वैसे बीमारी फैलने पर ट्यूमर शरीर के किसी भी हिस्से में पहुंच सकता है। यह हार्मोन ग्रंथियों व तंत्रिका तंत्र से जुड़ा न्यूरोएंडोक्राइन सेल होता है। कई बार यह बढ़ने से ट्यूमर बन जाता है। उन्होंने कहा कि अभी यह तो नहीं मालूम कि इरफान खान को यह ट्यूमर शरीर के किस हिस्से में है पर हार्मोन ग्रंथियों में यह ट्यूमर अधिक होता है। पैंक्रियाज भी हार्मोन ग्रंथी है। इसके अलावा किडनी के ऊपरी हिस्से में स्थित एडरेनल ग्लैंड, थायराइड व अन्य हार्मोन ग्रंथियों में भी यह ट्यूमर होता है। इसका इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि ट्यूमर शरीर के किस हिस्से में है।
गंगाराम अस्पताल के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी के चेयरमैन डॉ. सौमित्र रावत ने कहा कि यहां इस बीमारी से पीड़ित मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। शुरुआती चरण में बीमारी का पता चलने पर सर्जरी कर ट्यूमर निकाल दिया जाता है। एडवांस स्टेज में कीमो व रेडियोथेरेपी की जरूरत पड़ती है। उन्होंने कहा कि एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स का निधन इस बीमारी के कारण ही हुआ था। उनके पैंक्रियाज में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर था।
एम्स के पूर्व डीन व मैक्स अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ डॉ. पीके जुलका ने कहा कि यह ट्यूमर तीन ग्रेड के होते हैं। पहले ग्रेड में सर्जरी से ट्यूमर निकाले जाने के बाद मरीज को हार्मोनल इंजेक्शन दिया जाता है। ग्रेड दो में सर्जरी, हार्मोनल इंजेक्शन के साथ कुछ मरीजों को न्यूक्लियर मेडिसिन की जरूरत पड़ सकती है। इन दो चरणों में इलाज के परिणाम ज्यादा अच्छे होते हैं। ग्रेड तीन में सर्जरी के साथ कीमो व रेडियोथेरपी का इस्तेमाल करना पड़ता है। इस स्थिति में 50 फीसद मरीज करीब पांच साल तक ठीक रह पाते हैं।
पैंक्रियाज में यह ट्यूमर होना खतरनाक
डॉक्टर कहते हैं कि पैंक्रियाज में यह ट्यूमर होना खतरनाक होता है। एम्स द्वारा संचालित दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री के वर्ष 2016 में प्रकाशित रिपोर्ट में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर कैंसर के 23 मामलों का जिक्र है। इसमें से सात मरीजों को यह ट्यूमर पैंक्रियाज में व छह मरीजों को फेफड़े में था। इसके अलावा तीन मरीजों को हड्डी में, दो मरीजों को नाक में, एक-एक मरीज को पेट, छोटी आंत, कोलन, गॉलब्लाडर व त्वचा में यह बीमारी थी।