दिल्ली में मैली हो रही यमुना का गाजियाबाद और हरियाणा से कनेक्शन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का चौंकाने वाला खुलासा
दिल्ली में भाजपा सरकार यमुना नदी को तीन साल में साफ करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। यमुना में प्रदूषण का मुख्य कारण इसमें गिरने वाले नाले हैं जिनमें औद्योगिक कचरा और सीवेज शामिल है। गाजियाबाद और हरियाणा से आने वाले नालों की सफाई भी जरूरी है। एनजीटी के निर्देशों के बावजूद प्रदूषण का स्तर अभी भी बहुत अधिक है जिस पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार प्रयासरत है।

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली में भाजपा सरकार बनने के बाद यमुना की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसे तीन साल के भीतर साफ करने का लक्ष्य रखा गया है। यमुना प्रदूषण का मुख्य कारण इसमें गिरने वाले नाले हैं।
दिल्ली में लगभग 200 छोटे-बड़े नाले नदी में गिरते हैं। इनकी सफाई और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) व विकेन्द्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (डीएसटीपी) लगाने का काम शुरू हो गया है। इसके अलावा, पड़ोसी राज्यों से आने वाले नालों की भी सफाई की आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का सीवेज भी दिल्ली में यमुना में गिरता है। इसी तरह, नजफगढ़ नाले में गुरुग्राम और हरियाणा के अन्य स्थानों से सीवेज गिरता है।
गाजियाबाद जिले के लोनी से निकलने वाला साहिबाबाद नाला और दिल्ली में यमुना में गिरने वाला इंदिरापुरी नाला। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की जुलाई की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों नाले सबसे अधिक प्रदूषित हैं।
जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और रासायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी) का स्तर निर्धारित सीमा से काफी ऊपर है। बीओडी का स्तर 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। साहिबाबाद नाले में यह 220 मिलीग्राम प्रति लीटर और इंदिरापुरी नाले में 140 मिलीग्राम प्रति लीटर है। बढ़ते प्रदूषण के कारण नालों में केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) भी बहुत अधिक है।
उच्च सीओडी का अर्थ है कि पानी में कार्बनिक पदार्थ अधिक हैं, जिससे घुलित ऑक्सीजन (डीओ) कम हो जाती है और बीओडी बढ़ जाता है। यह जलीय जीवन और मानव जीवन के लिए हानिकारक है। औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि रसायनों और अपशिष्ट जल से कार्बनिक पदार्थ पानी में प्रवेश करते हैं, जिससे सीओडी बढ़ जाता है।
सीओडी में वृद्धि से बीओडी का स्तर भी बढ़ जाता है। इन नालों में कुल निलंबित ठोस (टीएसएस) का स्तर भी मानक (100 मिलीग्राम प्रति लीटर) से अधिक है।
लगभग 1,700 औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला अपशिष्ट और घनी आबादी वाले क्षेत्रों का सीवेज इन नालों में गिरता है। सामाजिक कार्यकर्ता सुशील राघव ने इस मामले को लेकर एनजीटी में याचिका दायर की थी।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इन नालों को प्रदूषण मुक्त करने का निर्देश दिया था, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। राघव का कहना है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट नालों में न बहे। सीवेज को नालों में जाने से रोकने के भी प्रबंध किए जाने चाहिए।
यमुना निगरानी समिति की बैठकों में पिछले वर्षों में इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की गई थी। बताया गया था कि साहिबाबाद और लोनी यमुना के प्रदूषण का 15 प्रतिशत हिस्सा हैं। इन दोनों शहरों में 475 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज के उपचार के लिए सात एसटीपी हैं। इनमें से केवल दो ही मानकों के अनुसार काम कर रहे हैं।
दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि नजफगढ़ नाले के बाद, शाहदरा नाला यमुना में सबसे अधिक प्रदूषण फैलाता है। शाहदरा नाले में गाजियाबाद जिले से सीवेज आ रहा है।
- साहिबाबाद नाला: इसका उद्गम गाजियाबाद के लोनी क्षेत्र में होता है। लोनी के बाद, यह टीला मोड़, पसुंडा, शालीमार गार्डन, शहीद नगर, रामप्रस्थ ग्रीन, साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र साइट-4, वैशाली और गाजीपुर से होकर शाहदरा नाले के माध्यम से यमुना नदी में मिल जाता है। इसकी लंबाई लगभग 35 किलोमीटर है।
- इंद्रपुरी नाला: यह 12 किलोमीटर लंबा नाला भी लोनी से निकलता है और पूर्वी दिल्ली के जौहरीपुर में शाहदरा नाले में मिल जाता है।
डीपीसीसी की जुलाई 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, साहिबाबाद नाले, इंदिरापुरी नाले और शाहदरा नाले की प्रदूषण स्थिति
नाला |
| COD | BOD | ||
---|---|---|---|---|---|
साहिबाबाद | 410 | 536 | 220 | - | |
इंद्रपुरी | 510 | 372 | 140 | - | |
शाहदरा | 120 | 193 | 80 | - |
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के क्षेत्रीय अधिकारी अंकित सिंह का कहना है कि इस नाले के लिए कोई बजट उपलब्ध नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का काम निगरानी करना है और इसके लिए एक समिति गठित की गई है।
इंदिरापुरम में सीवेज के पानी के उपचार के लिए तीन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) संचालित हैं। इनमें से एक 74 एमएलडी और दो 56 एमएलडी के हैं। अधिकांश सीवेज जल यहीं शोधित होकर औद्योगिक क्षेत्र में पहुँचाया जाता है। शाहदरा नाले में केवल थोड़ी मात्रा में जल प्रवाहित होता है।
हर हफ्ते नमूने लेता है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
क्षेत्रीय अधिकारी का कहना है कि एसटीपी की निगरानी के लिए हर हफ्ते नमूने लिए जाते हैं। साल में पांच-छह बार ऐसा होता है जब नमूने फेल हो जाते हैं। फेल होने पर जुर्माना लगाया जाता है। पिछले साल लगभग पाँच बार जुर्माना लगाया गया है।
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