2023 के हालात से नहीं ली सीख, बाढ़ में बहे डीडीए के करोड़ों रुपये; सभी 10 परियोजनाओं पर फिरा पानी
यमुना में बाढ़ के कारण डीडीए को करोड़ों का नुकसान हुआ है जिससे 2023 की बाढ़ से सबक न लेने की बात सामने आई है। डीडीए यमुना के किनारों को सुंदर बनाने के लिए कई परियोजनाओं पर काम कर रहा था जिनमें पेड़-पौधे लगाए गए और अन्य निर्माण कार्य किए गए। विशेषज्ञों का कहना है कि ये कार्य बाढ़ क्षेत्र के नियमों के अनुरूप नहीं थे जिससे भारी नुकसान हुआ।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। यमुना की बाढ़ में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को भी एक बार फिर से करोड़ों रुपये का नुकसान होने की आशंका है। हालांकि नुकसान के सही मूल्यांकन के लिए डीडीए बाद में इसका आंकलन कराएगा। लेकिन हैरानी इस बात की है कि 2023 की बाढ़ में भी डीडीए ने ऐसी ही स्थिति झेली थी, बावजूद इसके कोई सीख नहीं ली गई। अगर ली जाती तो कम से कम नुकसान का दायरा जरूर समेटा जा सकता था।
जानकारी के मुताबिक पल्ला से ओखला बैराज तक 22 किमी के दायरे में यमुना के किनारों पर सुंदरीकरण के लिए डीडीए 10 अलग अलग परियोजनाओं पर काम कर रहा है। हाल ही में एलजी वीके सक्सेना की अध्यक्षता में डीडीए की बोर्ड बैठक में इस बाबत 2025-26 में 82 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। यमुना के पारिस्थितिकी तंत्र के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए यमुना नदी के बाढ़ के मैदानों का कायाकल्प और जीर्णोद्धार ही केंद्र में रहा है।
बताया जाता है कि इनमें से विभिन्न परियोजनाओं के तहत लाखों पेड़ और सलेक्शन वन श्रेणी की कार्पेट घास लगाई गई है। बड़ी संख्या में अलंकृत फूल पौधे भी लगाए गए हैं। इसके अलावा स्कल्पचर, फुटपाथ, बेंच, हट और फव्वारों इत्यादि पर भी काफी रुपया खर्च किया जा चुका है।
अधिकारियों के मुताबिक इस कार्य को गति देने के पीछे एक प्रमुख कारण जहां एनजीटी द्वारा यमुना की सफाई के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति के निर्देश पर तय समय में यमुना के किनारों को आकर्षक बनाना रहा है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली में यमुना के पूरे किनारों पर रिवर फ्रंट विकसित करना रहा है।
लेकिन यमुना में आई बाढ़ ने सब बर्बाद कर दिया। अब एक बार फिर से सभी परियोजनाओं पर नए सिरे से काम करना पड़ेगा। केवल एक ''बांसेरा'' में बर्बादी थोड़ा कम हुई है क्योंकि वह थोड़ी ऊंचाई पर है। विशेषज्ञाें की मानें तो डीडीए यमुना किनारे जो काम कर रहा था, वो बाढ़ क्षेत्र के नियमों के अनुरूप था ही नहीं। इसीलिए वहां इतनी बर्बादी हुई।
बाढ़ क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। पेड़ पौधे भी वही लगाए जाने चाहिए, जो क्षेत्र के अनुकूल हों। सबसे अहम तथ्य यह कि बाढ़ क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखा जाए। यमुना के किनारों को संवार तो सकते हैं, लेकिन उसे पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों के अनुसार यमुना नदी के मुख्य चैनल के बाद राइबेरियन जोन व एक्टिव फ्लड जोन रहता है। यहां पर कोई गतिविधि स्वीकार्य नहीं है। इससे आगे ही कुछ होना चाहिए। जबकि यमुना में एकदम किनारे तक को योजना में शामिल कर लिया गया है, जो सही नहीं है।
आलम यह है कि अब डीडीए अधिकारियों से इस नुकसान को लेकर कोई जवाब देते भी नहीं बन रहा। यही कहा जा रहा है कि बाढ़ बीतने के बाद सारी स्थिति का आंकलन व मूल्यांकन किया जाएगा।
यमुना किनारे चल रही 10 परियोजनाओं का ब्यौरा
परियोजना | कुल क्षेत्र (हेक्टेयर) |
---|---|
असिता ईस्ट | 197 |
कालिंदी अविरल | 100 |
कालिंदी बायोडायवर्सिटी पार्क | 115 |
यमुना वाटिका | 200 |
अमृत बायोडायवर्सिटी पार्क | 108 |
घाट एरिया | 66 |
यमुना वनस्थली | 236.5 |
मयूर नेचर पार्क | 397.75 |
इको टूरिज्म एरिया | 30 |
हिंडन सरोवर | 45 |
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