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    बेस्टसेलर लेखकों ने बताया साहित्य की सफलता का मंत्र, लेखकों को नए विषयों पर लिखने की उठानी होगी चुनौती

    Updated: Sat, 14 Sep 2024 07:13 PM (IST)

    भव्य ऐतिहासिक व उत्साह से भरपूर जागरण संवादी के दूसरे दिन के पहले सत्र का मंच बेस्टसेलर लेखक अरविंद मंडलोई सत्य व्यास व लक्ष्मण यादव को समर्पित रहा जिनके साहित्य ने सफलता के नए कीर्तमान गढ़े हैं। उनका लिखा हर दिल को छुआ है। कृतियों की मांग दिल्ली जैसे महानगर के साथ बिहार के सुदूर गांव से भी निकल रही है।

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    जागरण संवादी कार्यक्रम में उपस्थित बाएं से लेखक नवीन चौधरी, सत्य व्यास, लक्ष्मण यादव व अरविंद मंडलोई (दाएं)।

    नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। भव्य, ऐतिहासिक व उत्साह से भरपूर जागरण संवादी के दूसरे दिन के पहले सत्र का मंच बेस्टसेलर लेखक अरविंद मंडलोई, सत्य व्यास व लक्ष्मण यादव को समर्पित रहा, जिनके साहित्य ने सफलता के नए कीर्तमान गढ़े हैं। उनका लिखा हर दिल को छुआ है। कृतियों की मांग दिल्ली जैसे महानगर के साथ बिहार के सुदूर गांव से भी निकल रही है।

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    स्वांत सुखाय दैनिक जागरण के ''बेस्टसेलर'' के सितारों ने कहा कि जो साहित्य जन से जुड़ी होगी, उनके दिल को छुते हुए जीवन से गुजरेगी। वह बिकेगी। दूसरे, उनकी सरल भाषा में साहित्य संदेश भी दें। वह स्वात: सुखाय हो, लेकिन साहित्यकारों को सुविधाजनक घेरे को तोड़कर नए विषयों पर लिखने की चुनौती भी उठानी होगी। उसके अलावा सफलता का कोई और मंत्र नहीं है।

    प्रो. लक्ष्मण यादव ने प्रोफेसर की डायरी, अरविंद मंडलोई ने जावेद अख्तर के जीवन आधारित पुस्तक जादूनामा तो सत्य व्यास की 1931 देश या प्रेम तथा बनारस टाकीज जैसी रचनाओं ने प्रसिद्धि दी है। यह तिकड़ी उन नए दौर के लेखकों में से हैं, जिनपर हिंदी साहित्य के प्रति युवाओं को जोड़ने का श्रेय तो जाता है, तो आरोप भी लगता है कि उन्होंने हिंदी भाषा के साथ खिलवाड़ की है।

    नवीन चौधरी के संचालन में मंच पर कबीर, प्रेमचंद्र व निराला जैसे कालजयी रचनाकारों व जनकारों की बानगी रखी गई, जिनकी अमर कृतियां आज भी तलाशी और पढ़ी जाती है। वह इसलिए क्योंकि उसमें जन, मन की बात है। बात अच्छा पढ़ने और लिखने तक पहुंची तो लक्ष्मण यादव ने कहा कि अच्छा लिखेंगे तो पढ़ी जाएगी। उसके लिए बागी भी होना पड़ेगा।

    समाज के पक्षपाती रुख पर बेबाकी से बात करनी होगी। सत्य व्यास ने कहा कि आज से करीब 100 वर्ष पूर्व भी पांडेय बेचन शर्मा उग्र और कुशवाहा कांत का विवाद भी भाषा पर था। उग्र का मानना था कि कुशवाहा कांत की लेखनी में हिंदी भाषा की गिरावट है, लेकिन आज उसी उग्र की क्लिष्ट हिंदी आज के अधिकांश लोगों को समझ नहीं आएगी।

    अरविंद मंडलोई ने साफगोई से कहा कि लेखन में आर्थिक पक्ष तो शामिल है, लेकिन वह उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितना की अच्छा लिखना। साथ ही उन्होंने किसी के जीवनी लेखन में उसके उन निजी पलों से बचने की सलाह दी, जिसका आम लोगों पर खास फर्क न पड़ता हो।

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