नहीं रहे मशहूर साहित्यकार कमल किशोर गोयनका, प्रेमचंद के साहित्य पर की थी ढेरों रिसर्च
Kamal Kishore Goenka Passed Away साहित्य जगत को एक बड़ा झटका लगा है। प्रख्यात साहित्यकार कमल किशोर गोयनका ने मंगलवार सुबह दिल्ली के अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के साहित्य के सर्वोत्तम विद्वान शोधकर्ता माने जाते थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। आइए कमल किशोर गोयनका के साहित्य में योगदान के बारे में जानते हैं...

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। साहित्यकार कमल किशोर गोयनका का दिल्ली में मंगलवार सुबह निधन हो गया। गोयनकाजी उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के साहित्य के सर्वोत्तम विद्वान शोधकर्ता माने जाते हैं। मुंशी प्रेमचंद पर उनकी अनेकों पुस्तकें व लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
फोर्टिस अस्पताल में चल रहा था इलाज
वे अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनका अंतिम संस्कार बुधवार को किया जाएगा। उनके बेटे संजय ने बताया कि नौ मार्च से उन्हें सांस लेने में तकलीफ के चलते फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे शुरुआत में कुछ दिन से आइसीयू में थे और इसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर भी रखा गया।

कमल गोयनका की 130 पुस्तकें हुईं प्रकाशित
मंगलवार सुबह करीब 7:30 उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके छोटे बेटे राहुल फिलहाल विदेश में हैं इसलिए उनका अंतिम संस्कार बुधवार को किया जाएगा। साहित्यकार कमल गोयनका की करीब 130 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं और प्रेमचंद के साहित्य पर उन्होंने काफी काम किया है।
युवाओं को पढ़ाई में की मदद
वे कई साल केंद्रीय हिंदी संस्थान, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार में बतौर उपाध्यक्ष रहे हैं। स्वजन ने बताया कि उनका जीवन संत की तरह रहा है जीवन में उन्होंने कई युवाओं की पढ़ाई पूरी कराने में भी योगदान दिया है।
डॉ. गोयनका ने दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्राध्यापक के तौर पर करीब 40 साल अध्यापन कार्य किया। केंद्रीय हिंदी संस्थान में बतौर उपाध्यक्ष जिम्मेदारी संभाली। वे डीयू के हिंदी अनुसंधान परिषद के आजीवन सदस्य रहे। वे हिंदी अकादमी (दिल्ली), भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) से पुरस्कृत भी हुए थे।
डॉ. गोयनका को मिले पुरस्कार व सम्मान
- भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता का ‘नथमल भुवालका पुरस्कार’
- हिंदी अकादमी, दिल्ली से दो बार पुरस्कृत एवं सम्मानित
- 1998 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘साहित्य भूषण’ पुरस्कार
- केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा का पं. राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार
- 2008, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार
- 2011, स्व. विष्णु प्रभाकर पुरस्कार
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार, साहित्य अकादमी, भोपाल, 2011
- अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच, द्वारा भावरमल सिंघी सम्मान
- केके बिड़ला फाउंडेशन का व्यास सम्मान, 2014
प्रेमचंद पर पीएचडी व डी.लिट करने वाले देश के पहले शोधार्थी
डॉ. गोयनका ने प्रेमचंद पर पीएचडी व डी. लिट करके देश में इकलौते शोधार्थी होने का गौरव हासिल किया था। उन्होंने प्रेमचंद के हजारों पृष्ठों के लुप्त व अज्ञात साहित्य को खोजकर सहेजा है।
उन्होंने प्रेमचंद के मूल दस्तावेजों, पत्रों, डायरी, बैंक पासबुक, फोटोग्राफ, पांडुलिपियों की तीन हजार वस्तुओं का संग्रह भी किया है। केंद्र सरकार के सहयोग से 1980 में ‘प्रेमचंद शताब्दी’ पर देश-विदेश में ‘प्रेमचंद प्रदर्शनी’कराई। साथ ही एक फिल्म भी बनवाई। मारिशस के महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट द्वारा 1989, 1994 व 1996 में प्रेमचंद पर कई गोष्ठियां कराईं।

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