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    Monsoon 2024: मानसून को समझने में कहां चूक रहा IMD, इस साल कई बार गलत साबित हुई 'भविष्यवाणी'

    Updated: Tue, 23 Jul 2024 09:30 AM (IST)

    मौसम विभाग मानसून को समझने में चूक रहा है। पूर्वानुमानों को लेकर विभाग की किरकिरी हो रही है। मौसम और भविष्यवाणी को लेकर विभाग की भविष्यवाणी कई बार गलत साबित हो रही है। मानसून के रुख में हुए परिवर्तन के चलते एक ही शहर में दो अलग ट्रेंड दिख रहे है। केवल 2022 में ही 96 प्रतिशत तक सटीकता दर्ज की गई थी।

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    मानसून के एक चौथाई पूर्वानुमानों में मौसम विभाग ने खाया गच्चा। फोटो- जागरण

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। संसाधनों की कमी कहें या आंकलन में खामी या फिर प्रकृति की माया... मौसम विभाग मानसून से पार नहीं पा रहा है। इस सीजन के लिए जारी पूर्वानुमानों में वह जब- तब गच्चा खा रहा है। अलर्ट भी अक्सर बदलने पड़ते हैं। आलम यह है कि हाल फिलहाल यह विभाग जनता के सवालों एवं अविश्वास दोनों के ही कठघरे में खड़ा हुआ है।

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    वैसे तो हर साल मानसून के पूर्वानुमानों में मौसम विभाग

    की किरकिरी होती है, लेकिन इस साल कुछ ज्यादा ही हो रही है। 28 जून को राजधानी में मानसून की दस्तक वाले दिन ही रिकॉर्ड वर्षा ने विभाग के दावों की कलई खोल दी थी। इसके बाद भी बार बार ऐसा होता रहा है कि कभी वर्षा का पूर्वानुमान बदलना पड़ता है तो कभी ग्रीन, यलो और आरेंज अलर्ट को।

    मौसम विभाग ने जून तक अपने पूर्वानुमानों की सटीकता को लेकर जो एक विश्लेषण जारी किया है, वह भी तस्दीक करता है कि पहले के मुकाबले मानसून के पूर्वानुमान कम सटीक साबित हो रहे हैं।

    2011 से से लेकर 2024 तक 14 साल में केवल 2022 ही ऐसा साल रहा है जब मानसून के पूर्वानुमान 96 प्रतिशत तक सही साबित हुए थे। इस बार तो अभी तक यह आंकड़ा केवल 77 प्रतिशत ही है।

    एक ही शहर में दिख रहे दो अलग ट्रेंड

    मानसून के रुख में हुए परिवर्तन के चलते एक ही शहर में दो अलग-अलग तरह के ट्रेंड देखने को मिल रहे हैं। किसी हिस्से में तो बहुत ज्यादा वर्षा हो जाती है तो कुछ हिस्सों को हल्की- फुल्की बरसात से ही संतोष करना पड़ रहा है। इस तरह की वर्षा को ''पैची रेन'' कहा जाता है।

    जलवायु परिवर्तन का भी दिख रहा है असर

    मौसम विज्ञानियों का कहना है कि यूं तो दुनिया भर में ही मौसम पर जलवायु परिवर्तन का खासा असर दिख रहा है। लेकिन, भारत जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसका असर सर्वाधिक नजर आ रहा है।

    उष्णकटिबंधीय से अभिप्राय यह है कि हिमालय पर्वत एशिया की ठंडी हवा को उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों तक पहुंचने से रोककर मानसून को भी रोक लेता है, जो पूरे देश में बरसात लाता है। हालांकि इसके बावजूद विभाग नए मॉडल, राडार और रैन गोज के सहारे भविष्य में बरसात और मानसून के पूर्वानुमान भी अधिक सटीक बनाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है।

    दरअसल, मानसून के दौरान मौसमी परिस्थितियों में बहुत तेजी से बदलाव होता है। कभी यह बदलाव बहुत छोटे तो कभी बहुत बड़े स्तर पर देखने को मिलता है। इसीलिए कई बार पूर्वानुमान की सटीकता गलत हो जाती है। हालांकि इसमें अधिकाधिक सुधार के यथासंभव प्रयास चल रहे हैं। आने वाले वर्षों में पूर्वानुमान और सटीक होने के आसार हैं।

    -डॉ. मृत्युंजय महापात्रा, महानिदेशक, मौसम विभाग

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