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    JNU Violence: आखिर जेएनयू में ही क्यों पैदा होते हैं विवाद? शिक्षाविदों ने बताई हैरान कर देने वाली वजह

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Mon, 11 Apr 2022 08:10 PM (IST)

    JNU Violence जेएनयू प्रोफेसर हरिराम मिश्रा कहते हैं कि वामपंथियों ने शैक्षणिक संस्थानों का स्तर गिरा दिया। बंगाल इसका उदाहरण है। जेएनयू का शैक्षणिक मा ...और पढ़ें

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    सुरक्षा के लिए जेएनयू के गेट पर तैनात पुलिसकर्मी। विपिन कुमार

    नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने देश को कई अर्थशास्त्री, इतिहासकार, शिक्षाविद दिए। एनआइआरएफ रैंकिंग में भी जेएनयू लगातार सर्वश्रेष्ठ तीन विश्वविद्यालयों में शामिल रहता है। लेकिन यह जेएनयू का दुर्भाग्य ही है कि इसकी चर्चा शैक्षणिक गतिविधियों से ज्यादा विवादों की वजह से होती है। जेएनयू परिसर में कभी महिषासुर की पूजा तो कभी दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ जवानों के बलिदान पर जश्न मनाया गया। हद तो तब हो गई जब परिसर में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाए गए। जेएनयू आज तक इस प्रकरण से उबर नहीं पाया है।

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    वामपंथी संगठनों की करतूतों की वजह से जेएनयू की छवि धूमिल हो रही है। हालिया प्रकरण भी वामपंथ के चेहरे से सेक्युलरिज्म का नकाब उतारता है।

    जेएनयू प्रो. अंशु जोशी कहतीं हैं कि विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही वामपंथियों का यही कृत्य रहा है। ये सेक्युलर होने का दावा करते हैं लेकिन जब बात हिंदुत्व की आती है तो असहिष्णु हो जाते हैं। रामनवमी की घटना भी कमोबेश इसी सोच का नतीजा है।

    एबीवीपी की पूर्व काउंसलर रही अंशु जोशी कहतीं है कि लंबे प्रयास के बाद जेएनयू में रेलवे रिजर्वेशन काउंटर शुरू किया गया। उद्घाटन के लिए तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी को आना था। वामपंथी छात्र संगठनों के विरोध की वजह से वो परिसर में आ नहीं पाए। जबकि इस कार्यक्रम के चंद दिनों पहले ही अलगाववादी नेता यासीन मलिक की परिसर में सभा आयोजित हुई थी।

    (जेएनयू हिंसक झड़प में घायल एबीवीपी छात्र बाएं से शैतान सिंह, दिव्या, जेएनयू में एबीवीपी अध्यक्ष रोहित कुमार घटना का पोस्टर दिखाते व दाएं रविराज। फोटो- विपिन कुमार) 

    वहीं दिल्ली विवि के कार्यकारी परिषद के सदस्य प्रो. वीएस नेगी कहते हैं कि वामपंथी विचारधारा अप्रासंगिक हो चुकी है। वामपंथी संगठन अब राजनीति करने के लिए इस प्रकार की हरकत कर रहे हैं। जानबूझकर समय समय पर ऐसे विवादों को जन्म देते हैं। रामनवमी पूजा के विरोध का कोई औचित्य नहीं। जेएनयू में वर्षाें से नवरात्र और रमजान साथ साथ मनाने की सौहार्दपूर्ण परंपरा को खिलता देख वामपंथी परेशान थे। इसलिए विवाद खड़ा किए।

    जेएनयू प्रोफेसर हरिराम मिश्रा कहते हैं कि वामपंथियों ने शैक्षणिक संस्थानों का स्तर गिरा दिया। बंगाल इसका उदाहरण है। जेएनयू का शैक्षणिक माहौल खराब होने से बचाया जाए। परिसर में किसी भी प्रकार की हिंसा को प्रश्रय नहीं दिया जाना चाहिए। जो आरोपी है, उनको दंडित करना चाहिए। ताकि भविष्य में इस तरह की घटना दोबारा नहीं हो।

    जेएनयू में हुए विवाद

    वर्ष 2010ः छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों के हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए। आरोप लगा कि वामपंथी छात्र संगठनों ने इसकी खुशी मनाई।

    वर्ष 2014ः जेएनयू परिसर में महिषासुर बलिदान दिवस नाम से कार्यक्रम आयोजित किया गया। आरोप लगे कि पर्चे बांटे गए, जिसमें देवी दुर्गा के बारे में आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया गया।

    फरवरी 2016 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। आरोप है कि देश विरोधी नारे लगाए गए।

    वर्ष दिसंबर 2020ः नकाबपोश लोग परिसर में घुस गए और छात्रों के साथ मारपीट की। कई छात्रों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।