आवारा कुत्तों पर तो चेत गए, पर बंदरों के आतंक पर कौन दे ध्यान; चौंका देगी दिल्ली की ये रिपोर्ट
दिल्ली में आवारा कुत्तों के बाद अब बंदरों का आतंक बढ़ रहा है जिससे लोग परेशान हैं। 2007 में बंदर के हमले से एक उप महापौर की मौत हो गई थी। हाईकोर्ट ने नगर निगम को बंदर पकड़कर असोला भाटी माइंस में छोड़ने के निर्देश दिए थे लेकिन बंदरों की संख्या कम नहीं हो रही है। हर साल बंदरों के हमले की करीब 2000 घटनाएं होती हैं।

निहाल सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली में आवारा कुत्तों के आतंक से लोग परेशान हैं। कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ीं तो बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इस आतंक को थामने के लिए आदेश जारी किया।
इसके बाद धीमी गति से ही सही, निगम ने कुछ काम आरंभ कया है, लेकिन दिल्लीवासी एक और बड़ी समस्या से दो चार हैं, यह समस्या है बंदरों के बढ़ते हमले की। 21 अक्टूबर 2007 को रविवार की सुबह विवेक विहार स्थित अपने आवास की बालकनी में बैठे तत्कालीन उप महापौर सुरेंद्र सिंह बाजवा पर बंदर ने हमला कर दिया। वह बालकनी से गिर गए और उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी।
यह दिल्ली में पहली बड़ी घटना थी जब बंदर के हमले से किसी की जान गई थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने नगर निगम को बंदर पकड़कर दक्षिणी दिल्ली के असोला भाटी माइंस स्थित वन क्षेत्र में छोड़ने के निर्देश दिए थे। बंदर वापस रिहायशी क्षेत्र में न आएं, इसके लिए खाने की व्यवस्था करनी होगी। इसका इंतजाम वन्य जीव विभाग करेगा।
एमसीडी और एनडीएमसी का दावा है कि हर साल करीब 2,000 बंदरों को असोला भाटी माइंस में छोड़ा जा रहा है, लेकिन बंदरों की संख्या और हमले की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में हर साल बंदरों के हमले की करीब 2,000 घटनाएं होती हैं। लुटियंस से लेकर यमुनापार तक लोग बंदरों के आतंक के परेशान हैं।
सोमवार को भी शास्त्री भवन में केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी दीपक खेड़ा पर बंदर ने हमला किया तो वह सातवीं मंजिल से गिर गए। उनका इलाज चल रहा है। 2007 से पूर्व बंदरों को दिल्ली के रजोकरी स्थित वन क्षेत्र में जाल में रखा जाता था, लेकिन बीच झगड़े और मौत से हाईकोर्ट के आदेश के बाद बंदरों के दूसरे राज्यों में छोड़ने की बात कही गई।
शुरू नहीं हुआ बंध्याकरण
हाईकोर्ट के आदेश पर वन्य जीव विभाग को आसोला भाटी माइंस में बंदरों का बंध्याकरण कराना था। निविदाएं भी आमंत्रित की गईं, लेकिन स्वयंसेवी संगठनों के दबाव के कारण कोई एजेंसी आगे नहीं आई।
2018 में वन्य जीव विभाग ने तीसरी बार सात करोड़ की राशि से 25 हजार बंदरों की बंध्याकरण के लिए निविदा आमंत्रित की, फिर भी कोई एजेंसी आगे नहीं आई। 2019 में केंद्र सरकार से 5.43 करोड़ का फंड वन्य जीव विभाग को मिला। विभाग बंध्याकरण शुरू नहीं कर पाया।
मंदिर मार्ग से लेकर एनडीएमसी इलाके में बंदरों से बहुत समस्या है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों पर हमले होते रहते हैं, लेकिन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। कहने को तो बंदरों को खाना खिलाने पर जुर्माना है, लेकिन एनडीएमसी इलाके में आसानी से बंदरों को फल आदि खरीद कर खिलाने वाले आसानी से दिख जाते है। घरों में बंदर घुस जाते हैं और लोगों के कीमती सामान तक ले जाते हैं। - प्रीतम धारीवाल, आरडब्ल्यूए अध्यक्ष, गोल मार्केट
बंदरों की समस्या का एक ही समाधान है कि लोग बंदरों को इधर-उधर खाना खिलाना बंद करें। साथ ही सरकार को भी चाहिए कि वह बंदरों का बंध्याकरण करके इनकी संख्या कम करें क्योंकि कई बार बंदरों को असोला भाटी माइंस में छोड़ दिया जाता है, लेकिन वह वहां से फिर वापस रिहायशी क्षेत्र में आ जाते हैं। - डा.वीके सिंह, पूर्व निदेशक, पशु चिकित्सा सेवाएं, एमसीडी
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