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    Ram Mandir: अयोध्या में बरस रही थी पुलिस की लाठी, गूंज रहा था जय श्रीराम

    Updated: Thu, 18 Jan 2024 03:27 PM (IST)

    लाठीचार्ज की घटना के बाद 22 दिसंबर 1990 को अयोध्या में सत्याग्रह हुआ था। इसमें वह आठ माह की गर्भवती पत्नी सिया देवी के जिद करने पर उन्हें साथ लेकर अयोध्या पहुंचे थे। उस समय कारसेवक राम मंदिर की परिक्रमा करते थे और जय श्रीराम के नारे लगाते थे। हर किसी की जुबां पर सिर्फ रामलाल हम आएंगे मंदिर वहीं बनवाएंगे के नारे लगाते थे।

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    अयोध्या में सत्याग्रह में गर्भवती पत्नी सिया देवी पीली साड़ी के साथ जाते लाल टाई में जगवीर सिंह

    दीपक गुप्ता, दक्षिणी दिल्ली। दिल्ली के सौरभ विहार के रहने वाले जगवीर सिंह बताते हैं कि 30 अक्टूबर 1990 में अयोध्या में जो हुआ, उसकी यादें आज भी मेरे मन-मस्तिक में तैर रही हैं। सरयू पुल से कुछ ही आगे बढ़े थे कि कारसेवकों पर अचानक पुलिस की लाठियां बरसने लगीं।

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    लाठियों और गोलियों के बीच अगर कुछ और सुनाई दे रहा था तो वह जय श्रीराम का नारा था। उस समय देशभर के रामभक्तों की तरह मैने भी रामलला को तिरपाल से निकालने का सपना देखा था, जो 22 जनवरी को पूरा होने जा रहा है। यह मेरे जीवन में सबसे ज्यादा खुशी का पल होगा। अब फरवरी में स्वजन के साथ अयोध्या जाने की योजना है।

    भगवान श्रीराम मंदिर में जगवीर सिंह अपनी पत्नी सिया देवी के साथ पूजा अर्चना करते: सौ. स्वंय

    जगवीर सिंह ने बताया कि 1990 में स्वंयसेवक संघ के आह्वान पर 25 अक्टूबर 1990 की सुबह 42 लोगों के साथ वह नई दिल्ली से ट्रेन से रवाना हुए थे। कारसेवकों की ट्रेन जब अलीगढ पहुंची तो वहां पुलिस ने एक-एक डिब्बा चेक किया। इसके बाद ट्रेन लखनऊ पहुंची तो वहां पुलिस तैनात थी।

    वहां पहले से खड़े कार्यकर्ताओं ने इशारा कर दिया कि वापस जाओ और ट्रेन से न उतरना। इसके बाद वह वापस इटावा पहुंचे। इसके बाद दूसरी ट्रेन से गोंडा पहुंच और पुलिस से बचते हुए पैदल ही खरिया गांव में रुके। वहां एक घर में खाना खाने के बाद चार दिन तक पैदल चलते रहे।

    29 अक्टूबर को तुलसीपुर माजा गांव में एक झोपडी में ठहरे। 30 अक्टूबर की सुबह सरयू नदी को पार करके जैसे ही कटरा पुल पर पहुंचे तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। पीठ पर पुलिस की कई लाठियां पड़ीं, लेकिन मुख से सिर्फ जय श्रीराम ही निकलता रहा। कारसेवक जब लाठी से नहीं डरे तो वहां गोलीबारी शुरू हो गई।

    गोली बारी में कुछ कारसेवक उनकी आंखों के सामने ही दम तोड़ते रहे। वह किसी तरह वहां से निकले और कटरा वाला पुल के नीचे छिपे। 30 अक्टूबर की रात वहां गुजारी। उसके बाद जैसे-तैसे खेतों से होते हुए दिल्ली पहुंचे।

    गर्भवती पत्नी के साथ पहुंचे थे सत्याग्रह

    लाठीचार्ज की घटना के बाद 22 दिसंबर 1990 को अयोध्या में सत्याग्रह हुआ था। इसमें वह आठ माह की गर्भवती पत्नी सिया देवी के जिद करने पर उन्हें साथ लेकर अयोध्या पहुंचे थे। उस समय कारसेवक राम मंदिर की परिक्रमा करते थे और जय श्रीराम के नारे लगाते थे।

    हर किसी की जुबां पर सिर्फ रामलाल हम आएंगे, मंदिर वहीं बनवाएंगे के नारे लगाते थे। वहां तैनात पुलिस कारसेवकों को गिरफ्तार कर लखनऊ छोड़ती थी। उन्हें भी गिरफ्तार कर लखनऊ छोड़ा था। इसके बाद वह पत्नी के साथ दिल्ली वापस आ गए।

    बल्ली से गिराई दीवार

    जगवीर सिंह बताते हैं कि अपने साथियों के साथ दो दिसंबर 1992 को एक बार फिर अयोध्या गए थे। उस समय दो दिन रुकने के बाद छह दिसंबर को बल्ली उठाकर दीवार गिरानी शुरू कर दी थी।

    सभी की जुबां पर सिर्फ जय श्रीराम के नारे थे। विवादित ढांचा गिराने के बाद एक ईंट लेकर घर आ गए थे। पत्नी ने 1992 में भी जाने की जिद की, लेकिन बेटी छोटी थी। इसकी वजह से पत्नी को नहीं ले जा सके थे।