क्या है अर्बन हीट आइलैंड? जिसके कारण भट्ठी बनी दिल्ली; नहीं हुई देर... इन उपायों से कम हो सकती है घातक गर्मी
अर्बन हीट आइलैंड के कारण दिल्ली में गर्मी बढ़ रही है। जानिए क्या है अर्बन हीट आइलैंड और कैसे कम की जा सकती है ये घातक गर्मी। इस आर्टिकल में दिल्ली के बढ़ते तापमान के कारणों इसके प्रभावों और इसे कम करने के उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी के तौर पर पहचानी जाने वाली दिल्ली अब अर्बन हीट आइलैंड का शहर भी बनती जा रही है।
साल दर साल यहां पर ऐसे क्षेत्रों की संख्या बढ़ रही है, जहां का तापमान उनके आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के तापमान से अधिक रहता है। राजधानी में निर्माण कार्य तेजी से हो रहे हैं और कंक्रीट का जंगल फैलता जा रहा है।
सरकारी उपेक्षा के कारण यहां विगत एक दशक के दौरान हरियाली में मात्र 2.8 प्रतिशत की वृद्धि हो सकी है। यही वजह है कि विगत एक दशक में दिल्ली का औसत तापमान सात से आठ डिग्री तक बढ़ गया है और अर्बन हीट आइलैंड में करीब आठ गुना तक की वृद्धि हुई है, जो 2014 में सात से बढ़कर अब 60 हो गए हैं।
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10 साल पहले 30 से 33 डिग्री तक रहता था तापमान
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि 2014 में मई का औसत तापमान 30 से 33 डिग्री तक रहता था। कुछ ही इलाकों में यह 34 डिग्री या इससे अधिक जाता था, जबकि 2025 में स्थिति यह है कि अप्रैल में ही यह 40 डिग्री पार कर चुका है।
राजधानी में दिन ही नहीं, रातें भी गर्म हो रही हैं। केंद्र सरकार की वर्ष 2013 की स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में हरियाली कुल क्षेत्रफल का 20.08 प्रतिशत थी, जबकि यह 2024 में मात्र 2.8 प्रतिशत बढ़कर 23.6 प्रतिशत हो पाई है।
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क्या है अर्बन हीट आइलैंड
जब किसी शहर में आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले तापमान में अधिक बढ़ोतरी हो जाती है, तब उसे अर्बन हीट आइलैंड कहते हैं। इसकी बड़ी वजह है इंसानी गतिविधियां।
किसी भी क्षेत्र के हीट आइलैंड बनने में सबसे अहम भूमिका उसकी बसावट की होती है। वो शहर किस तरह का है, वहां इमारतें कैसी हैं और उसे किस तरह से डिजाइन किया गया है, हरियाली की स्थिति कैसी है, जलाशयों का दायरा कितना है, यातायात व्यवस्था कैसी है, यही बातें सबसे अहम होती हैं।
दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में तापमान बढ़ने और इनके हीट आइलैंड में तब्दील होने में भी यही कारक मुख्यतया जिम्मेदार हैं। सिर्फ यही नहीं बिल्डिंग में ईंट की जगह शीशे और स्टील का बढ़ता इस्तेमाल भी गर्मी के असर को बढ़ाने में मदद करता है।

हीट आइलैंड में लू के दिन भी ज्यादा
2024 की गर्मियों के दौरान मंगेशपुर, नजफगढ़, और जाफरपुर में लू का प्रकोप सबसे अधिक रहा था। उस वर्ष मई में जहां सफदरजंग क्षेत्र में लू के दिनों की संख्या महज पांच रही थी, वहीं मंगेशपुर, नजफगढ़ व जाफरपुर में इनकी संख्या नौ से दस थीं।
उसी साल 3 अप्रैल को रिज का अधिकतम तापमान 40.4 डिग्री, सफदरजंग का 39 डिग्री, मयूर विहार का 35.8 डिग्री, राजघाट का 36.6 डिग्री और पूसा का 36.4 डिग्री रहा था।
बढ़ा कंक्रीट का जंगल
पिछले चार दशकों में दिल्ली में कंक्रीट का जंगल काफी बढ़ा है, जो अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव में भी वृद्धि कर रहा है। वर्ष 2000 के बाद दिल्ली में तेजी से विकास कार्य हुए हैं। निर्माण कार्यों में इजाफा हुआ।
खाली पड़ी जमीन पर फ्लैटों का निर्माण हुआ है तो हरित क्षेत्र बढ़ाने के नाम पर भी वृक्ष के बजाय झाड़ियां अधिक लगाई गईं। वर्ष 2003 में दिल्ली का 31.4 प्रतिशत हिस्से पर निर्माण था, जबकि अब यह बढ़कर 40 प्रतिशत को पार कर चुका है।

वाहनों की संख्या सवा करोड़ पार, ईंधन से बढ़ रहा तापमान
2011 में दिल्ली में वाहनों की संख्या करीब 80 लाख थी। हर साल इसमें तीन से चार प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। वर्तमान में यह संख्या करीब 1.25 करोड़ तक पहुंच चुकी है।
करीब 15 लाख वाहन रोजाना एनसीआर से भी दिल्ली आते हैं। इनके ईंधन से निकलने वाली गर्म गैसें तापमान बढ़ाती हैं।
सार्वजनिक परिवहन सेवा ठीक न होने के कारण वाहनों की संख्या भी काफी बढ़ गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इसी के चलते शहर की खुद को ठंडा कर पाने की क्षमता में 12 से 21 प्रतिशत तक की कमी आई है।
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बढ़ती आबादी व बसावट
2011 में दिल्ली की आबादी 1.38 करोड़ थी, जो अब तीन करोड़ मानी जा रही है। इसकी बसावट के लिए डीडीए ने द्वारका, नरेला और रोहिणी में हजारों फ्लैट बनाए हैं। 2014 में अनधिकृत कालोनियों की संख्या 1731 थी, वो अब करीब दो हजार तक पहुंच गई।
घातक है बढ़ती गर्मी
दिल्ली में प्री-मानसून में लू और मानसून में हीट इंडेक्स लोगों के लिए घातक बनते जा रहे हैं। सही मायने में पूरी राजधानी ही अर्बन हीट आइलैंड में बदल रही है।
गर्मियों के दौरान कुछ हिस्सों में तो तापमान 48 और 49 डिग्री तक दर्ज हो रहा है। यही वजह है कि हीट स्ट्रोक के शिकार लोगों की संख्या भी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है।
दिल्ली के कुछ प्रमुख अर्बन हीट आइलैंड
एमसीडी के नरेला और नजफगढ़ जोन, हरकेश नगर, ख्याला, वजीरपुर, बिजवासन, विश्वास नगर, हरि नगर, जहांगीरपुरी, दिल्ली गेट, शास्त्री पार्क, बवाना, रोहिणी, राजौरी गार्डन, संगम विहार, जैतपुर, बदरपुर, आइजीआइ एयरपोर्ट क्षेत्र, पालम, जाफरपुर, छतरपुर, मंगेशपुर, मुंडका, शाहदरा, लोधी रोड, रिज, पूसा, राजघाट, पीतमपुरा, आयानगर। इनमें से 16 स्थान वर्ष विगत छह वर्षों में हीट आइलैंड में परिवर्तित हुए हैं।
कैसे कम होगी यह गर्मी
शहरों में ऐसे हीट आइलैंड न बनें, इसका सबसे बड़ा उपाय है चारों तरफ हरियाली यानी पेड़-पौधों की संख्या को बढ़ाना। खुली जगहों पर पौधे लगाकर तापमान में कमी लाई जा सकती है।
इसके लिए टैरेस गार्डन और किचन गार्डन बनाए जा सकते हैं। यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है। छत पर सफेद रंग से पुताई करा सकते हैं।
ऐसे कई तरीकों को अपनाकर गर्मी के असर को कम किया जा सकता है। इसके अलावा ऐसी चीजों के इस्तेमाल को बढ़ावा दें जो बिजली की खपत को कम करें। एसी का जरूरत भर ही इस्तेमाल करें। जहां पर पंखे और कूलर से काम चल सकता है, वहां इनका ही इस्तेमाल करें।

फ्लैट तैयार करते समय भी रखें ध्यान
मकान या फ्लैट तैयार करते समय शहर की भौगोलिक स्थिति और स्थानीय मौसम को भी ध्यान में रखना जरूरी है। खिड़कियों को ओपन स्पेस की तरफ बनाना चाहिए।
बिल्डिंग को इस तरह से डिजाइन किया जाना जाए कि अधिक से अधिक फ्लैटों को ओपन स्पेस की तरफ खिड़कियां मिलें। खिड़कियों के साइज भी कमरों के साइज के हिसाब से तय करने चाहिए, ताकि कमरों के अंदर की हवा ताजी हवा से बदल सके।


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