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दिल्ली में उपराज्यपाल क्यों? राज्यपाल और उपराज्यपाल में क्या अंतर? जानें इनकी शक्तियों के बारे में

Difference between Governor and Lieutenant Governor केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं दिल्ली पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर में अपनी विधानसभाएं हैं। दिल्ली और पुडुचेरी में निर्वाचित सरकार है। राज्यपाल और उपराज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होता है। आइए जानते हैं राज्यपाल और उपराज्यपाल के बारे में....

By Geetarjun GautamEdited By: Published: Mon, 23 May 2022 11:16 PM (IST)Updated: Mon, 23 May 2022 11:16 PM (IST)
दिल्ली में उपराज्यपाल क्यों? राज्यपाल और उपराज्यपाल में क्या अंतर? जानें इनकी शक्तियों के बारे में
दिल्ली में उपराज्यपाल क्यों? राज्यपाल और उपराज्यपाल में क्या अंतर है?

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। विनय कुमार सक्सेना दिल्ली के नए उपराज्यपाल बने हैं। उपराज्यपाल एक संवैधानिक प्रमुख होता है, उपराज्यपाल सिर्फ केंद्र शासित राज्यों में होता है। जबकि राज्यों में राज्यपाल होता है। राज्य में केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है। वहीं, केंद्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल के रूप में केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्ति की जाती है। भारत में अभी 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं। केंद्रशासित प्रदेशों में जम्मू और कश्मीर, पुड्डुचेरी और दिल्ली में भी विधानसभा की व्यवस्था की गई है। इन राज्यों उपराज्यपाल की नियुक्ति हैं, जबकि बाकी के केंद्र शासित प्रदेशों में प्रशासक की नियुक्ति की जाती है।

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भारत के राज्यों के राज्यपालों के पास राज्य स्तर पर समान शक्तियां और कार्य हैं, जो भारत के राष्ट्रपति के पास संघ स्तर पर हैं। राज्यपाल राज्यों में मौजूद होते हैं जबकि लेफ्टिनेंट गवर्नर (उपराज्यपाल) या प्रशासक (एडमिनिस्ट्रेटर) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सहित केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद होते हैं।

राज्यपाल और उपराज्यपाल में अंतर

- राज्यपाल किसी राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जबकि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पुड्डुचेरी और दिल्ली में उपराज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर होती है।

- किसी राज्य में राज्यपाल की शक्तियां नाममात्र की होती हैं। सारी शक्तियां मुख्यमंत्री और उसके मंत्री मंडल में निहित होती हैं, वहीं उपराज्यपाल अपने केंद्र शासित प्रदेश में वास्तविक प्रशासक होता हैं। इन प्रदेशों में मुख्यमंत्री की शक्तियां नाममात्र की होती है।

- राज्यपाल अपने राज्य में मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है, जबकि उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति नहीं करता है। केंद्रशासित प्रदेशों में(जहां मुख्यमंत्री का प्रावधान है) मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।

जानें उपराज्यपाल के बारे में

केंद्रशासित राज्यों दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर में दूसरे राज्यों की तरह विधानसभाएं हैं। अभी सिर्फ दिल्ली और पुडुचेरी में निर्वाचित सरकार है। इन जगहों पर उपराज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर या एलजी) का पद होता है, जो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है। अन्य केंद्र शासित राज्यों में प्रशासक नियुक्त होते हैं। उप राज्यपाल केंद्र शासित प्रदेश का मुख्य प्रशासक होता है। केंद्र सरकार इनके माध्‍यम से उस प्रदेश में शासन करती है। जहां राज्‍यों में शासन के सारे अधिकार मुख्यमंत्री के पास होते हैं, वहीं इन केंद्रशासित प्रदेशों में मुख्‍यमंत्री के सारे अधिकार उपराज्यपाल को मिले होते हैं। जम्मू-कश्मीर में फिलहाल निर्वाचित सरकार नहीं है, तो वहां का पर उपराज्यपाल ही मुख्य है।

उपराज्यपाल के अधिकार और कार्य

उपराज्यपाल के विधानसभा का सत्र बुलाता है, विधानसभा का विघटन और स्थगन करने का अधिकार होता है।

उपराज्यपाल किसी भी मुद्दे पर या लंबित विधेयक पर राज्य विधान सभा को संदेश भेजने का अधिकार रखता है। इस संदेश पर हुई कार्यवाही की रिपोर्ट राज्य विधानसभा को उपराज्यपाल को देनी होती है।

उपराज्यपाल के पास बिल को पास करने या न करने का अधिकार हो। जैसे अगर कोई बिल कर लगाने, हटाने, कर में छूट देने, वित्तीय दायित्वों से संबंधित कानून में परिवर्तन, राज्य की समेकित निधि के विनिमय आदि संबंध में हो। बिलों को विधान सभा में पेश करने से पहले उपराज्यपाल की सहमती चाहिए होती है।

राज्यपाल के बारे में

जिस प्रकार केंद्र में शासन प्रमुख रूप में राष्ट्रपति होता है, उसी प्रकार राज्यों में एक संवैधानिक प्रमुख की व्यवस्था की गई है। राज्यों के इस संवैधानिक प्रमुख को राज्यपाल कहा जाता है। वह राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख होता है। राज्यपाल राज्य में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है इसके साथ ही राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख की भूमिका भी निभाता है। राज्यपाल, उस राज्य में मंत्री परिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है। राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति भी होते हैं।

राज्य में कार्यपालिका से संबंधित सभी कार्य उस राज्य के राज्यपाल के नाम से ही किए जाते हैं। राज्यपाल न केवल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है बल्कि उसकी सलाह पर राज्य की मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है। वह सामान्यत: राज्य की विधान सभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, लेकिन अगर किसी एक दल को बहुमत न मिला हो तो ऐसे गठबंधन दलों के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, जिसके द्वारा विधान सभा में बहुमत प्राप्त करने की संभावना होती है। वह मुख्यमंत्री की सलाह पर विभिन्न मंत्रियों के बीच मंत्रालयों का बंटवारा करता है।

राज्यपाल की शक्तियां

  • राज्यपाल को राज्य के विधानमंडल के सत्र को बुलाने और समाप्त करने का अधिकार होता है। वह राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्य विधान सभा को भंग कर सकता है।
  • अनुच्छेद 175 के अनुसार वह राज्य विधान सभा के सत्र को, और जिस राज्य में दो सदन हैं, वहां दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित कर सकता है। वह किसी एक सदन या दोनों सदनों को अपना सन्देश भेज सकता है।
  • यदि राज्य में विधान परिषद है तो राज्यपाल विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या के लगभग 1/6 भाग को नामनिर्देशित करता है। ये नामनिर्देशित सदस्य ऐसे होते हैं जिनको साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन या समाज सेवा का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है।
  • राज्य के विधानमंडल के द्वारा पारित किसी भी बिल को कानून बनने के लिए राज्यपाल की सहमति जरूरी होती है। इस संदर्भ में, राज्यपाल के पास ये अधिकार होते हैं-

1. वह बिल को अपनी सहमति दे सकता है, इस स्थिति में वह बिल कानून बन जाता है।

2. वह बिल पर अपनी सहमति रोक सकता है, इस स्थिति में वह बिल कानून नहीं बन पाता।

3. वह उस बिल को अपने संदेश के साथ वापस भेज सकता है, लेकिन यदि विधानमंडल उस बिल को फिर उसी रूप में या कुछ परिवर्तनों के साथ पारित कर देता है तो राज्यपाल को उस पर सहमति देनी होगी।

4. वह बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है।

6. राज्यपाल की पूर्व-अनुमति के बिना धन विधेयक को राज्य की विधान सभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

7. राज्य के विधानमंडल में वार्षिक और पूरक बजट राज्यपाल के नाम से ही प्रस्तुत किये जाते हैं।

8. राज्य की आकस्मिकता निधि पर राज्य के राज्यपाल का नियंत्रण होता है।

राज्यों में राज्यपाल के पद की जरूरत क्यों है?

राज्यपाल, देश के संघीय ढांचे में केंद्र का प्रतिनिधि है। यह संवैधानिक पद है। इसके कुछ कर्तव्य और अधिकार हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, लोकायुक्त को और कैबिनेट को शपथ, राज्यपाल ही कराते हैं। विधानसभा का सत्र बुलाते हैं। राज्य के विधेयक पर स्वीकृति देते हैं, जो विधेयक केंद्र को भेजने होते हैं, वे आगे बढ़ाते है। राज्य सरकार के कामकाज की रिपोर्ट या राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करते हैं। वास्तव में राज्यपाल, राज्य और केंद्र के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है।

राज्यपाल, वास्तव में केंद्र सरकार का कर्मचारी है। अगर किसी राजनीतिक दल के व्यक्ति को राज्यपाल बनाया जाता है तो उसे उस दल की सदस्यता से त्यागपत्र देना होता है। राज्यपाल कोई भी बन सकता है।

पांच साल का होता है कार्यकाल

राज्यपाल और उपराज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। इस दौरान राज्यपाल-उपराज्यपाल को एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर भी किया जा सकता है। राज्यपाल का यह कार्यकाल पूर्णता राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है। राष्ट्रपति चाहें तो राज्यपाल को उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले कभी भी अपने पद से हटा सकते हैं।


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