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    क्या 5000 साल पहले हड़प्पा सभ्यता में भी था संगीत?

    By Jp YadavEdited By:
    Updated: Thu, 14 Jul 2022 06:06 AM (IST)

    मुंबई के संगीतकार शैल व्यास ने सिंधु घाटी सभ्यता के समय के पांच हजार साल पूर्व के वाद्य यंत्रों की तरह के वाद्य यंत्र और उनके संगीत जैसा संगीत रीक्रिएट किया है। इसके साथ ही मेसोपोटामिया और मिश्र की सभ्यता का वर्षों तक अध्ययन किया है

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    क्या हड़प्पा सभ्यता में भी संगीत था ? मुंबई के संगीतकार शैल व्यास ने खोज निकाली सच्चाई

    नई दिल्ली [वीके शुक्ला]।  यह जानकर आपको थोड़ी हैरानी हो रही होगी कि हड़प्पा सभ्यता में भी क्या कोई संगीत था, जी हां मुंबई के संगीतकार शैल व्यास ने हड़प्पन सभ्यता के संगीत और वाद्य यंत्रों की खोज की है। इसके लिए उन्होंने मेसोपोटामिया और मिश्र की सभ्यता का वर्षों तक अध्ययन किया है। जिसके आधार पर हड़प्पन संगीत के बारे में जानकारी जुटाई जा सकी है।

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    उनकी योजना इस माह 20 जुलाई को दिल्ली में देश के पुरातत्वविदों के सामने इस बारे में एक कार्यक्रम आयोजित करने की है। जिसमें देश के तमाम पुरातत्वविद और इतिहासकार शामिल होंगे। यह आयोजन इंडिया इंडरनेशनल सेंटर में होगा। यह शोध 2011 में शुरू किया गया था, जिसे सान्ग्स आफ मिस्ट्री रिसर्च प्रोजेक्ट नाम दिया गया है।

    पुरातत्व, पुरा-संगीत, वाद्ययंत्र शास्त्र, एंथ्रोपोलाजी और आधुनिक तकनीकों के जरिये उस काल के 20 तरह के वाद्य यंत्र रीक्रिएट किए गए हैं। इनमें नंदी वीणा, कुम्भ तरंगिनी जैसे वाद्यों के साथ ही अलग-अलग तरह के ढोल शामिल हैं।

    म्यूजिकोलाजिस्ट एवं कंप्यूटर टेक्नोलाजी विशेषज्ञ शैल व्यास होमी भाभा फेलो हैं।उन्होंने जयपुर-अतरौली घराने से शास्त्रीय संगीत सीखा है, जबकि ट्रिनिटी कालेज आफ लंदन से पाश्चात्य सांस्कृतिक संगीत का प्रशिक्षण लिया है।

    शैल व्यास कहते हैं कि उनके दिमाग में यह बात बार बार आ रही थी कि 5000 साल या 7000 साल पहले कोई संपन्न सभ्यता रही है तो ऐसा कैसे हो सकता है कि उनका कोई संगीत नहीं होगा। इसी से इस खोज को लेकर प्रेरणा मिली और कई साल तक मैंने मेसोपोटामिया और अन्य प्राचीन सभ्यताओं का गहराई तक अध्ययन किया।

    मेसोपोटामिया की मुहरों, चित्रों और पट्टिकाओं पर भी कई भारतीय उपकरण पाए गए, जिससे पता चलता है कि व्यापार के साथ-साथ कई संगीत वाद्ययंत्र भी भारत से मेसोपोटामिया को तीसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में निर्यात किए गए थे।

    ऐसा प्रतीत होता है कि मेसोपोटामिया पर हड़प्पा संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ा है। उनके द्वारा हड़प्पा काल से अब तक लगभग 20 संगीत वाद्ययंत्र और संगीत से संबंधित कई अन्य तथ्यों की पहचान की गई है,

    इसके साथ ही वैदिक और महाकाव्य जैसे अन्य प्राचीन काल खण्डों के कई और वाद्ययंत्र भी हैं। हड़प्पा के जिन वाद्ययंत्रों की पहचान की गई है उनमें हा‌र्प्स, बैल की आकृति के लायर, बड़े ढोल, ल्यूट, क्लैपर्स और कई अन्य शामिल हैं।

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व संयुक्त महानिदेशक डा आर. एस. बिष्ट कहते हैं कि शैल व्यास ने शोध के नए क्षेत्र की नीव रखी है। उन्होंने एक नई दिशा दी है,इससे उन्होंने वास्तव में हड़प्पा के अध्ययन को एक नया आयाम दिया है। यह एक पथप्रदर्शक शोध है, इससे भारतीय पुरातत्व को बहुत लाभ होगा।

    आगामी 20 जुलाई को होने वाली संगोष्ठी में शैल व्यास अपने कार्यों पर चर्चा करेंगे। उनकी प्रस्तुति में उनके प्रोटोटाइप उपकरणों की विशेषता वाले संगीत प्रदर्शन की उच्च गुणवत्ता वाली वीडियो रिकार्डिंग शामिल होगी। कुछ सबसे सम्मानित पुरातत्वविदों का एक सम्मानित पैनल होगा।

    इसमें डा आर एस बिष्ट, डा वसंत शिंदे, डा बी आर मणि और डा के एन दीक्षित अपनी राय देंगे और इस शोध के दूरगामी प्रभावों पर चर्चा करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईसी के निदेशक के एन श्रीवास्तव करेंगे।