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    दिल्ली में कौड़ियों के दाम बिकी वक्फ संपत्तियां, बस गए बाजार और कॉलोनियां; जिम्मेदार ही बने गुनहगार

    Updated: Sun, 13 Apr 2025 08:51 AM (IST)

    दिल्ली में वक्फ संपत्तियों की लूट का खुलासा हुआ है। आरोप है कि वक्फ बोर्ड के अधिकारियों ने ही जरूरतमंदों के लिए आवंटित संपत्तियों को कौड़ियों के दाम पर बेच दिया या लीज पर दे दिया। पुरानी दिल्ली महरौली और लुटियंस दिल्ली में वक्फ की जमीनों पर बाजार और कॉलोनियां बस गईं। इस लूट में शामिल लोगों पर मुस्लिम विरोधी कानून का विरोध करने का भी आरोप है।

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    महरौली में वक्फ संपत्ति पर चल रहा ढाबा, ऊपर बने हैं फ्लैट। फोटो- जागरण

    मो. रईस, नई दिल्ली। मुगल सत्ता का केंद्र होने की वजह से दिल्ली भर में हजारों की तादात में वक्फ संपत्तियां आबाद थी, लेकिन जैसे विदेशी आक्रांताओं ने दिल्ली को लूटा वैसे, ही लूट वक्फ संपत्तियों के मामले में भी हुई है। खुद अपनों ने बोर्ड के जरिए उसे जितना बर्बाद किया, शायद ही किसी और किया हो।

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    बोर्ड में जो भी निजाम आया, सभी ने अपनी-अपनी तरह से लूट मचाई और अपनी जेबे गर्म की। ऐसा करते हुए उन्हें जरूरतमंद मुस्लिम, विधवा व गरीब होनहार छात्रों के भविष्य का तनिक ख्याल नहीं आया, जिस मकसद के लिए अल्लाह ने वक्फ जैसी पवित्र व्यवस्था बनाई थी।

    रातों-रात किरायेदार बदलकर कमाए करोड़ो रुपये

    स्थिति यह कि कौड़ियों के दाम में वक्फ संपत्तियां बेची गई और देखते ही देखते कॉलोनियां और बाजार बस गए। निजी प्रतिष्ठित स्कूल खुल गए, जिसकी फीस लाखों रुपये प्रति वर्ष है, जिसमें आम मुस्लिम बच्चा शिक्षित नहीं होता।

    इसी तरह, कारोबारी संपत्तियों में मोटे पैसे लेकर रातों रात किरायेदारों को बदलने का काम किया और उससे लाखों करोड़ों रुपये बनाए। ऐसी संपत्ति का कोई नाम लेवा नहीं है। न ही उसके कागजात ही बचे हैं। ध्यान देने वाली बात यह कि इस लूट में उस दल के लोग प्रमुख थे, जो वक्फ संशोधन कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर विरोध कर रहे हैं।

    खूब विवादों में रहा था मतीन अहमद का कार्यकाल

    ऐसे मामले में वर्ष 2004 से वर्ष 2009 तक तब के कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता मतीन अहमद का बतौर दिल्ली वक्फ बोर्ड अध्यक्ष का कार्यकाल खूब विवादों में रहा था। जिनपर बाहरी दिल्ली के पंजाब खुर्द स्थित कब्रिस्तान की 62,496 वर्ग गज भूमि को 25 पैसे प्रति गज प्रति माह लीज पर देने का आरोप लगा, जबकि, तब उस भूमि का बाजार मूल्य कई सौ गुना अधिक था।

    इसी तरह, नजफगढ़ में दो संपत्तियाें तथा लुटियंस दिल्ली स्थित एक संपत्ति को कौड़ियों के दाम में लीज पर देने का आरोप लगा। मामले में लोकायुक्त जांच बैठी, फिर वर्षों की सुनवाई में वह मामला दब गया।

    इसी तरह पुरानी दिल्ली में घंटा मस्जिद की जमीन पर एक निजी स्कूल बनवा दिया गया। कश्मीरी गेट में वक्फ संपत्तियों पर कई मंजिला व्यवसायिक कॉम्पलेक्स बन गए।

    महरौली में हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह की सड़क पर वक्फ बोर्ड की जमीन पर पांच से छह मंजिला कई इमारतों में कई फ्लैट बने हुए हैं। एक में रेस्तरां का भी संचालन हो रहा था। जमीन पर कब्जा कर लोगों ने फ्लैट और दुकानें बनाकर करोड़ों का मुनाफा कमाया।

    पुरानी दिल्ली में खूब चलता है पर्ची बदलने का खेल

    वक्फ के जानकार कहते हैं कि संपत्तियों के ऊपर बिल्डर माफियाओं के साथ मिलकर नया निर्माण करना, फिर उसपर कब्जे दिलवाकर मोटी रकम अपनी जेब में रखकर उसे 150 से 350 रुपये मासिक किराये के रूप में आवंटित कर देना आम है। वह इसलिए क्योंकि, वक्फ संपत्तियों को बेचा नहीं जा सकता है, केवल किराये पर ही दिया जाता है।

    उसमें भी पुरानी दिल्ली में चावड़ी बाजार, चांदनी चौक, कश्मीरी गेट, तुर्कमान गेट, समेत अन्य बाजारों में वक्फ की दुकानें 100 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। जिसमें नए किरायेदार को बैठाने में पर्ची का खेल खूब चलता है।

    पुराने को हटाकर नए दुकानदार को बैठाने में लाखों, करोड़ों रुपये लिए जाते हैं। ऐसे में नए-पुराने किरायेदारी का विवाद भी गंभीर शक्ल ले चुका है। मामले से जुड़े लोगों के अनुसार, 200 से अधिक किराया संबंधित विवाद दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है।

    बेचा नहीं गया था, उस वक्त जमीनें लीज पर दिया गया था। उसके बदले एक करोड़ 10 लाख रुपये वक्फ बोर्ड में जमा भी कराया था। बाद में बिल्डर ने वह जगह हिंदुओं को आवंटित की थी, जो कब्रिस्तान की वजह से उसपर काबिज नहीं हुए। पंजाब खुर्द की वह जगह अब भी सुरक्षित है। -मतीन अहमद, तत्कालीन अध्यक्ष, दिल्ली वक्फ बोर्ड

    पुरानी दिल्ली में वक्फ की दुकानों में पर्चियां बदलने का खेल खूब चलता है। लाखों रुपये लेकर दुकानें आवंटित की जाती है। इसी तरह, वक्फ की कई जमीनें प्रतिष्ठित निजी स्कूलों को दे दी गई, जिसकी फीस लाखों में है कि आम मुस्लिम का बच्चा वहां नहीं पढ़ सकता है। यह जो नया कानून आया है। इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगने की उम्मीद है।  - फिरोज बख्त अहमद, शिक्षाविद व इतिहासकार