वक्फ कानून: सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले पर मुस्लिम संगठनों में मतभेद
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश को लेकर मुस्लिम संगठनों में मतभेद है। एआईएमपीएलबी ने असंतोष जताया है जबकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने स्वागत किया है। मुस्लिम संगठनों की आपत्तियां वक्फ बाय यूजर और गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति पर हैं। एआईएमपीएलबी विरोध जारी रखेगा। विहिप ने आदेश का स्वागत किया और कहा कि कानून की भावना बरकरार है।

संवाददाता, नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 मामले में सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश पर देश के शीर्ष मुस्लिम संगठनों में मतभेद उभर आए हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने जहां फैसले पर नाराजगी जताते हुए इसे अधूरा और असंतोषजनक बताया है, वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इसका स्वागत किया है।
वहीं, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी अंतरिम आदेश का स्वागत किया है और कहा है कि इससे नए कानून की भावना, उद्देश्य और कार्यप्रणाली बरकरार रहेगी। वैसे, मुस्लिम संगठनों की मुख्य आपत्ति वक्फ बाय यूजर के प्रावधान को बरकरार रखने और बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति को लेकर है। जिसे लेकर एआईएमपीएलबी ने देश भर में विरोध आंदोलन जारी रखने और 16 नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली करने का ऐलान किया है।
मदनी ने एक बयान में अंतरिम आदेश के लिए सुप्रीम कोर्ट का आभार जताया और कहा कि अदालत ने नए कानून की धाराओं को लेकर देश भर के मुसलमानों द्वारा उठाई जा रही चिंताओं और गंभीर आशंकाओं को गंभीरता से लिया है और उनमें से तीन धाराओं पर अंतरिम रोक लगा दी है।
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। जमीयत क़ानून के निरस्त होने तक अपना लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रखेगी।
वहीं, आईएमपीएलबी के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास ने कहा कि अदालत ने आंशिक राहत ज़रूर दी है, लेकिन व्यापक संवैधानिक चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है, जो निराशाजनक है। इसलिए विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे।
जमात-ए-इस्लामी के उपाध्यक्ष मलिक मोहतसिम ख़ान ने कहा कि मुस्लिम समुदाय इस फ़ैसले से खुश नहीं है। क्योंकि क़ानून के कई प्रावधान समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को रखने का प्रावधान ज़्यादा चिंताजनक है।
वहीं, विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने अदालत के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि संपत्ति वक़्फ के लिए पाँच साल तक इस्लाम का पालन करने की अनिवार्यता को हटाया नहीं गया है, बस नियम बनने तक इसे रोक दिया गया है। इसी तरह, अदालत ने सार्वजनिक संपत्ति को वक़्फ़ न करने के प्रावधान पर भी रोक नहीं लगाई है, बस ट्रिब्यूनल को विवाद के मामले की सुनवाई का अधिकार दिया है।
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