दिल्ली-NCR में सालों बाद बारिश ने क्यों मचाया कहर? CEEW की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा
दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहर अत्यधिक बारिश से बाढ़ से प्रभावित हैं। सीईईडब्ल्यू ने एनसीआर के लिए शहरी बाढ़ जोखिम प्रबंधन योजना को जरूरी बताया है। शहरी क्षेत्रों में जल निकासी की कमी तेजी से शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन जैसी वजहों से बाढ़ आ रही है। बाढ़ प्रबंधन के लिए बेहतर योजनाएं भूमि उपयोग नियमों का पालन और जल निकासी प्रणालियों में सुधार जरूरी हैं।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, इस साल हुई अत्यधिक बारिश ने देश के ज़्यादातर शहरों में शहरी बाढ़ के हालात पैदा कर दिए हैं। 1985 में बाढ़ से प्रभावित शहरी क्षेत्र 16,443 वर्ग किलोमीटर था, जो 2018 में बढ़कर 92,233 वर्ग किलोमीटर हो गया।
यह चार गुना से भी ज़्यादा है और अभी भी तेज़ी से बढ़ रहा है। इसे देखते हुए, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) ने एनसीआर के लिए शहरी बाढ़ जोखिम प्रबंधन योजना (यूएफआरएमपी) को समय की ज़रूरत बताया है।
सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले एक दशक में देश की 55 प्रतिशत से ज़्यादा तहसीलों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान बारिश में बढ़ोतरी देखी गई है। दूसरी ओर, पिछले दो दशकों में कई शहरों में निर्मित क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है, जिससे पिछले वर्षों जितनी बारिश होने पर भी एक बहुत तेज प्रवाह बनता है।
इसके अलावा, जलाशयों का क्षेत्रफल भी सिकुड़ गया है, जो पानी के बहाव को धीमा करने और तूफ़ान के पानी को सोखने में मदद करते थे। दिल्ली-एनसीआर की स्थिति भी इससे बहुत अलग नहीं है।
विशेषज्ञों के अनुसार, जलभराव और स्थानीय बाढ़ की चुनौतियों का सामना कर रहे शहरी क्षेत्रों में नदी की बाढ़ को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए, बेहतर बाढ़ प्रबंधन तैयारियों से संबंधित उपायों को लागू करना आवश्यक है।
इसमें शहर या अति-स्थानीय स्तर पर बाढ़ जोखिम प्रबंधन योजनाएँ तैयार करना शामिल है, जिससे बाढ़ के "हॉटस्पॉट" की पहचान करने और बाढ़ प्रबंधन उपायों को प्राथमिकता देने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, विकास गतिविधियों के लिए बाढ़ के मैदानों के उपयोग को रोकने के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन नियमों का बेहतर प्रवर्तन, स्थानीय जल निकासी प्रणालियों को बाधित होने से बचाने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन हेतु प्रभावी नीतियाँ और बाढ़ के दौरान अतिरिक्त पानी को अवशोषित करने में मदद करने वाले शहरी हरे और नीले स्थानों का पुनरुद्धार शामिल है।
शहरी बाढ़ में योगदान देने वाले कारक
- जलवायु परिवर्तन
- अपर्याप्त जल निकासी नेटवर्क
- तेजी से शहरीकरण के कारण जल-प्रतिरोधी क्षेत्रों में वृद्धि
- ठोस अपशिष्ट के रखरखाव और निपटान की समस्याएं, वर्षा जल नालियों का खराब प्रबंधन अक्सर वर्षा जल प्रवाह में बाधा डालता है।
बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण हेतु ज्ञान प्रबंधन
- प्रत्येक वार्ड समिति के लिए सूक्ष्म-स्तरीय जोखिम योजना और ज़ोनिंग मानचित्र तैयार करना
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के नुकसानों को शामिल करते हुए एक क्षति मूल्यांकन ढाँचा तैयार करना।
- पिछली बाढ़ की घटनाओं के आधार पर क्षति का आकलन करने हेतु आधार रेखा तैयार करना
- बाढ़ जोखिम प्रबंधन के लिए टास्क फोर्स/स्वयंसेवी समूह बनाने और उनका हिस्सा बनने के लिए निवासियों को प्रोत्साहित करना
- बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण की संपूर्ण प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए समर्पित प्रशिक्षण मॉड्यूल और जिम्मेदारियों का निर्धारण
मध्यम अवधि (तीन से पांच वर्ष) और दीर्घकालिक (पांच वर्ष से अधिक) उपाय
- स्थानीय स्तर पर पूर्व चेतावनी प्रणालियों और संचार को सुदृढ़ बनाना
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के निकट स्थित नालों पर इंटरनेट-आधारित पूर्व चेतावनी प्रणालियां स्थापित करना
शहरी जल निकासी प्रणाली का डिज़ाइन और प्रबंधन
- जीआईएस का उपयोग करके वर्षा जल निकासी मानचित्रों की सूची बनाना
- भूमि उपयोग परिवर्तन और हर दूसरे वर्ष के लिए अनुमानित अधिकतम बाढ़ प्रवाह मात्रा को ध्यान में रखते हुए वर्षा जल निकासी प्रणाली का डिज़ाइन तैयार करना
- चरणबद्ध तरीके से वर्षा जल निकासी और सीवरेज प्रणाली का एकीकरण, सभी में पृथक्करण, विस्तार क्षेत्र
शहरी बाढ़ क्या है?
शहरी बाढ़ का अर्थ है कम समय में भारी वर्षा के कारण शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के पानी का तेज़ी से बढ़ना, क्योंकि ज़मीन कम पानी सोख पाती है।
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