webinar: जब तक पुराना नहीं पढ़ेंगे तो नया कैसे लिखेंगे : यतींद्र मिश्र
यतींद्र झा ने कहा कि हिंदी साहित्य में जो भी कुछ नया लिखेगा वह भी तो पुराना पढ़कर ही आया होगा। मैं भी जब पुरानी हिंदी लिखता हूं तो उससे ज्यादा मुझे पढ़ने में आनंद आता है।
नई दिल्ली [रितु राणा]। वाणी प्रकाशन द्वारा ''पुरानी वाली हिंदी की चमक धमक'' विषय पर ऑनलाइन वेब गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वक्ता के रूप में अयोध्या से लेखक यतींद्र मिश्र व नॉर्वे से डॉ प्रवीण झा जुड़े।
नया लिखेता तो पुराना पढ़कर ही आएगा
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए यतींद्र झा ने कहा कि हिंदी साहित्य में जो भी कुछ नया लिखेगा वह भी तो पुराना पढ़कर ही आया होगा। मैं भी जब पुरानी हिंदी लिखता हूं तो उससे ज्यादा मुझे पढ़ने में आनंद आता है। इसलिए साहित्यकार को ही पुरानी हिंदी की चमक-धमक को पाठकों के लिए बरकरार रखना होगा। आज हमारी नई पीढ़ी भाषा को सरल बनाने के लिए हिंदी के साथ नये प्रयोग करने लगी है। लेकिन हमें पुरानी चीजें भी पढ़नी चाहिए जब तक पुराना नहीं पढ़ेंगे तो नया कैसे लिखेंगे।
भाषा को सरज और सहज बनाने के लिए चली लहर
लेखक डॉ प्रवीण झा ने कहा कि हिंदी भाषा को सरल व सहज बनाने की एक लहर चली है ताकि सब लोग उसे समझ सकें। हिंदी भाषा में साढ़े सात लाख शब्द हैं, इतना विशाल शब्दकोष है, लेकिन हम प्रयोग कुछ हजार शब्दों ही करते हैं। सरल सहजता करते करते लाखों शब्द तो हम यूं ही छोड़ चुके हैं। अब हमें संतुलन बनाने की जरूरत है।
देशज शब्दों की बताई महत्ता
जहां हम हिंग्लिश का प्रयोग करते हैं वहां दो चार तत्सम, तद्भव या देशज शब्द का भी इस्तेमाल करना चाहिए। लेखक को भी पाठक को शब्दों का डोज देना चाहिए, उन्हें सरल व सहजता के जाल में नहीं फंसना चाहिए। हमें हमारे शब्दकोष को बढ़ाना चाहिए जिस प्रकार हम अंग्रेजी के साथ करते हैं। अगर हमें कहीं कोई कठिन शब्द मिलता है तो लेखक को कोसने की जगह शब्दकोष में उसका अर्थ ढूंढ़ना चाहिए और उस नए शब्द को सीखना चाहिए। इस गोष्ठी का साहित्यप्रेमियों ने खूब आनंद लिया और पुरानी हिंदी की महत्वता को समझा।