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    एम्स में स्वदेशी प्लाक ब्रेकीथेरेपी से शुरू हुआ बच्चों के आंखों के कैंसर का इलाज

    By Ranbijay Kumar SinghEdited By: Prateek Kumar
    Updated: Sat, 12 Mar 2022 07:49 AM (IST)

    आरपी सेंटर के प्रमुख डा. जेएस तितियाल ने बताया कि एम्स में इस स्वदेशी तकनीक से गरीब परिवारों के बच्चों को निशुल्क इलाज उपलब्ध हो रहा है।कहा कि प्लाक ब्रेकीथेरेपी से इलाज काफी महंगा है।स्वदेशी तकनीक से अब निजी अस्पतालों में भी इलाज का खर्च 30 प्रतिशत कम हो जाएगा।

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    पहले जर्मनी से मंगाए गए प्लाक ब्रेकीथेरेपी से दिया जाता था आंखों में रेडिएशन।

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। एम्स के आरपी सेंटर में आंखों के कैंसर (रेटिनोब्लास्टोमा) से पीड़ित बच्चों के इलाज में अब देश में विकसित प्लाक ब्रेकीथेरेपी का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) ने यह रूथेनियम-106 प्लाक ब्रेकीथेरेपी विकसित की है। इसकी मदद से आंखों में कैंसर की बीमारी से पीड़ित बच्चों को रेडिएशन थेरेपी दी जाती है। आरपी सेंटर के प्रमुख डा. जेएस तितियाल ने बताया कि एम्स में इस स्वदेशी तकनीक से गरीब परिवारों के बच्चों को निशुल्क इलाज उपलब्ध हो रहा है।

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    उन्होंने कहा कि प्लाक ब्रेकीथेरेपी से इलाज काफी महंगा है। स्वदेशी तकनीक से अब निजी अस्पतालों में भी इलाज का खर्च 30 प्रतिशत कम हो जाएगा। अभी तक देश के तीन अस्पतालों में ही बार्क द्वारा विकसित प्लाक ब्रेकीथेरेपी का इस्तेमाल शुरू किया गया है। दरअसल, आंखों के कैंसर के इलाज में रेडिएशन के लिए प्लाक ब्रेकीथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। करीब साढ़े चार साल पहले एम्स ने जर्मनी से चार प्लाक ब्रेकीथेरेपी मंगाकर बच्चों की आंखाें के कैंसर का इलाज शुरू किया था।

    एम्स यह सुविधा शुरू करने वाला देश का पहला सरकारी अस्पताल है। प्लाक ब्रेकीथेरेपी बटन के आकार का उपकरण होता है, जिसे आंख की ऊपरी परत पर दो से चार दिन के लिए अस्थायी तौर पर लगाया जाता है। यह प्लाक रेडियो एक्टिव होता है, जिससे धीर-धीरे रेडिएशन निकलता है। वह रेडिएशन मरीज की आंखों में मौजूद कैंसर के ट्यूमर को नष्ट कर देता है। बाद में उस प्लाक को निकाल लिया जाता है।

    यह तकनीक कैंसर प्रभावित आंख की रोशनी बचाने में मददगार है। एम्स के डाक्टर कहते हैं कि बच्चों में बच्चों में आंखों का कारण जेनेटिक कारणों से होता है। समय पर इलाज नहीं मिल पाने के कारण ज्यादातर बच्चों के आंखों की रोशनी चली जाती है। एम्स में ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे इलाज के लिए पहुंचते हैं। इसलिए एम्स में यह सुविधा शुरू होने से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को फायदा होगा।