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अब रिंग रेल पर दौड़ेगी 'शी' ट्रेन, 'फेयरी क्वीन' ने पूरी की दिल्‍ली परिक्रमा

अंग्रेजी में भाप इंजन को 'शी' सर्वनाम से पुकारा जाता है, जबकि डीजल और बिजली के इंजन को 'इट' कहा जाता है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sat, 27 Jan 2018 12:41 PM (IST)Updated: Sun, 28 Jan 2018 09:13 PM (IST)
अब रिंग रेल पर दौड़ेगी 'शी' ट्रेन, 'फेयरी क्वीन' ने पूरी की दिल्‍ली परिक्रमा
अब रिंग रेल पर दौड़ेगी 'शी' ट्रेन, 'फेयरी क्वीन' ने पूरी की दिल्‍ली परिक्रमा

नई दिल्ली [ जेएनएन ]। यात्री जल्द ही रिंग रेल पर भाप इंजन वाली ट्रेन से सफर का आनंद उठा सकेंगे। रेल प्रशासन दिल्ली से रेवाड़ी के साथ ही रिंग रेल पर भी भाप इंजन वाली विशेष पर्यटक ट्रेन चलाने की तैयारी में है। अंग्रेजी में भाप इंजन को 'शी' सर्वनाम से पुकारा जाता है, जबकि डीजल और बिजली के इंजन को 'इट' कहा जाता है।

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इसमें यात्रियों को यात्रा के दौरान स्वादिष्ट व्यंजन भी परोसे जाएंगे। रेलवे ने 69वें गणतंत्र दिवस को रेल विरासत दिवस के रूप में मनाया। इस अवसर पर नई दिल्ली से पुरानी दिल्ली के बीच भाप इंजन 'फेयरी क्वीन" भी दौड़ी। इस इंजन के सहारे चलाई गई दो कोच वाली विशेष गणराज्य एक्सप्रेस में रेल राज्य मंत्री राजेन गोहेन, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी, उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विश्वेश चौबे सहित अन्य रेल अधिकारी मौजूद थे।

लोहानी ने कहा कि आज भी भाप इंजन की लोकप्रियता बरकरार है। इस इंजन का हर पुर्जा बाहर से दिखता है और यह एक ऐसी मशीन है जिसमें कोई भी व्यक्ति आग को देख सकता है।

उन्होंने कहा कि देश में इस समय भाप के करीब 50 इंजन हैं और रेलवे अपनी इस विरासत को संरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारी कोशिश है कि अगले 50 साल बाद भी लोग भाप के इंजन को देखें, क्योंकि यह हमारी विकास यात्रा का अहम गवाह है। 1852 में भाप इंजन से ही पहली ट्रेन चली थी। इससे उस युग में औद्योगिक क्रांति को तेज करने में मदद मिली थी।

उन्होंने बताया कि फेयरी क्वीन 1855 में लंदन में बनी थी। उस समय इसे ईआर-22 के नाम से लोग जानते थे। करीब 54 साल की सेवा के बाद इसे राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में रख दिया गया था। 1997 में इसे कुछ अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम ने काफी मशक्कत के बाद संचालन के लिए तैयार किया था।

18 जुलाई, 1997 को यह फिर से पटरी पर उतरी थी। जनवरी, 1998 में इसे गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में विश्व के सबसे पुराने कार्यशील भाप इंजन के रूप में मान्यता दी गई। जनवरी, 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे सर्वाधिक नवान्वेषी और अनूठी पर्यटन परियोजना के रूप में राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार प्रदान किया था।


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