स्वस्थ सर्वश्रेष्ठ भारत, महामारी से सीख लेकर स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता में रखने की है आवश्यकता
महामारी से सीख लेकर अब स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता में रखने की आवश्यकता है। इससे न केवल लोग स्वस्थ होंगे बल्कि अर्थव्यवस्था भी आगे बढ़ेगी। 2047 तक हम स्वस्थ आबादी और सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य व्यवस्था वाले देशों में शुमार हो सकते हैं।
डा. चंद्रकांत लहारिया। दो साल से चल रहा महामारी का दौर अब खत्म होने को है। इस दौर ने हमें अच्छी सेहत और अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था का महत्व सिखाया है। नीति निर्माताओं ने भी देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने की दिशा में विचार शुरू किया है। आजादी के 75 वषों में वैसे तो हमने चेचक और पोलियो के उन्मूलन समेत स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बहुत सी उपलब्धियां हासिल की हैं। लेकिन अब हमें नई चुनौतियों पर विचार करने की जरूरत है। हमारे यहां दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी है, लेकिन टीबी के 25 प्रतिशत मरीज यहां हैं। बच्चों में टीकाकरण बढ़ा है, लेकिन अब भी इस मामले में हम बहुत से देशों से पीछे हैं। डायबिटीज और हाई बीपी का दबाव भी बढ़ा है।
इन चुनौतियों के बीच अच्छी बात यह है कि हमारे पास पर्याप्त ज्ञान और समझ है। 2017 में नेशनल हेल्थ पालिसी में रोडमैप तैयार किया गया था। अब इन चुनौतियों से निपटने के लिए इस पालिसी पर तेजी से कदम बढ़ाने की जरूरत है। सबसे पहला कदम होगा कि केंद्र एवं राज्यों के स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन बढ़ाया जाए। एक अध्ययन बताता है कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में किया गया निवेश 10 गुना रिटर्न देता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में होने वाला सरकारी खर्च देश के आर्थिक विकास एवं समाज की समृद्धि में भी योगदान देता है। इसका कारण यह है कि जब आबादी स्वस्थ होती है, तो उसकी उत्पादकता बढ़ती है। काम पर अनुपस्थित रहने की दर कम होती है और निश्चित तौर पर लोगों की कमाई बढ़ती है। इससे अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। जहां एक ओर बीमारी किसी परिवार को गरीबी में धकेल सकती है, तो दूसरी ओर अच्छी सेहत किसी परिवार को गरीबी रेखा से बाहर आने की राह बनाती है।
नोबेल विजेता एंगुस डीटोन ने अपनी किताब ‘द ग्रेट एस्केप: हेल्थ, वेल्थ एंड ओरिजिन आफ इनइक्वेलिटी’ में इस बात के प्रमाण दिए हैं कि यूरोपीय देशों के आर्थिक विकास का सीधा संबंध स्वास्थ्य, जल एवं स्वच्छता के क्षेत्र में उनके ज्यादा निवेश से है। इन देशों ने 19वीं सदी में हैजा और 20वीं सदी में इंफ्लुएंजा के कारण फैली महामारियों के बाद से इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ा दिया था। उन महामारियों के समय भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था। आजादी के बाद से हमने कोविड के रूप में पहली महामारी का सामना किया है। अब जबकि हम महामारी को पीछे छोड़ रहे हैं, ऐसे में सरकार और जनता दोनों को मिलकर अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था एवं स्वस्थ समाज को लेकर काम करना होगा।
आजादी का अमृत वर्ष सही समय है कि हम योजना बनाएं और स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता में रखते हुए आगे बढ़ें, जिससे 2047 में आजादी के 100 वर्ष होने के मौके पर स्थितियों में आमूलचूल बदलाव हो। 2047 में स्वस्थ भारत का निर्माण बड़ी चुनौती है। दरअसल स्वास्थ्य राज्य का विषय है और इसीलिए सभी राज्य सरकारों को स्वास्थ्य पर निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए। सभी राज्यों को बजटीय खर्च में आठ प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र को देना चाहिए और स्वास्थ्य क्षेत्र की चुनौतियों से निपटने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
रणनीति बीमार के इलाज के साथ ही इस पर केंद्रित होनी चाहिए कि बीमारियों से बचाव कैसे हो और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा कैसे दिया जाए। सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को पूरी तरह फंक्शनल करते हुए ऐसा संभव है। स्कूल जाने की उम्र के 25 करोड़ बच्चों, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरतों वाले 14 करोड़ लोग और 14 करोड़ बुजुगोर्ं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने और सभी स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करने की जरूरत होगी।
कोविड-19 न तो पहली महामारी थी और न ही आखिरी होगी। देश को भविष्य में किसी भी महामारी से निपटने के लिए लोगों एवं व्यवस्थाओं को तैयार करना होगा। हर राज्य में ब्लाक स्तर तक हेल्थ कैडर होना चाहिए। हाल ही में गुजरात के जामनगर में पारंपरिक दवाओं को लेकर डब्ल्यूएचओ का ग्लोबल सेंटर स्थापित किया गया है। अगले 25 साल भारत को पारंपरिक दवाओं के असर और प्रमाण जुटाने की दिशा में काम करना चाहिए।
[प्रिवेंटिव मेडिसिन स्पेशलिस्ट एवं एपिडेमियालाजिस्ट, नई दिल्ली]