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    Independence Day 2022: अंग्रेजों ने बनाया था देश का पहला झंडा, 75 वर्षों में कई बदलाव के बाद बना तिरंगा

    Independence Day 2022 देश का पहला एकीकृत झंडा 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने बनाया था जिसका मकसद पूरे देश पर ब्रिटिश शासन लागू करना था। इससे पहले भारत का कोई एक राष्ट्रीय ध्वज नहीं था। कई बदलावों के बाद तिरंगा बना।

    By Abhishek TiwariEdited By: Updated: Sat, 13 Aug 2022 02:18 PM (IST)
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    Independence Day 2022: अंग्रेजों ने बनाया था देश का पहला झंडा

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ (75th Independence Day) के मौके पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है। इसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर देशभर में आज से तीन दिन के लिए हर घर तिरंगा अभियान (Har Ghar Tiranga Campaign) चलाया जा रहा है।

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    तिरंगा केवल राष्ट्रीय ध्वज नहीं है, बल्कि ये देश की अखंडता, एकता, शौर्य और हर देशवासी की शान का भी प्रतीक है। लेकिन हमेशा से भारत का एक राष्ट्रीय ध्वज नहीं रहा है। क्या आप जानते हैं कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा कैसे अस्तित्व में आया और इसका मतलब क्या है?

    रोचक है तिरंगे के राष्ट्रीय ध्वज बनने की यात्रा

    ब्रिटिश हुकूमत से पहले देश का कोई एक ध्वज नहीं था। इससे पहले अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग शासकों का राज था। सबका अपना अलग-अलग ध्वज था। वर्ष 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला भारतीय विद्रोह हुआ। इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या सिपाही विद्रोह अथवा पहला सशस्त्र विद्रोह भी कहा जाता है। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत के लिए पहला ध्वज तैयार किया।

    इसका मकसद भारत के अलग-अलग प्रांत के शासकों के ध्वज की जगह ब्रिटिश शासन के एक ध्वज को मान्यता देना था। अंग्रेजों का ये ध्वज भारतीयों की गुलामी और ब्रिटिश शासन का प्रतीक था। यहीं से आज के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की शुरूआत हुई।

    अंग्रेजों ने भारत के लिए अपनाया था गहरे नीले रंग ध्वज

    1857 में अंग्रेजों ने भारत के लिए जो ध्वज अपनाया, वो गहरे नीले रंग का था, जिसके बाएं कोने में ऊपर की तरफ यूनियन जैक बना हुआ था। और दाहिने तरफ के हिस्से में बीचो-बीच पीली पंखुड़ियों व नीले घेरे के बीच एक भारतीय स्टार बना हुआ था।

    इसके बाद 20वीं सदी की शुरुआत में बंगाल समेत पूरे भारत में लार्ड कर्जन के खिलाफ विरोध की लहर उठी। इसी दौरान 1905 में विवेकानंद की युवा आयरिश शिष्या मार्गरेट नोबल (सिस्टर निवेदिता) ने निवेदिता कन्या विद्यालय की छात्राओं की मदद से एक राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया।

    ध्वज पर बंगाली भाषा में लिखा था वंदे मातरम

    लाल रंग के इस ध्वज के बीच में शक्ति के स्वरूप के तौर पर पीले रंग का एक वज्र बना था। केंद्र में सफेद रंग का एक कमल का फूल, पवित्रता के प्रतीक के तौर पर शामिल किया गया। ध्वज के दोनों ओर बंगाली भाषा में वंदे मातरम लिखा था। साथ ही ध्वज के चारो किनारों पर 101 प्रज्वलित दीपों की लौ अंकित की गई थी।

    इसके बाद 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के ग्रीन पार्क में राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर एक दूसरा फ्लैग फहराया गया। इसमें केसरिया पीले और हरे संग की तीन पट्टियां बनीं थी। पीले रंग की पट्टी के बीच में वंदेमातरम् लिखा था। वही, भगवा रंग की पट्टी में आठ कमल के फूल बने हुए थे।

    अगस्त 1907 : मैडम भीकाजी कामा और उनके सहयोगी निर्वासित क्रांतिकारियों के समूह ने अगस्त 1907 में जर्मनी के शहर स्टुटगार्ट में दूसरी सोशलिस्ट कांग्रेस में हिस्सा लिया और इसके अधिवेशन स्थल पर ही अतंर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के बीच एक भारतीय ध्वज फहराया, जो विदेशी भूमि में फहराया जाने वाला पहला भारतीय ध्वज था। इसे 'भारत की स्वतंत्रता का ध्वज' नाम दिया गया।

    अगस्त 1917 : डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में स्वराज की पहली आकांक्षा से होमरूल आंदोलन शुरू किया गया, इस दौरान एक नया झंडा अपनाया गया। इसमें पांच क्षैतिज लाल और चार हरी क्षैतिज धारियां थीं और सप्तर्षि विन्यास में सात तारे थे। एक सफेद अर्धचंद्र और तारा शीर्ष के कोने पर स्थित था।

    अप्रैल 1921 : महात्मा गांधी ने अपनी पत्रिका 'यंग इंडिया' में एक भारतीय ध्वज की आवश्यकता के बारे में लिखा है, जिसमें केंद्र में चरखे के साथ एक ध्वज का प्रस्ताव था। ध्वज में चरखे अंकन का विचार लाला हंसराज ने रखा था।

    वहीं, गांधीजी ने पिंगली वेंकय्या को लाल और हरे रंग की पृष्ठभूमि पर चरखे के साथ एक ध्वज डिजाइन करने के लिए नियुक्त किया था। हालांकि गाधीजी चाहते थे कि ध्वज को 1921 के कांग्रेस अधिवेशन में प्रस्तुत किया जाए, लेकिन इसे समय पर तैयार नहीं किया जा सका। इस देरी का सदुपयोग करते हुए बाद में इसमें सफेद रंग और जोड़ दिया गया।

    1931 : साल 1929 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रसार के दौरान ब्रिटिश विरोधी विचारों को नई धार मिली। इसके साथ-साथ ध्वज में भी बदलाव आये। कराची में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पिंगली वेंकय्या द्वारा तैयार किए तीन रंगों के ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इस तथ्य पर जोर दिया गया कि झंडे की कोई धार्मिक व्याख्या नहीं होनी चाहिए।

    लाल रंग बलिदान का, श्वेत रंग पवित्रता और हरा रंग आशा का प्रतीक माना गया। देश की प्रगति का सूचक चरखा इसके केंद्र में जोड़ा गया। गाधीजी ने स्वीकार किया था कि ध्वज में यह बदलाव राष्ट्रीय आंदोलन में विशिष्ट आवश्यकताओं की प्रतिक्रिया थी। ऐसा माना गया कि नया झंडा, राष्ट्रवादी भावनाओं के साथ जन आंदोलन के प्रयास अधिक सुचारू रूप से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण चिन्ह हो सकता है।

    तिरंगे का वर्तमान स्वरूप

    झंडे के वर्तमान स्वरूप को मान्यता तब मिली जब 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद, रंग और उनका महत्व वही रहा।

    तिरंगे के ऊपरी भाग में केसरिया रंग "साहस और शक्ति" का प्रतीक है, बीच में सफेद "शांति और सत्य" का प्रतिनिधित्व करता है और नीचे हरा "भूमि की उर्वरता, विकास और शुभता" का प्रतीक है। ध्वज पर प्रतीक के रूप में 24 तीलियों वाले अशोक चक्र ने चरखे को प्रतिस्थापित किया है। इसका उद्देश्य "यह दिखाना है कि गति में जीवन है और ठहराव में मृत्यु है।"

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