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    Swachh Survekshan 2023: आखिर स्वच्छता के मामले में क्यों नहीं सुधर रहा एनसीआर? ये वजहें हैं जिम्मेदार

    Updated: Thu, 18 Jan 2024 02:46 PM (IST)

    राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नगर निकाय इस स्लोगन को उत्साह में इसे अपनी तारीफ मान बैठे हैं। तभी देशभर की स्वच्छता रैंकिंग में शहरों की सुधार करने की इच्छाशक्ति घुटने टेक चुकी है। आखिर एनसीआर स्वच्छता के मामले में सुधर क्यों नहीं पा रहा है? इसके लिए कौन है जिम्मेदार? एनसीआर को स्वच्छता के मामले में देश में अव्वल बनाने के लिए जन सहभागिता किस हद तक जरूरी है?

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    आखिर स्वच्छता के मामले में क्यों नहीं सुधर रहा एनसीआर?

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दाग अच्छे हैं...ऐसा लगता है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नगर निकाय इस स्लोगन को उत्साह में इसे अपनी तारीफ मान बैठे हैं। तभी देशभर की स्वच्छता रैंकिंग में शहरों की सुधार करने की इच्छाशक्ति घुटने टेक चुकी है। अन्यमनस्कता का पैमाना ये है कि रैंकिंग में लुढ़कते शहर धड़ाम से आकर गिर रहे हैं।

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    गुरुग्राम गंदे शहरों में कीर्तिमान गढ़ने का श्रेष्ठ उद्धरण है। हरियाणा के शहर हों या दिल्ली नगर निगम दोनों ही बुरी तरह विफल हुए हैं। यदि राजधानी में भी स्वच्छता की स्थिति नजीर नहीं बनेगी तो देश की छवि दुनिया भर में खराब होगी। हमेशा ही इंदौर और सूरत सबसे स्वच्छ शहर रहें इनके मानकों से आगे बढ़ने की स्वच्छता की दौड़ में सफल होने की इच्छाशक्ति इन शहरों में क्यों नहीं उठती?

    सवाल यही है आखिर एनसीआर स्वच्छता के मामले में सुधर क्यों नहीं पा रहा है? इसके लिए कौन है जिम्मेदार? एनसीआर को स्वच्छता के मामले में देश में अव्वल बनाने के लिए जन सहभागिता किस हद तक जरूरी है? और कैसे हो हालात में सुधार? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :

    क्या आप मानते हैं कि स्वच्छ रैंकिंग में एनसीआर के पिछड़ने की मुख्य वजह प्रशासनिक लापरवाही है?

    -हां : 93

    -नहीं : 7

    क्या एनसीआर के शहर जनसहभागिता बढ़ाकर स्वच्छ रैंकिंग के पैमानों पर खरे उतर सकते हैं?

    -हां : 89

    -नहीं : 11

    'फिसड्डी' के दाग से खुश निकाय

    राष्ट्रीय स्वच्छ रैंकिंग में एनसीआर के कई शहर व निकाय राष्ट्रीय व प्रादेशिक स्तर पर इस बार भी खासा पिछड़े हैं। इनका पिछड़ना कोई नई बात भी नहीं है। ये स्थिति पिछले कई वर्षों से लगातार बनी हुई है।

    कुछ शहरों ने जहां प्रयास किया है, उन्होंने पहले से बेहतर स्थान पाया है। यह दर्शाता है कि प्रशासनिक स्तर पर स्वच्छ रैंकिंग में सुधार के लिए अधिकतर जिले या निकाय कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में यह स्थिति बेहद परेशान करने वाली है।

    स्वच्छ सर्वेक्षण (इन्फो)

    पूर्वकालिक निगमों की रैकिंग दो वर्ष
    निकाय 2022 (45 में से) : 2021 (48 में से)

    दक्षिणी निगम

    28 : 31
    उत्तरी निगम 37 : 45
    पूर्वी निगम   34 : 40

    एनडीएमसी की रैकिंग 

    • निकाय: 2022 (383 में से)-2021 (371 में से)
    • एनडीएमसी : 3 : 1
    • नोट: 4354 कुल निकायों में से एनडीएमसी का स्थान 2022 में नौंवा था। इस वर्ष यह स्थान सातवां है।

    स्वच्छता रैकिंग परिणाम 2023

    निकाय 2023 (446 में से)
    एमसीडी 90
    एनडीएमसी 7
    दिल्ली कैंट 7 (61 में से)

    दिल्ली नगर निगम 

    • डोर टू डोर कूड़े का एकत्रीकरण : 71%
    • स्रोत पर ही कूड़े का पृथक्करण : 100%
    • उत्पन्न कूड़ा और उसका निस्तारण : 86%
    • सार्वजनिक शैचालयों की साफ-सफाई : 97%
    • बाजारों की सफाई : 59%
    • रिहायशी इलाकों की प्रतिदिन सफाई : 59%
    • कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने की स्थिति : 38%

    गुरुग्राम 

    वर्ष स्वच्छता रैंकिंग
    2020 62
    2021 24
    2022 19
    2023 140

    नोट : 2023 में 446 शहरों में रैंक रही।

    फरीदाबाद 

    वर्ष स्वच्छता रैंकिग
    2020 38
    2021 41
    2022 34
    2023 36

    नोट : 2023 में 446 शहरों में रैंक रही।

    हरियाणा के शहर क्यों रहे फिसड्डी?

    गुरुग्राम का प्रदर्शन आठ साल में इस बार सबसे खराब रहा। बंधवाड़ी में बने कूड़े के पहाड़, सफाई कर्मचारियों की 85 दिन तक लगातार चली हड़ताल के कारण शहर में भी फैली गंदगी।

    डोर टू डोर कचरा कलेक्शन 100 प्रतिशत नहीं होने, डस्टबिन की कमी, घरों में ही सूखा और गीला कचरा अलग-अलग नहीं करने आदि कारणों से गुरुग्राम स्वच्छता रैंकिंग में बेहतर जगह नहीं बन पाया। फरीदाबाद में शहर के सार्वजनिक शौचालयों की दशा ठीक नहीं। किसी भी वार्ड में गीला व सूखा कचरा अलग-अलग एकत्र नहीं हो पा रहा है।

    नोएडा 

    वर्ष स्वच्छता रैंकिग
    2020 25
    2021 4
    2022 5
    2023 14

    नोट : 2023 में 446 शहरों में से रैंक रही।

    नोएडा सिटी रिपोर्ट कार्ड 

    डोर टू डोर कलेक्शन 99%
    कचरा निस्तारण 74%
    वेस्ट जेनरेशन और प्रोसेसिंग 91%
    डंप साइट पर रेमीडेशन 100%
    आवासीय एरिया स्वच्छता 100%
    बाजार में स्वच्छता 100%
    वाटर बाडीज 100%
    सार्वजनिक शौचालय 100%

    गाजियाबाद 

    वर्ष स्वच्छ रैंकिंग
    2020 19
    2021 18
    2022 12
    2023 19

    नोट : 2023 में 446 शहरों में से रैंक रही।

    खत्म हो बहुनिकाय व्यवस्था, बढ़े जिम्मेदारी

    स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 में 446 शहरी स्थानीय निकायों में दिल्ली नगर निगम, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद फिर से फिसड्डी साबित हुए हैं। दिल्ली-एनसीआर में केवल नोएडा कुछ उम्मीद जताता है, वर्ष 2018 के सर्वे में नोएडा की राष्ट्रीय रैंकिंग 324 थी जो अब 14वीं है।

    सूखा, गीला और खतरनाक कचरे का प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण, लैंडफिल में निष्पादन, निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रसंस्करण, सड़क की धूल, वाहन एवं उद्योगों से उत्सर्जन आदि शहर की स्वच्छता स्थिति के प्रमुख मानक माने गए हैं।

    स्वच्छता की दृष्टि से दिल्ली नगर निगम के प्रमुख कार्यों में गली, सड़क, नाले-नालियों की सफाई, गीला और सूखा कचरे की छंटाई व निपटान, घर-घर जाकर कूड़ा संग्रह करना, निर्माण और विध्वंस कचरे का निष्पादन तथा तीनों लैंडफिल स्थलों से कूड़े का निपटान आदि है।

    गलियों व सड़कों में रविवार व छुट्टी के दिन को छोड़कर सुबह सरसरी तौर पर झाड़ू लगता है, कूड़े का ढेर लगा कर सफाईकर्मी चल देता है, जब तक कूड़ा एकत्र करने वाला आता है कुछ कूड़ा उड़ जाता है। सफाईकर्मियों के लिए उचित यार्डस्टिक का निर्धारण तथा अच्छा वेतन देने के बावजूद कर्मियों को पूरे दिन सफाई-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी निगम नहीं कर पाया है।

    सार्वजनिक शौचालयों की सफाई न के बराबर है। मुख्य सड़कों पर मैकेनिकल स्वीपिंग का तंत्र विस्तारित नहीं है, निगम क्षेत्र का 30 प्रतिशत हिस्सा अनधिकृत कालोनियों का है जहां सफाईकर्मियों के स्थायी पद व प्रबंधन ही नहीं है।

    दिल्लीवासियों को गीला और सूखा कचरे को पृथक करने के प्रति निगम जागृत नहीं कर पाया क्योंकि वह खुद ही इसके प्रति गंभीर नहीं है। घर-घर जाकर कूड़ा संग्रह करने का कार्य केवल गली में फेरी लगाने के रूप में है, अधिकतर दिल्लीवासी इसमें शामिल नहीं हैं।

    कब खत्म होंगे कूडे के 'पहाड़'

    अस्थिर खड़ी ढलानों व अत्यधिक ऊंचाई के साथ दिल्ली की तीनों गाजीपुर, भलस्वा व ओखला लैंडफिल स्थलों से कूड़े के निपटान की जिम्मेदारी दिल्ली नगर निगम की है, वर्षों तक निष्क्रिय रहने के बाद भलस्वा में आग लगने व गाजीपुर लैंडफिल की ढलान का एक हिस्सा गिरने से दो लोगों की मौत होने पर गत ढाई-तीन वर्ष से कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई कम करने का कार्य निगम ने आरंभ किया है। हालांकि पूराने कचरे के निष्पादन के साथ, हर दिन नया कचरा भी लैंडफिल स्थलों पर डाला जा रहा है।

    निष्पादन तो दूर की बात है, निर्माण और विध्वंस कचरे के प्रबंधन की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। नालों की सफाई का कार्य वर्ष में एक बार मानसून से पहले कराया जाता है वह भी आधा-अधूरा। बरसाती नालियों का उपयोग दिल्ली जल बोर्ड अपने सीवर निपटान के लिए भी करता है और उस पर निगम का कोई नियंत्रण नहीं है।

    दरअसल देश के बाकी निगमों की तरह दिल्ली नगर निगम के पास जल, मल, सीवर, बिजली, परिवहन, स्लम आदि पर नियंत्रण नहीं है। निगम क्षेत्र में निगम के कई कार्य केंद्र व राज्य सरकार के नियंत्रण में हैं, लेकिन स्वच्छता सर्वेक्षण में उसका खामियाजा दिल्ली नगर निगम को भुगतना पड़ता है।

    फरीदाबाद में नहीं कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था

    फरीदाबाद में 850-900 टन कचरा निकलता है जिसके निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है, गुरुग्राम में 900 टन से अधिक कचरा निकलता है। गुरुग्राम व फरीदाबाद का लगभग 1800 टन कूड़ा बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर डलता है। गाजियाबाद में लगभग 1600 टन कूड़ा, कचरे के निस्तारण की सीमित व्यवस्था है, ठोस अपशिष्ट डंपों के समाधान पर इसका प्रदर्शन निराशाजनक है।

    नोएडा को उत्तर प्रदेश का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया है, कूड़ा-कचरा स्थलों की मरम्मत, आवासीय क्षेत्रों, बाजार क्षेत्रों, जल निकायों और सार्वजनिक शौचालयों की सफाई, घर-घर जाकर कचरा संग्रहण में उसने बेहतरीन क्षमता प्रदर्शित की है।

    कैसे हो सकता है समाधान?

    दिल्ली को लैंडफिल स्थलों से सभी पुराने कचरे का निवारण कर वैज्ञानिक रूप से अपने 100 प्रतिशत कचरे का प्रबंधन व निष्पादन करना होगा। नालों की सफाई नियमित करनी होगी, बरसाती नालों या नालों में कोई दृश्यमान ठोस अपशिष्ट नहीं रहे इसके लिए समय-समय पर स्क्रीनिंग करें।

    लैंडफिल स्थलों का विज्ञानी प्रबंधन कर विकसित होने वाली गैसों पर पूर्ण नियंत्रण तथा कचरे तक कृंतकों व मक्खियों जैसे बैक्टिरीया की सीमित पहुंच सुनिश्चित करे। सीवर प्रबंधन भी स्वच्छता के लिए जरूरी है इसलिए दिल्ली जल बोर्ड को पुनः दिल्ली नगर निगम के हवाले किया जाए।

    नदियों और नालों में स्वच्छता बनाए रखने की जिम्मेदारी निगम के पास हो ताकि मानक निगम की क्षमता का सही आकलन कर सकें। दिल्ली में यह अलग-अलग निकायों की व्यवस्था से अभी जिम्मेदारी तय नहीं हो पा रही है।

    ऐसे में जब यह व्यवस्था खत्म हो जाएगी तो जिम्मेदारी भी तय हो जाएगी। यह जानकारी जागरण संवाददाता निहाल सिंह से नगर निगम निर्माण समिति पूर्व चेयरमैन जगदीश ममगांई से बातचीत पर आधारित है। 

    इच्छाशक्ति और जनभागीदारी ही स्वच्छ शहर का मंत्र

    शहरों में स्वच्छता या सफाई आज सबसे बड़ा मुद्दा है। जैसे-जैसे शहरों में आबादी बढ़ रही है, इसके साथ कूड़े का निपटान भी चुनौती बन गया है। ओवरआल एनसीआर में देखें तो गुरुग्राम सबसे फिसड्डी रैंक आई है।

    खासतौर से गुरुग्राम जैसे बड़े शहरों में कूड़े की मात्रा भी अन्य शहरों के मुकाबले ज्यादा है। पिछले एक दशक में काफी चीजें तेजी से बदली हैं। हाल ही में हुए स्वच्छ सर्वेक्षण के नतीजों में गुरुग्राम की स्थिति भी चिंताजनक रही है। प्रदेश के अन्य शहरों की बात करें तो भी प्रदर्शन को शानदार नहीं कहा जा सकता है।

    परिणाम बेहतर लाने के लिए बहुत ज्यादा बजट नहीं बल्कि मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है। किसी भी शहर की सफाई में जनभागीदारी भी जरूरी है। अगर नागरिक अपने आसपास के क्षेत्र को साफ सुथरा रखेंगे तो पूरा शहर साफ नजर आएगा। कार से चलते कहीं पर भी कूड़ा न फेंके, डस्टबिन का ज्यादा-ज्यादा उपयोग आदि ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं, जिनका ध्यान रखने से शहर स्वच्छ बन सकता है।

    सबसे पहले धरातल की अगर बात करें तो सफाई में सबसे बड़ी भूमिका सफाईकर्मियों की होती है। सेनिटेशन विंग या इससे उच्च अधिकारियों को नियमित फील्ड में निकलकर सफाईकर्मियों की बीट को चेक करना चाहिए। सफाईकर्मी की भी यह जिम्मेदारी है कि वह अपनी बीट यानी निर्धारित क्षेत्र की सफाई करें।

    सिंगापुर में रात को ही उठ जाता है कूड़ा

    इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि सफाईकर्मियों द्वारा झाड़ू निकालने के बाद एकत्रित कूड़े का उठान। यह देखने में आता है कि सफाईकर्मी तो सफाई करके चले जाते हैं, लेकिन कूड़ा अगले दिन तक भी नहीं उठता है। कूड़ा उठान का कार्य डबल शिफ्ट में होना चाहिए। रात को भी कूड़ा उठने से सफाई व्यवस्था सुधर सकती है। सिंगापुर की अगर बात करें तो रात को ही कूड़ा उठ जाता है और कहीं पर भी गंदगी नजर नहीं आती है।

    एक और अहम बात है कूड़ा सेग्रीगेशन या कूड़े की छंटाई। जब तक घरों में गीले और सूखे कूड़े को अलग-अलग नहीं किया जाएगा तब तक लैंडफिल साइट पर कूड़े का पहाड़ बनता रहेगा। नगर निगम को चाहिए कि घरों में नीला तथा हरे रंग का डस्टबिन रखवाया जाए।

    इसके साथ ही आरडब्ल्यूए की भी जिम्मेदारी तय हो कि कहीं भी मिश्रित कूड़ा घरों से न निकले। अगर जरूरी हो तो नियम का पालन नहीं मिलने पर संबंधित आरडब्ल्यूए पर नगर निगम जुर्माना भी लग सकता है। निगम अधिकारियों की इस कार्य की जांच के लिए ड्यूटी लगे और इसका रूटीन निरीक्षण होगा तो एक से दो महीने में जरूर बदलाव नजर आएगा।

    सड़कों पर सिर्फ कूड़ा ही नहीं मलबा भी फेंका जा रहा है। नगर निगम अधिकारियों को इसकी निगरानी करनी चाहिए। ऐसे प्वाइंट जहां पर नियमित कूड़ा या मलबा डाला जा रहा है, उन जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं। इसके आधार पर नियमों का पालन नहीं करने वालों पर जुर्माना लगाया जा सकता है।

    अवैध कूड़ा फेंकने वाले वाहनों को जब्त करना चाहिए। शहर की सड़कें तो सीएसआर के तहत भी साफ हो सकती हैं। बड़े-बड़े बिल्डर और कारपोरेट को सड़कों की सफाई और इनको ग्रीन बनाने की जिम्मेदारी सौंपने से नगर निगम का काम आधा रह जाएगा। कई किलोमीटर लंबी मुख्य सड़कें सीएसआर के अंतर्गत स्वच्छ बन सकती हैं।

    रोजाना निकलता है 50 किलोग्राम कूड़ा

    इसके अलावा बल्क वेस्ट जनरेट यानी 50 किलोग्राम कूड़ा जहां से रोजाना निकलता हो, उनके नियमानुसार अपने स्तर पर ही कूड़े का निपटान करना होता है। बल्क वेस्ट जनरेट को कंपोस्टर लगाना चाहिए ताकि अपनी सोसायटी या संस्थान में ही कूड़े से कंपोस्ट तैयार हो और इसका उपयोग हरियाली बढ़ाने में किया जाए। इससे एक तरफ जहां शहर हरा-भरा होगा, वहीं कूड़े का भी निपटान सही तरीके से होगा।

    सफाई एक नियमित प्रक्रिया है और एक दिन का काम नहीं है। स्वच्छ रैंकिंग में अव्वल आने के लिए इसे एक अभियान के तौर पर शुरू करना होगा। बेहतरीन रैंकिंग वाले बाकी शहरों ने भी इसी तरह काम किया है और कम संसाधनों में बेहतर नतीजे उनको मिले हैं। यह जानकारी जागरण संवाददाता संदीप रतन से सेवानिवृत आइएएस डॉ. एनसी वधवा से बातचीत पर आधारित है।