सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटा, वर्षों पुरानी विवादित जमीन को घोषित किया तालाब
सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद की एक विवादित जमीन को तालाब घोषित किया है। हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अथॉरिटीज ने लगातार एक सहमति के निष्कर्ष दिए जिसमें जमीन को तालाब माना गया है। हाईकोर्ट ने बिना किसी साक्ष्य के आधार पर ये निष्कर्ष जोड़ दिया कि उस जमीन को ऊसर जमीन माना जाए।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गाजियाबाद की एक जमीन को तालाब माना जाएगा या ऊसर जमीन, कई दशकों से लटका यह विवाद निपट गया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए विवादित भूमि को तालाब घोषित कर दिया है। शीर्ष अदालत ने साक्ष्यों और तर्कों के साथ दिए गए निचली अथारिटी के निष्कर्षों को यूं हीं नकार देने और जमीन को ऊसर जमीन मानने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि निचली अथॉरिटीज ने लगातार एक सहमति के निष्कर्ष दिए जिसमें जमीन को तालाब माना गया है। हाईकोर्ट ने निचली अथॉरिटीज के साक्ष्यों का पुर्न आंकलन करके उसे बदला और बिना किसी साक्ष्य के आधार पर ये निष्कर्ष जोड़ दिया कि उस जमीन को ऊसर जमीन माना जाए।
काफी पुराना था विवाद
गाजियाबाद की जमीन से जुड़ा यह विवाद काफी पुराना है। 1970 में विवादित जमीन राजस्व रिकॉर्ड में तालाब के रूप में दर्ज थी। वर्ष 2003 में खचेड़ू नाम के व्यक्ति ने जमीन पर अपना दावा किया और कहा कि 1981-82 के राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार, उसके पास जमीन का पट्टा है।
'गांव वाले पानी का करते थे उपयोग'
वहीं, दूसरी ओर अजय कुमार ने यूपी जमीदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में अर्जी दाखिल कर खचेड़ू के दावे का विरोध किया। कहा कि कंसोलिडिएशन प्रक्रिया शुरू होने से पहले से विवादित जमीन तालाब है। वह जमीन ऊसर भूमि नहीं है और जलाशय होने के कारण कांसोलिडेशन प्रक्रिया से उस जमीन को बाहर रखा गया था, क्योंकि उसका पानी गांव वाले उपयोग करते थे।
गाजियाबाद के एडीशनल डिस्टि्रक मजिस्ट्रेट ने मामले की जांच कराई और 2004 के आदेश में जमीन के पट्टे का दावा झूठा करार दिया। तहसीलदार की रिपोर्ट के मुताबिक पट्टे के बारे में कोई फाइल तहसील आफिस में उपलब्ध नहीं है। दावा 1981 में पट्टा आवंटन का था जबकि आवंटन रजिस्टर में 1978-79 दिख रहा है।
माना गया कि खतौनी में हुई प्रविष्टि फर्जी है। आदेश दिया गया कि राजस्व प्रविष्टि ठीक की जाए और उस पट्टे को रद माना जाए। खचेड़ू ने इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार अपील कमिश्नर मेरठ के यहां की जो खारिज हो गई।
इस बीच अजय सिंह ने गाजियाबाद में सिविल जज जूनियर डिवीजन की अदालत में वाद दाखिल किया और उसमें खचेड़ू के विवादित जमीन पर दखल देने से स्थाई रोक लगाने की मांग की। सिविल जज ने 2005 को एकतरफा आदेश दिया, जिसमें गांव वालों के तालाब का पानी उपयोग करने में खचेड़ू द्वारा किसी भी तरह का व्यवधान डालने पर रोक लगा दी।
खचेड़ू ने सभी आदेशों को चुनौती दी लेकिन खारिज हो गईं। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की जिसमें हाईकोर्ट ने 2013 को जमीन को ऊसर जमीन घोषित कर दिया था और निचली अथॉरिटीज का आदेश खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन को तालाब घोषित करने के अथॉरिटीज के आदेश को बहाल कर दिया है।
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