सुप्रीम कोर्ट से मेधा पाटकर को झटका, दिल्ली एलजी के मानहानि मामले में नहीं मिली राहत; पढ़ें अदालत की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में मेधा पाटकर को राहत नहीं दी है। कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा है। पीठ ने कहा कि पाटकर को अच्छे आचरण के आधार पर हाई कोर्ट से मिली राहत पर हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है। जुर्माना रद्द कर दिया गया है। सक्सेना ने यह मामला 25 साल पहले दायर किया था।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से 25 साल पहले दायर किए गए मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को कोई राहत नहीं दी है। कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि पाटकर को अच्छे आचरण के आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट से मिली राहत पर वह कोई हस्तक्षेप नहीं कर रही है, लेकिन उनसे हर तीन वर्ष में एक बार ट्रायल कोर्ट के सामने पेश होने की अपेक्षा की गई थी। पीठ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के वकील की दलील को ध्यान में रखते हुए लगाया गया जुर्माना रद्द कर दिया है और हम आगे स्पष्ट करते हैं कि पर्यवेक्षण आदेश प्रभावी नहीं होगा।
उच्च न्यायालय ने 29 जुलाई को 70 वर्षीय पाटकर की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। सक्सेना ने यह मामला 25 साल पहले दायर किया था जब वह गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे।दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर के खिलाफ 24 नवंबर 2000 को मानहानि का मुकदमा दायर किया था। तब सक्सेना गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे।
मामले में मजिस्ट्रेट न्यायालय ने 1 जुलाई 2024 को पाटकर को आईपीसी की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी पाते हुए पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। हालांकि सत्र अदालत ने उन पर दोष बरकरार रखते हुए जुर्माने की रकम घटाकर एक लाख कर दी और अच्छे आचरण के आधार पर रिहा कर दिया था।
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