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    प्रदूषण का बड़ा साइड इफेक्टः दिल्ली में हर तीसरे बच्चे का फेफड़ा हुआ खराब

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Wed, 29 Nov 2017 09:30 PM (IST)

    प्रदूषित हवा से क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी बीमारियों का खतरा होता है, इसका असर दिमाग पर भी पड़ता है। ...और पढ़ें

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    प्रदूषण का बड़ा साइड इफेक्टः दिल्ली में हर तीसरे बच्चे का फेफड़ा हुआ खराब

    नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली में हर तीसरे बच्चे के फेफड़े प्रदूषण से प्रभावित हैं जबकि दिल्ली एनसीआर सहित देश के अधिकांश हिस्सों में हर साल होने वाली कुल मौत में 61 फीसद जीवनशैली और गैर संक्रमित बीमारियों की वजह से होती हैं। 2020 तक हर साल देश भर में कैंसर के 1.73 मिलियन नए मामले सामने आने का भी अनुमान है। इस सबकी बड़ी वजह है हवा में बढ़ता प्रदूषण, तंबाकू और खानपान में हो रहे बदलाव।

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    सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की नई रिपोर्ट में पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध होने की बात साबित हुई है। सीएसई ने बॉडी बर्डन नाम से अपनी यह रिपोर्ट सोमवार देर शाम इंडिया हैबिटेट सेंटर में विशेषज्ञों की समूह चर्चा के दौरान जारी की।

    रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हर 12वां भारतीय मधुमेह का रोगी है और ऐसेमरीजों के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है। 2016 तक भारत में अस्थमा के 35 मिलियन गंभीर मरीज सामने आ चुके हैं।

    प्रदूषण की वजह से देश में 30 फीसद मौत समय से पहले हो रही हैं। हर साल देश मे 2.7 मिलियन लोग दिल की बीमारियों से मर रहे हैं। इनमें से 52 फीसद की उम्र 70 साल से कम होती है।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार असंक्रामक बीमारियों की चार वजहें होती हैं। इनमें अल्कोहल, तंबाकू, खराब खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी प्रमुख है।

    सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण के अनुसार, भारत में उक्त चार कारणों के अलावा भी कई कारक हैं। इनमें पेस्टिसाइड भी एक है जो कैंसर के लिए जिम्मेदार है। नई रिपोर्ट में इसकी वजह से मधुमेह होने का अंदेशा भी जताया गया है।

    इसी तरह प्रदूषित हवा से क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी बीमारियों का खतरा होता है, इसका असर दिमाग पर भी पड़ता है। रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका विभा वाष्ण्रेय के अनुसार, यदि हम स्थायी विकास चाहते हैं तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कारणों को कम करना होगा। इसकेलिए 2030 तक हमें समय से पहले हो रही मौत में एक तिहाई तक की कमी लानी होगी।