Air Pollution: दिल्ली वालों को बीमार कर रहा पराली का धुआं, बच्चों व महिलाओं को हो रही ये परेशानी
Delhi Air Pollution शोध में सामने आया है कि पराली जलाने के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा में पीएम-2.5 की सांद्रता तय मानक (60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) से रोजाना औसतन चार गुना अधिक (193-270 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) बढ़ गई।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। पराली का धुआं दिल्ली एनसीआर की हवा को ही जहरीला नहीं बना रहा, यहां रहने वालों को बीमार भी कर रहा है। यह धुआं पीएम 2.5 के स्तर में चार गुना तक इजाफा कर देता है। इसके अत्यंत महीन प्रदूषक कण सांस के जरिये शरीर में जाते हैं एवं श्वसन प्रक्रिया में रुकावट पैदा करते हैं। चिंता की बात यह कि पराली का धुआं अब उम्रदराज लोगों को ही नहीं, बल्कि बच्चों और किशोरों को भी चपेट में ले रहा है।
पराली के धुएं से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीटयूट (टेरी) से शोध कराया है। अपनी तरह के इस पहले शोध की रिपोर्ट अभी सामने आई है। शोध के मुताबिक अक्टूबर में धान की कटाई शुरू हो जाती है। इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों में फसली अवशेषों (पराली) जलाने की घटनाएं भी बढ़ने लगती हैं। पराली का यही धुआं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा को जहरीली बनाकर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
जानकारी के मुताबिक शोध का मुख्य केंद्र बिंदु यह है कि हवा में पीएम-2.5 की मात्र अधिक होने पर 10 से 60 साल तक की उम्र के लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। शोध में विभिन्न आयु वर्गो के 3,644 व्यक्तियों को शामिल किया गया था। शोध का मकसद वायु की खराब गुणवत्ता और पराली जलाने की अवधि के दौरान पीएम-2.5 के संपर्क में आने वाली आबादी के श्वास लेने के प्रभाव को समझना और उसकी मात्र निर्धारित करना भी रहा।
शोध में सामने आया है कि पराली जलाने के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा में पीएम-2.5 की सांद्रता तय मानक (60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) से रोजाना औसतन चार गुना अधिक (193-270 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) बढ़ गई। इस दौरान दस से 60 वर्ष तक के लोगों में श्वसन संबंधी शिकायतों में वृद्धि देखी गई। श्वास संबंधी सबसे अधिक परेशानी 40-60 वर्ष के बीच के लोगों में पाई गई। शोध में यह भी पता चला कि फेफड़ों की कार्य क्षमता पर पराली के धुएं का प्रतिकूल प्रभाव सबसे कम उम्र वर्ग 10-18 वर्ष के पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक स्पष्ट पाया गया।
लीवर फंक्शन टेस्ट मापदंडों (फोर्स एक्सपायरेट्री वोल्यूम-एफईवी1, फोर्स वाइटल कैपेसिटी- एफवीसी) में कम-से-कम 10 फीसद की गिरावट आई। वहीं, पीक एक्सपायरेट्री फ्लो (पीईएफ) पुरुषों में और महिलाओं की आबादी में कम-से-कम 15 फीसद की कमी के साथ हर 100 यूनिट (माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) में पीएम-2.5 की मात्र में वृद्धि होती है। शोध में यह बात भी सामने आई है कि पराली जलाने की समयावधि के दौरान वायु की खराब गुणवत्ता के साथ परीक्षण मापदंडों के आधार पर फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट सभी आयु समूहों में दर्ज की गई थी।
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