दिल अभी 'आनंद' से भरा नहीं... भांजी सोहेला कपूर ने साझा कीं देव आनंद की अनसुनी बातें
देव आनंद सिनेमा के सुनहरे दौर के एक यादगार नाम सादगी और लोकप्रियता का अद्भुत संगम थे। अभी न जाओ छोड़कर जैसे उनके गीत आज भी प्रेम की गहराई को छूते हैं। पद्म भूषण और दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित देव आनंद का जीवन जमीन से जुड़ा रहा। वे अपनी सादगी और प्रशंसकों के प्रति आत्मीय व्यवहार के लिए जाने जाते थे। उनकी प्रेरणादायक कहानी दिलों में बसी है।

शालिनी देवरानी, नई दिल्ली। देव आनंद का जिक्र आते ही सिनेमा के सुनहरे दौर के नगमें कानों में गूंज उठते हैं। “अभी न जाओ छोड़ कर, दिल अभी भरा नहीं” जैसे गीतों ने प्रेम के अधूरेपन को स्वर दिया, तो “धीरे-धीरे चल चांद गगन में” और “लेके पहला-पहला प्यार” ने पहली मोहब्बत की मासूमियत को परदे पर अमर कर दिया।
देव आनंद के रूमानी अंदाज का दूसरा पहलू था, उनका जिंदादिल व्यक्तित्व, जिसे “छोड़ दो आंचल”, “मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया” और “है अपना दिल तो आवारा” जैसे गीतों ने नई ऊंचाई दी। इन गीतों ने न सिर्फ उस शख्सियत को खास बनाया, बल्कि रोमांटिक हीरो के साथ जोशीले अभिनेता के तौर पर भी पहचान दिलाई।
देव आनंद की जिंदगी सफलता, लोकप्रियता और सादगी का अद्भुत संगम थी। रोमांस के किंग कहे जाने वाले इस अभिनेता ने परदे पर मोहब्बत को एक नई पहचान दी और अपने दौर के सबसे स्टाइलिश, करिश्माई और लोकप्रिय सितारे बने।
भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया और भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया। लेकिन चमक-दमक के पीछे उनका जीवन उतना ही सरल और जमीन से जुड़ा रहा। दाल, रोटी और सरसों का साग उन्हें बड़े चाव से खाना पसंद था।
घर का बना सादा भोजन उनके लिए किसी शाही दावत से बढ़कर था। सादगी का आलम यह था कि उन्होंने कभी कोई निजी सहायक नहीं रखा, अपना फोन तक खुद उठाते थे। जहां भी जाते, फैन उन्हें घेर लेते, लेकिन उन्होंने कभी बाउंसर या सुरक्षाकर्मी रखना जरूरी नहीं समझा। देव आनंद का मानना था-“फैन हैं, तो हम हैं।
एक तरफ शोहरत की ऊंचाइयां, और दूसरी ओर सादगी, अपनापन और सहजता से भरा निजी जीवन ही उनकी असली पहचान बना। 26 सितंबर को उनका जन्मदिन है। उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्सों पर भारतीय अभिनेत्री और रंगमच निर्देशक भांजी सोहेला कपूर से बातचीत के अंश।
कुतुब मीनार में शूटिंग की जगह देखते थे प्रशंसक
लड़कियों की दीवानगी उनके लिए किसी फिल्मी किस्से से कम नहीं थी। 80 वर्ष की उम्र पार करने के बाद भी उन्हें दिन में कई फोन आते- कभी सिर्फ “आई लव यू” कहकर काॅल काट दी जाती।
अपनी आत्मकथा में उन्होंने यह भी लिखा कि देश-विदेश से लड़कियां न सिर्फ मिलने की ख्वाहिश जतातीं बल्कि फिल्मों में हीरोइन बनने की गुजारिश भी करती थीं।
1963 में आई फिल्म “तेरे घर के सामने” का सुपरहिट गाना “दिल का भंवर करे पुकार प्यार का राग सुनो प्यार का राग सुनो रे...” कुतुब मीनार परिसर में फिल्माया गया था। सुना है कि लोग उसके बाद कुतुम मीनार में सिर्फ उस जगह को देखने जाते थे।
सिरी फोर्ट में देखा देव आनंद का जादू
सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में फिल्म "हम दोनों" का रंगीन संस्करण दिखाया जाना था। सभागार खचाखच भरा था और बाहर तक लंबी कतारें थीं। सोहेला याद करते हुए बताती हैं - “उस दिन देखा कि लोग उनसे कितना प्यार करते हैं। हमने एंट्री भी मुश्किल से ली।
सात साल के बच्चों से लेकर साठ साल तक के दर्शक वहां मौजूद थे। जैसे ही देव आनंद मंच की ओर बढ़े, तो हल्का सा लड़खड़ा गए, कई लोग उन्हें थामने दौड़ पड़े। मुस्कराकर उन्होंने कहा-“अरे भाई, मैं बिल्कुल ठीक हूं। आपके होते मुझे क्या हो सकता है।
” उनका यही आत्मीय अंदाज था, जिसने दर्शकों को दीवाना बनाए रखा। लोग उनकी झलक पाने और छूने को उतावले रहते थे।
कई प्रशंसक हर प्रीमियर पर मौजूद रहते, जिन्हें वे नाम लेकर हाल-चाल पूछते थे। सोहेला याद करती हैं-“एक बार फैन अस्पताल में सर्जरी के लिए जाते हुए उनकी फोटो भगवान मानकर साथ ले गया। यह सुनकर मामा काफी भावुक हो गए थे।”
शीला सिनेमा और ‘ज्वेल थीफ’ की कैप
देव आनंद सिर्फ रोमांस के बादशाह नहीं, युवाओं के स्टाइल आइकन भी थे। उन्हें टोपियों, मफलरों, टाई और स्कार्फ का बड़ा शौक था। उन्होंने साल 1967 की थ्रिलर फिल्म ''ज्वेल्स थीफ'' में एक ट्वीड कैप पहनी थी, जो उन्हें बेटे सुनील ने यूरोप में गिफ्ट की थी।
सोहेला बताती हैं कि हम लोग फिल्म देखने शीला सिनेमा गए थे। फिल्म में देव आनंद ने जो ट्वीड कैप पहनी थी वो ये लुक पोस्टर से ही ऐसा पापुलर हुआ कि सिनेमा देखने पहुंचे करीब सभी दर्शक वैसी ही कैप पहनकर आए थे। दिल्ली के रीगल और ओडियन जैसे सिनेमाघरों में भी दर्शक देव आनंद के स्टाइल को कापी करते देखे थे।
दोनों बहनों से मिलने अक्सर दिल्ली होता था आना
देव आनंद की दो बहनों की शादी दिल्ली में हुई। शील कांता, जिनकी शादी महारानी बाग के एक डाॅक्टर से हुई, और कांता, जिनकी शादी जंगपुरा में एक वकील से हुई थी। भांजी सोहेला बताती हैं कि मां शील आनंद और मामा चेतन व देव आनंद के रिश्ते बेहद आत्मीय थे।
दोनों भाई खुले विचारों के थे और मां की पढ़ाई-लिखाई व नौकरीपेशा स्वभाव को बहुत मानते थे। देव आनंद अक्सर होटल में ठहरते, लेकिन घर पर त्योहारों और डिनर में जरूर शामिल होते। मुझे प्यार से नन्ही कहकर छेड़ते। उनकी आंखों की चमक खूब प्रेरित करती थी।
वे समय के पाबंद थे। कई बार मुंबई जाकर उनकी शूटिंग देखने का मौका भी मिला। वे न खुद शूटिंग पर देर से पहुंचते, न ही दूसरों की देरी बर्दाश्त करते।
अशोक कुमार और चार्ली चैप्लीन के थे फैन
देव आनंद के फैंस की तादाद लाखों में थी,वे खुद भी कई कलाकारों के दीवाने रहे। बचपन से अभिनेता मोतीलाल की अदाकारी उन्हें बेहद पसंद थी। घर बिल्कुल सामने था तो घंटों एक झलक पाने को खिड़की पर खड़े रहते थे।
एक बार हिम्मत जुटाकर उनके पास पहुंचे और बोले “मुझे आपके जैसा स्टार बनना है।” मोतीलाल ने मुस्कराकर सिर पर हाथ फेरते हुए कहा “मुझसे बड़ा क्यों नहीं?” यह बात देव आनंद के आत्मविश्वास की नींव बनी।
वे किशोर कुमार के भी बड़े प्रशंसक थे। संयोग देखिए, अशोक कुमार ने ही 1948 में उन्हें “जिद्दी” फिल्म में ब्रेक दिया, जो उनकी पहली हिट साबित हुई। वहीं, चार्ली चैपलिन की कला ने भी उन्हें गहराई से प्रभावित किया।
कई शहरों में छाएगा “आनंद”
सोहेला बताती हैं कि देव आनंद और उनके भाई चेतन आनंद और विजय आनंद ने फिल्म इंडस्ट्री को एक अलग दिशा दी। उनकी सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण था उनके बीच आपसी प्यार और समझ।
उनके इसी जीवन पहलुओं से लोगों को रूबरू कराने के लिए थ्री आर्ट्स क्लब और कात्यायनी के साथ मिलकर "आनंद ही आनंद” म्यूजिकल शो तैयार किया है, जिसमें चेतन, देव और विजय आनंद की पूरी जीवनी है। निधिकान्त पाण्डेय और साथ में अनुराधा दर के साथ इसे कई शहरों में लेकर जाएंगे।
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