Delhi: अभी आइएस के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा सिमी, संगठन पर पांच साल बढ़ाया गया प्रतिबंध
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पुरुषेन्द्र कुमार कौरव की अध्यक्षता वाले न्यायिक न्यायाधिकरण ने सिमी संगठन पर पांच साल तक प्रतिबंध बढ़ा दिया और न्यायाधिकरण ने सिमी पर प्रतिबंध की पुष्टि के लिए कई कारणों का हवाला देते हुए कहा कि समूह प्रतिबंधित आतंकी संगठन आइएस के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के हिस्से के रूप में भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के लिए काम करना जारी रखता है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पुरुषेन्द्र कुमार कौरव की अध्यक्षता वाले न्यायिक न्यायाधिकरण ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) पर लगाए गए प्रतिबंध को पांच साल तक बढ़ाने की पुष्टि करते हुए कहा कि संगठन ने इस्लाम के लिए जिहाद के अपने मकसद को नहीं छोड़ा है। सिमी भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के लिए कार्य करता रहा है।
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने 29 जनवरी, 2024 को सिमी पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ाने के फैसले के बाद गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण का गठन किया था।
सिमी आइएस के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा
न्यायाधिकरण ने सिमी पर प्रतिबंध की पुष्टि के लिए कई कारणों का हवाला देते हुए कहा कि समूह प्रतिबंधित आतंकी संगठन आइएस के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के हिस्से के रूप में भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के लिए काम करना जारी रखता है।
केंद्र सरकार की अधिसूचना में कहा गया था कि सिमी इस्लामी इंकलाब के माध्यम से शरीयत आधारित इस्लामी शासन के गठन पर भी जोर देता है। सिमी पर प्रतिबंध बढ़ाते हुए सरकार ने कहा था कि यह समूह देश में आतंकवाद को बढ़ावा देने और शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने में शामिल रहा है।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने सिमी को गैरकानूनी घोषित किया था
सिमी को पहली बार वर्ष 2001 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान गैरकानूनी घोषित किया गया था और तब से समय-समय पर प्रतिबंध बढ़ाया जाता रहा है। गृह मंत्रालय ने कहा था कि सिमी का कार्य उग्रवाद का समर्थन करना और देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए हानिकारक गतिविधियों को अंजाम देना रहा है।
सिमी की स्थापना 25 अप्रैल 1977 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जमात-ए-इस्लामी-हिंद में विश्वास रखने वाले युवाओं और छात्रों के एक प्रमुख संगठन के रूप में की गई थी। हालांकि, संगठन ने 1993 में एक प्रस्ताव के माध्यम से खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया।

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