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    आधुनिक दिल्ली की वास्तुकार थीं शीला दीक्षित, 1998 से 2013 तक रहीं मुख्यमंत्री

    शीला दीक्षित एक कुशल राजनीतिज्ञ थीं। करीब डेढ़ दशक तक उन्होंने राजधानी में न सिर्फ बेहतर ढंग से शासन किया। बल्कि दिल्लीवासियों का जीवनस्तर ऊपर उठाने में लगातार जुटी रहीं। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के समय वह एक कुशल प्रबंधक के रूप में भी नजर आईं।

    By Umesh KumarEdited By: Updated: Wed, 10 Aug 2022 09:50 AM (IST)
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    आधुनिक दिल्ली की वास्तुकार थीं शीला दीक्षित। (फाइल फोटो)

    नई दिल्ली, [संजीव गुप्ता]। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अक्सर दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने की बात कहा करती थीं। उन्होंने इसके लिए सिर्फ सपना ही नहीं देखा, बल्कि उसे साकार करने के लिए शिद्दत से पहल भी की थी। फ्लाईओवरों का संजाल, खंभों और जमीन के नीचे तेज भागती मेट्रो, लो-फ्लोर, एसी और सीएनजी चालित बसें, विश्वस्तरीय सुविधायुक्त स्टेडियम, बड़े अस्पताल, बिजली वितरण में सुधार, ये कुछ ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं, जिन्होंने दिल्ली को आधुनिक एवं विश्वस्तरीय राजधानी के रूप में पहचान दी। ये सभी आज जिस रूप में नजर आ रहे हैं, उनमें से ज्यादातर की परिकल्पना दिल्ली में 1998 से 2013 तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने की थी।

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    शीला दीक्षित एक कुशल राजनीतिज्ञ थीं। करीब डेढ़ दशक तक उन्होंने राजधानी में न सिर्फ बेहतर ढंग से शासन किया। बल्कि दिल्लीवासियों का जीवनस्तर ऊपर उठाने में लगातार जुटी रहीं। शीला दीक्षित जब मुख्यमंत्री थीं, तो एक समय ऐसा भी था, जब केंद्र में विपक्षी दल भाजपा की सरकार थी, लेकिन उस समय भी उन्होंने दिल्ली के विकास का खाका बनाया और उसे तत्कालीन उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के सहयोग से अंजाम तक पहुंचाया। दिल्ली में मेट्रो सेवा की शुरुआत शीला दीक्षित और तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के बीच के बेहतर समन्वय की देन है, जिसने दिल्ली को एक आधुनिक शहर के रूप में पहचान दिलाई।

    राष्ट्रमंडल खेलों का किया सफल आयोजन

    राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के समय वह एक कुशल प्रबंधक के रूप में भी नजर आईं। तय समय में सभी बड़ी परियोजनाओं को पूरा करवाकर और खेलों के सफल आयोजन कर उन्होंने दिखा दिया कि वह एक बेहतर प्रशासक के साथ ही बेहतर प्रबंधक भी थीं। इन खेलों के सफल आयोजन ने दिल्ली को दुनिया के खेल के नक्शे पर काफी ऊंचे पायदान पर पहुंचा दिया।

    दिल्ली में यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए उन्होंने न केवल फ्लाईओवरों का संजाल बिछाया, बल्कि बस रैपिड ट्रांजिट (बीआरटी) कॉरिडोर जैसे प्रयोग भी किए। सिग्नेचर ब्रिज की परिकल्पना भी शीला दीक्षित ने की थी।

    करीब 70 फ्लाईओवर बनवाए

    शीला दीक्षित ने करीब 70 फ्लाईओवर बनवाए। इनमें 22 फ्लाईओवर राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान बनाए गए। जिन फ्लाईओवरों पर घंटों जाम लगता था, उन्हें सिग्नल फ्री कराया। एम्स, मुनीरिका, आईआईटी, नारायणा, अप्सरा बार्डर, गाजीपुर लालबत्ती, श्याल लाल कालेज चौक, पीरागढ़ी चौक, गोकलपुर- मीत नगर कुछ ऐसे फ्लाइओवर हैं, जिनके कारण दिल्ली में लगने वाले जाम से दिल्ली की जनता को बड़ी निजात मिली। बाहरी रिंग रोड पर विकासपुरी से वजीराबाद तक 22 किमी तक सिग्नल फ्री किए जाने की योजना को उन्हीं के समय मंजूरी दी गई और काम शुरू किया गया।

    एसी बसों का परिचालन

    2007 में सड़क हादसों के कारण ब्लू लाइन बसों को किलर लाइन कहा जाने लगा था। इसी वजह से ब्लू लाइन बसों को सड़क से हटाया गया। साथ ही वर्ष 2010 के राष्ट्रमंडल खेल के मद्देनजर दिल्ली में लो फ्लोर एसी और नान एसी बसों का परिचालन शुरू किया गया। तब सरकार ने 6600 लो फ्लोर बसें खरीदने की योजना बनाई थी।

    बिजली का निजीकरण

    दिल्ली में बिजली कटौती बड़ी समस्या थी। इसलिए 2002 में उन्होंने इसके निजीकरण का फैसला लिया। बिजली वितरण की जिम्मेदारी दो निजी कंपनियों को दी गई।

    भागीदारी योजना की शुरुआत

    शीला दीक्षित ने वर्ष 2003 में भागीदारी योजना शुरू की थी। इसका मकसद सत्ता में आम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना था। इसके तहत मार्केट, औद्योगिक एसोसिएशन, आरडब्ल्यूए (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) को इससे जोड़ा गया।

    अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने की पहल

    दीक्षित ने दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने की पहल की थी और 895 कॉलोनियों को प्रोविजनल प्रमाणपत्र बंटवाए थे। इसी के बाद इन कॉलोनियों में सड़क, पानी और सीवर लाइन के रूप में विकास शुरू हुआ।

    बड़े अस्पतालों का निर्माण

    पूर्व सीएम ने यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस), दो सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान सहित कई अस्पतालों का निर्माण कराया था। लीवर की बीमारियों के इलाज में आईएलबीएस देश नहीं, बल्कि दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ है।