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    Scindia Dynasty: आखिर क्या है सिंधिया घराने का दिल्ली से नाता, जानने के लिए पढ़िए पूरी स्टोरी

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Sun, 15 Mar 2020 12:43 AM (IST)

    Scindia Dynasty दिल्ली परिवहन निगम का कनॉट प्लेस में स्थित कार्यालय आज भी सिंधिया हाउस ही कहलाता है।

    Scindia Dynasty: आखिर क्या है सिंधिया घराने का दिल्ली से नाता, जानने के लिए पढ़िए पूरी स्टोरी

    नई दिल्ली [नलिन चौहान]। Scindia Dynasty: देश में हाल के दिनों में हुई राजनीतिक गतिविधियों के कारण सिंधिया परिवार सुर्खियों में है। अगर इतिहास में झांके तो पता चलता है कि अंग्रेज कंपनी बहादुर ने वर्ष 1830 में पटपड़गंज की लड़ाई में सिंधिया राजवंश की सेना को हराकर ही दिल्ली पर कब्जा जमाया था। इस तरह सिंधिया घराना और दिल्ली का इतिहास एक-दूसरे से गुंथा हुआ है। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों पर सिंधिया परिवार की उपस्थिति आज भी नजर आती है। दिल्ली में सिरेमिक (मिट्टी के बर्तन) उद्योग का आरंभ वर्ष 1914 में दिल्ली पॉटरी वक्र्स की स्थापना के साथ हुआ। फिर वर्ष 1923 में सिंधिया या ग्वालियर पॉटरी वक्र्स की शुरुआत हुई। दूसरे विश्व युद्ध में इस उद्योग की इकाइयों की संख्या में इजाफा हुआ और उत्पादन में विविधता बढ़ने के साथ वृद्धि हुई।

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    कारीगरों को नया स्थान उपलब्ध कराने के लिए पॉटरी वक्र्स की शुरुआत

    1957 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सांसद के रूप में संसद पहुंचने वाली विजयाराजे सिंधिया ने इस विषय पर अपनी आत्मकथा में लिखा है कि माधोराव सिंधिया ने ग्वालियर पॉटरी शुरू कर स्वयं के उद्योग स्थापित न करने के अपने नियम को तोड़ा। उन्होंने ऐसा निर्णय इसलिए किया, क्योंकि वे गांवों के पारंपरिक कारीगरों को उनके उत्पाद की बिक्री के लिए एक नया स्थान उपलब्ध करवाना चाहते थे। यह रियासत के राजा की दूरदर्शिता और मानवीय पक्ष को दर्शाता है। उन दिनों तीस एकड़ के भूखंड वाली यह फैक्टरी, नई दिल्ली के दक्षिण में लगभग दस मील की दूरी पर स्थित थी।

    दिल्ली में सिंधिया की बेशकीमती जमीन

    आज भी सरोजनी नगर के लेखा विहार में सिंधिया पॉटरिज कंपाउंड है, जिसकी बाईं ओर सरोजनी नगर बाजार है तो दाईं ओर अफ्रीका एवेन्यू की सड़क, जबकि इसका प्रवेश द्वार रिंग रोड की तरफ है। सिंधिया पॉटरी के नाम से मशहूर और करीब 40  एकड़ में फैले सिंधिया परिवार की यह जमीन बेशकीमती है। इसे लेकर अब न्यायालय में पारिवारिक संपत्ति भी विवाद चल रहा है।

    आधुनिक दिल्ली में बस सेवा का प्रारंभ बहुत साधारण रूप में हुआ था। उस समय कुछ निजी वाहन-संचालकों ने कुछ रास्तों पर बसें चलाना शुरू किया। वर्ष 1940 में ग्वालियर एंड नार्दर्न इंडिया ट्रांसपोर्ट कंपनी को दिल्ली में बसें चलाने का परमिट दिया गया। फिर 14 मई, 1948 को भारत सरकार ने सिंधिया की कंपनी से ही दिल्ली की शहरी बस सेवाओं को अपने अधिकार में ले लिया और परिवहन मंत्रालय को सीधे नियंत्रण में लेकर दिल्ली ट्रांसपोर्ट सर्विसेज के तहत उसे दो वर्ष चलाया।

    उल्लेखनीय है कि वर्ष 1921 में ग्वालियर एंड नार्दर्न इंडिया ट्रांसपोर्ट कंपनी 19 लाख रुपये की पूंजी निवेश के साथ से शुरू की गई थी, जबकि वर्ष 1925 के बाद ग्वालियर दरबार ने राज्य में मोटर-लॉरी सेवाओं के बेहतरप्रबंधन के लिए कंपनी का कामकाज अपने हाथ में ले लिया था। तब यह कंपनी ग्वालियर रियासत के साथ-साथ कुछ पड़ोसी राज्यों की परिवहन जरूरतों को भी पूरा करती थी।

    दिल्ली परिवहन निगम का कनॉट प्लेस में स्थित कार्यालय आज भी सिंधिया हाउस ही कहलाता है। प्रसिद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके ठेकेदार दादा सुजान सिंह ने अपने लिए वेंगर्स से लेकर अमेरिकन एक्सप्रेस तक का कनॉट प्लेस का एक पूरा ब्लॉक बनवाया। उन दिनों यह सुजान सिंह ब्लॉक कहलाता था। इतना ही नहीं, उन्होंने ही रीगल बिल्डिंग, नरेंद्र प्लेस, जंतर मंतर के पास सिंधिया हाउस बनाया। ये सब उनकी निजी संपत्तियां थीं। अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड अपनी पुस्तक ‘सीन्स फ्रॉम ए राइटर्स लाइफ’ में बीसवीं सदी के चौथे दशक की दिल्ली के बारे में लिखा है कि उन्होंने कनॉट सर्कस के सामने एक अपार्टमेंट वाली इमारत सिंधिया हाउस में एक फ्लैट ले लिया था। यह मुझे पूरी तरह से माफिक था, क्योंकि यहां से कुछ ही मिनटों की दूरी पर सिनेमा घर, किताबों की दुकानें और रेस्त्रां थे।

    27 भवनों के सरकारी अधिग्रहण में सिंधिया हाउस भी

    महाराज माधोराव ने दिल्ली के सिविल लाइन क्षेत्र में अपना तीसरा घर ग्वालियर हाउस, 37, राजपुर रोड पर बनवाया। इसके मूल में वर्ष 1911 में अंग्रेजों के दिल्ली दरबार में कोलकाता (पहले कलकत्ता) से राजधानी के दिल्ली स्थानांतरण की घोषणा थी। जिसके बाद अंग्रेज सरकार ने सभी राजा-रजवाड़ों को दिल्ली में अचल संपत्ति लेने का आदेश दिया था। उसमें भी विशेष कर राजपूताना और मध्य भारत के राज प्रमुखों से यह बात कही गई थी। अंग्रेजों के राज में ग्वालियर रियासत को हैदराबाद, मैसूर, कश्मीर और बड़ौदा को सबसे अधिक 21 तोपों की सलामी की पात्रता मिली हुई थी।

    उस दौर में इंडिया गेट से हटकर सिविल लाइंस इलाके में, ग्वालियर, जामनगर, कोल्हापुर, नाभा, सिरोही और उदयपुर रियासतों ने अपने भवन निर्मित किए थे। 25 अगस्त, 1948 को संविधान सभा में तारांकित प्रश्न संख्या 470 के उत्तर में नरहर विष्णु गाडगिल ने बताया था कि दिल्ली में रियासतों के कुल 27 भवन हैं, जिसमें से भारत सरकार ने 11 इमारतों का सरकारी कार्यालय या आवास के रूप में उपयोग के लिए अधिग्रहण किया है। इन 27 भवनों में ग्वालियर हाउस भी शामिल था।

    37, राजपुर रोड के इसी बंगले में रहता था राज परिवार

    वरिष्ठ अंग्रेजी पत्रकार कूमी कपूर ने अपनी पुस्तक द इमरजेंसी : ए पर्सनल हिस्ट्री बॉय में तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौर से जुड़ी इसी भवन की कहानी लिखी है। पुस्तक के अनुसार सरकार ने उनके (विजयाराजे सिंधिया) बैंक खातों को फ्रीज कर दिया। आयकर अधिकारियों ने ग्वालियर रियासत की दिल्ली, पुणे, मुंबई और ग्वालियर में सभी संपत्तियों पर छापा मारा। अधिकारियों ने दिल्ली में 37, राजपुर रोड के बंगले, जहां पर राज परिवार रहता था को अधिग्रहित कर लिया था। इतना ही नहीं, तब इस इमारत को बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन की निगरानी से जुड़े अधिकारियों को आवंटित कर दिया गया। तब विजया राजे सिंधिया तिहाड़ जेल में भी कैद रहीं। आधुनिक भारतीय संसदीय इतिहास में विजयाराजे सिंधिया अपने राजनीतिक जीवन में सात बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा की सदस्य रहीं, जो एक महिला नेता के नाते रिकॉर्ड है।

    (लेखक दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी हैं)