नाबालिग से शारीरिक संबंध को HC ने माना रेप, सहमति के तर्क को किया खारिज
हाई कोर्ट ने कहा कि अगर लड़की की सहमति भी थी तो भी उसकी उम्र 16 साल से कम थी। ऐसी स्थिति में सहमति के कोई मायने नहीं रह जाते।
नई दिल्ली (जेएनएन)। दुष्कर्म के दोषी को लेकर 7 साल कैद की कैद का फैसला सुनाई हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म पीड़िता की उम्र पता लगाने के लिए स्कूल में लिखी तारीख ही पहला सुबूत है, जबकि बोन एज टेस्ट अंतिम उपाया है।
आरोपी का तर्क खारिज
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने आरोपी युवक की इस दलील को खारिज कर दिया कि लड़की ने अपनी मर्जी से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। कोर्ट ने तर्क दिया कि 16 साल से कम उम्र की लड़की की रजामंदी के कोई मायने नहीं हैं। इसी के साथ कोर्ट ने स्कूल के सर्टिफिकेट को दुष्कर्म पीड़िता की उम्र का पैमाना मान लिया।
यह है मामला
नंदनगरी इलाके में एक शख्स ने 25 दिसंबर, 1997 को अपनी बेटी की गुमशुदुगी की शिकायत दर्ज कराई थी। वहीं, पिता ने अपनी बेटी के साथ थाने में आकर 27 दिसंबर को उसके साथ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था।
दर्ज शिकायत के मुताबिक, युवक ने पहले लड़की का अपहरण और फिर दुष्कर्म को अंजाम दिया। लड़की के मुताबिक, आरोपी ने चाकू की नोक पर उसे अगवा किया और फिर उसके साथ दो दिन दुष्कर्म किया गया।
लड़की ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में भी कहा कि युवक ने उसकी मर्जी के खिलाफ उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए गए। वहीं, कोर्ट ने आरोपी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि लड़की की सहमति थी और उसकी उम्र 16 साल से ऊपर थी।
कोर्ट का तर्क
हाई कोर्ट ने कहा कि अगर लड़की की सहमति भी थी तो भी उसकी उम्र 16 साल से कम थी। ऐसी स्थिति में सहमति के कोई मायने नहीं रह जाते।
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