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    महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं सावित्री देवी डालमिया

    Updated: Sat, 05 Apr 2025 03:00 AM (IST)

    साबो यानि सावित्री देवी डालमिया (साबो) शिक्षा प्रसार और महिला सशक्तिकरण की एक सशक्त पक्षधर ही नहीं अपितु सक्रिय योगदानकर्ता भी थीं। उन्होंने अपने जीवन को समाज में शिक्षा के प्रसार और महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था । उनका यह दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा ही वह माध्यम है जो समाज को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है।

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    सावित्री देवी डालमिया शिक्षा प्रसार और महिला सशक्तिकरण की एक सशक्त पक्षधर ही नहीं अपितु सक्रिय योगदानकर्ता भी थीं।

     वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में स्थित सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन शिक्षा और नवाचार का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह भवन विज्ञान संकाय के विभिन्न विभागों, जैसे भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित और भूविज्ञान के लिए एक अभिन्न अंग है। इसमें अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं और अध्ययन कक्ष हैं, जहां छात्र न केवल अपनी शिक्षा पूरी करते हैं बल्कि विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज और अनुसंधान कार्यों में भी संलग्न रहते हैं।

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    इस महत् कार्य को साकार करने वाली शख्सियत का नाम है सावित्री देवी डालमिया (साबो)। सावित्री देवी एक ऐसी महिला जो अपनी मृदुल स्वभाव और दूरदर्शिता के लिए जानी जाती हैं, जिन्होंने समाज को अविस्मरणीय स्तर पर प्रभावित किया। उनका जन्म दिसंबर 1934 में पन्नालाल जी कनोडिया के घर कचौरी गली, वाराणसी में उनके पारिवारिक घर में हुआ था और उन्होंने वास्तव में दिखाया कि सहज और समर्पित होने का क्या मतलब है।

    छोटी उम्र से ही सावित्री देवी (साबो) ने बनारस की परंपराओं को अपनाया। उन्होंने बनारसी कपड़े सिलने की कला सीखी और जटिल सुई के काम में कुशल बन गई। लेकिन यह केवल उनके शिल्प के बारे में नहीं था; उन्हें पढ़ने में सुकून मिलता था। पुस्तकों ने उनके लिए नई दुनिया खोली जिससे उन्हें विचारों और सपनों का पता लगाने का मौका मिला। पढ़ना उनके लिए प्रेरणा का स्रोत था। सावित्री जी का गंगा से गहरा नाता था। इसके पानी में तैरना केवल एक मजेदार गतिविधि नहीं थी; यह आध्यात्मिक लगता था और शहर के साथ उनके संबंधों को गहरा करता था। बनारस और इसका कालातीत आकर्षण उनके व्यक्तित्व का एक बड़ा हिस्सा बन गया।

    साबो यानि सावित्री देवी डालमिया (साबो) शिक्षा प्रसार और महिला सशक्तिकरण की एक सशक्त पक्षधर ही नहीं अपितु सक्रिय योगदानकर्ता भी थीं। उन्होंने अपने जीवन को समाज में शिक्षा के प्रसार और महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था । उनका यह दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा ही वह माध्यम है जो समाज को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। उनके इसी सपने को साकार करने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन की स्थापना की गई, जो आज भी हजारों छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है।

    सावित्री देवी डालमिया (साबो) का मानना था कि महिलाओं की शिक्षा से पूरे समाज का विकास संभव होता है। उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा को एक प्रभावी साधन के रूप में अपनाया और इसे व्यापक स्तर पर बढ़ावा दिया। उनके योगदान से न केवल महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर बढ़े बल्कि समाज में महिलाओं के लिए नए अवसरों के द्वार भी खुले।

    भवन की वास्तुकला एवं सुविधाएं

    सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन आधुनिक वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। इसकी भव्यता केवल इसकी संरचना में ही नहीं, बल्कि इसके उद्देश्यों में भी निहित है। यहाँ मौजूद प्रयोगशालाएँ, सेमिनार हॉल और शोध केंद्र वैज्ञानिक अन्वेषण और नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं। यह भवन छात्रों को न केवल विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि शोध कार्यों को भी बढ़ावा देता है।

    महिलाओं के लिए शिक्षा का प्रकाशस्तंभ

    सावित्री देवी डालमिया(साबो) का जीवन महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के प्रति समर्पित था। उनके सम्मान में स्थापित यह भवन उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने का कार्य करता है। सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन न केवल छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि एक ऐसा मंच भी उपलब्ध कराता है जहां युवा वैज्ञानिक अपने ज्ञान और शोध कार्यों के माध्यम से दुनिया में परिवर्तन ला सकते हैं।