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    Same Gender Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के विरुद्ध संत समिति, प्रकृति और संस्कृति के बताया खिलाफ

    By Nimish HemantEdited By: Geetarjun
    Updated: Wed, 26 Apr 2023 12:02 AM (IST)

    Same Gender Marriage समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच अखिल भारतीय संत समिति ने अप्राकृतिक संबंधों को प्रकृति देश समाज संस्कृति व धर्म विरुद्ध बताते हुए विरोध दर्ज कराया है।

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    समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के विरुद्ध संत समिति, प्रकृति और संस्कृति के बताया खिलाफ

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच अखिल भारतीय संत समिति ने अप्राकृतिक संबंधों को प्रकृति, देश, समाज, संस्कृति व धर्म विरुद्ध बताते हुए विरोध दर्ज कराया है। समिति के महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि भारत भोग भूमि नहीं, अपितु कर्म भूमि है, इसलिए भारतीय संस्कृति का समग्र विचार और समाज में अध्ययन कराए बगैर सुनवाई ठीक नहीं है।

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    इसपर पुनर्विचार होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर कोर्ट से फैसला समलैंगिक संबंधों के पक्ष में आता है तो इसके विरुद्ध कानून बनाने के लिए संतों द्वारा संसद और सांसदों पर दबाव डाला जाएगा। समाज के साथ संत सड़कों पर भी उतरेंगे।

    मामले की तुलना श्रीराम से करना सही नहीं

    स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने सुनवाई के दौरान कोर्ट द्वारा मामले की तुलना श्रीराम जन्म भूमि मामले से करने को हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाला बताया है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि हिंदुओं के आराध्य प्रभु राम, जिनके जन्मभूमि के मंदिर के टूटने के बाद लगातार संघर्ष हुआ। असंख्य लोगों ने बलिदान दिया।

    राम भक्तों ने लड़ा मुकदमा

    राम भक्तों ने इस प्रकरण को लेकर संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत स्वतंत्र भारत में भी निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा लड़ा, उसके फलस्वरूप राम जन्मभूमि मुक्त हुई है। ऐसे में उक्त मामले को समलैंगिक विवाह मामले के समकक्ष खड़ा करना देश के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के 100 करोड़ से ज्यादा सनातन धर्मावलंबियों का अपमान नहीं तो क्या है?

    उन्होंने कहा कि अखाड़ा परिषद समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध कर रहा है। इस देश के हिंदू संगठन और अखिल भारतीय संत समिति विरोध कर रही है, क्योंकि सनातन हिंदू धर्म में विवाह दो शरीरों के सुख भोगने का साधन मात्र नहीं, बल्कि संस्कार है। विवाह संतानोत्पत्ति के लिए होता है। ऐसे में देश में अशांति पैदा करने की कोशिशें नहीं होनी चाहिए।