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    दिल्ली के निजी स्कूलों में दाखिले के लिए अभिभावकों का नया पैंतरा, बच्चे गोद देकर लूटी जा रहीं EWS सीटें

    Updated: Sat, 07 Jun 2025 06:00 PM (IST)

    दिल्ली में RTE के तहत गरीब बच्चों के दाखिले में गड़बड़ी सामने आई है। कुछ माता-पिता ने EWS दाखिले के लिए शपथपत्र से रिश्तेदारों को कानूनी अभिभावक बनाया। शिक्षा निदेशालय ने बिना जाँच के दाखिले कर दिए क्योंकि कानून में गोद लेने के नियम स्पष्ट नहीं हैं। विशेषज्ञों ने CWC से जांच कराने और नियमों में बदलाव करने की सलाह दी है ताकि फ़र्ज़ीवाड़े को रोका जा सके।

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    बच्चे गोद देकर लूटी जा रहीं निजी स्कूलों में ईडब्ल्यूएस सीटें।

    रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। दिल्ली में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त दाखिले का जो सपना दिखाया गया था, वह अब कागजों के खेल में तब्दील होता नजर आ रहा है।

    दैनिक जागरण को दो ऐसे मामले मिले हैं जिनमें बच्चों के वास्तविक माता-पिता ने निजी स्कूलों में केवल ईडब्ल्यूएस दाखिले के लिए एक शपथपत्र और आधार कार्ड के बल पर ताऊ और दादी को कानूनी अभिभावक घोषित करा लिया। ताकि उन्हें इस श्रेणी के तहत विद्यार्थियों को मिलने वाले लाभ मिल सके और बच्चों का मुफ्त में दाखिला हो जाए।

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    इसमें एक दस्तावेज एसडीएम ऑफिस से हस्ताक्षरित हैं तो दूसरा गीता कॉलोनी स्थित तहसीलदार कार्यालय से। ये दस्तावेज बिना किसी बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) या अदालत के आदेश के बिना शिक्षा निदेशालय में मान्य मान लिए गए। इसके आधार पर निदेशालय ने निजी स्कूलों में ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत बच्चों को सीट भी आवंटित कर दी है।

    बिना नोटरी की मुहर के शपथपत्र स्वीकृत

    इन शपथपत्र में स्पष्ट लिखा है कि कानूनी अभिभावक बच्चे की शिक्षा, भरण-पोषण और सभी खर्चों की जिम्मेदारी उठाएगा। इन पर न सिर्फ नोटरी की मुहर लगी है, बल्कि एसडीएम के हस्ताक्षर और सील भी मौजूद हैं। कोई बाल कल्याण समिति की अनुमति नहीं, न ही किसी अदालत की वैध गोद प्रक्रिया हैं, फिर भी इन्हें ही निदेशालय ने अंतिम दस्तावेज मानकर स्कूलों आवंटित कर स्कूलों को दाखिला देने को कहा है।

    शिक्षा निदेशालय ने वर्ष 2023 में ये माना था कि दाखिले की संभावना बढ़ाने के लिए अभिभावक कई बार एक ही बच्चे के नाम से अलग-अलग पते और नाम बदलकर कई आवेदन करते हैं। जिसके बाद निदेशालय ने आवेदन करते समय माता-पिता या अभिभावक का आधार नंबर भरना अनिवार्य किया था। लेकिन अब अभिभावक-परिवर्तन के इस नए लूपहोल ने सिस्टम की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

    पहला मामला

    शिक्षा निदेशालय ने साढ़े तीन वर्ष की बच्ची को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के नर्सरी में दाखिले के लिए आइपी एक्सटेंशन स्थित नेशनल विक्टर पब्लिक स्कूल आवंटित किया। बच्ची के माता-पिता ने 29 जनवरी 2025 को दाखिले के लिए आवेदन फार्म में भरा, ये फार्म बच्ची की दादी के नाम और उनके आधार नंबर से भरा। 

    दादी के आय प्रमाण पत्र में वार्षिक आय 270000 रुपये है। अब 22 अप्रैल 2025 को शिक्षा निदेशालय ने बच्ची के दस्तावेज के सत्यापन के दौरान संरक्षकता प्रमाण पत्र की कमी पाते हुए बच्ची का दाखिला रद कर दिया था और कहा कि अगर अभिभावक इस आदेश से संतुष्ट नहीं है तो आठ मई तक जिला प्रवेश निगरानी समिति में इसे चुनौती दे सकते हैं। बच्ची के माता-पिता ने इसके बाद पूर्वी गीता कालोनी स्थित पंजीकरण अधिकारी के कार्यालय से गोदनामें के कानूनी दस्तावेज लगाए हैं। इसमें पंजीकरण अधिकारी के हस्ताक्षर से बच्ची को एक शपथपत्र द्वारा दादी को गोद दे दिया गया।

    दूसरा मामला

    साढ़े तीन वर्ष के एक लड़के के मामले में उसके पिता ने अपने बड़े भाई यानी ताऊ को एक शपथपत्र से अपने बच्चे का कानूनी अभिभावक बनावा दिया और इसी के दम पर बच्चे को निजी स्कूल में ईडब्ल्यूएस की सीट मिल गई। यह शपथपत्र एसडीएम कार्यालय की सील और हस्ताक्षर के साथ जमा हुआ है। इस मामले में बच्चे के ताऊ ने अभी तक आय प्रमाण पत्र नहीं जमा किया है फिर भी शिक्षा निदेशालय ने उसे नेशनल विक्टर पब्लिक स्कूल में सीट आवंटित की है।

    ये है नियम

    1. आरटीई एक्ट, 2009 के तहत ईडबल्यूएस सीटों पर दाखिला उन बच्चों को दिया जाता है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर हैं, लेकिन साथ ही उनके दस्तावेजों की प्रमाणिकता न्यायिक प्रक्रिया से सुनिश्चित होनी चाहिए।
    2. संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अनुसार कोई भी संरक्षम कोर्ट या सीडबल्यूसी के आदेश के बिना वैध नहीं मानी जा सकती।

    बच्चे का अधिकार या अभिभावक का लाभ

    इन मामलों में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस दादी या ताऊ ने शपथपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, क्या वह सच में बच्चे की जिम्मेदारी उठा रहे हैं? क्या वे शिक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं? बाल अधिकार विशेषज्ञों के अनुसार यह बच्चों के अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। यह सिर्फ दाखिले के लिए एक कानूनी जुगाड़ है, जिसमें कोई सामाजिक या भावनात्मक जिम्मेदारी नहीं दिखती।

    वहीं, शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रक्रिया न सिर्फ आरटीई अधिनियम, 2009 की भावना के खिलाफ है, बल्कि दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम (डीएसईएआर), 1973 का भी उल्लंघन है। कानूनन, किसी बच्चे को गोद लेने या अभिभावक घोषित करने की प्रक्रिया केवल न्यायिक आदेश या सीडब्ल्यूसी की सिफारिश के बाद ही वैध मानी जाती है।

    शिक्षा निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, एसडीएम कार्यालय से मिलने वाला शपथपत्र अगर बिना गहन जांच के जारी हो रहा है, तो यह पूरी ईडब्ल्यूएस दाखिला प्रक्रिया को असफल बना सकता है। हमें इस पर दोहरी जांच प्रणाली लागू करनी चाहिए। पहली सामाजिक, दूसरी प्रशासनिक।

    वहीं, मामले में शिक्षा निदेशक वेदिता रेड्डी से जब ऐसे मामलों पर की गई कार्रवाई पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इस गंभीर मुद्दे पर शिक्षा निदेशालय की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। निदेशालय ने जब पूरी दाखिला प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाने के नाम पर आधार कार्ड अनिवार्य किया गया, तो इतनी बड़ी खामी की अनदेखी क्यों की जा रही है?

    शिक्षा विभाग की भूमिका संदेह के घेरे में

    शिक्षा निदेशालय की निजी स्कूलों में नर्सरी, केजी और पहली में ईडब्ल्यूएस सीटों की प्रक्रिया पूरी तरह आनलाइन और आधार आधारित है। लेकिन सिस्टम विद्यार्थियों के अभिभावकों की वैधता जांचने में असफल हो रहा है। 2023-24 के सत्र में भी ऐसे बहुत से आवेदन थे जिनमें माता-पिता की जगह अभिभावक का नाम था।

    सिस्टम पर खतरा है ये फर्जीवाड़ा

    शिक्षा निदेशालय ने ईडब्ल्यूएस दाखिले को पारदर्शी बनाने के लिए आनलाइन आवेदन, आधार लिंकिंग और ओटीपी सिस्टम शुरू किया था। लेकिन कानूनी शपथपत्र नामक रास्ता अब सिस्टम की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है।

    निदेशालय के कार्रवाई नियम

    निदेशालय के नियमों के तहत अगर उसकी जानकारी में ऐसे कोई मामले आते हैं जिसमें फर्जी या जालसाजी दस्तावेज जमा किए गए हैं तो निदेशालय दाखिला हो जाने के बाद भी तत्काल उन दाखिलों को रद कर सकता है। हाई कोर्ट भी ऐसे कई मामलों में पूर्व में संज्ञान ले चुका है।

    कौन कर सकता है दाखिला

    ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत पांच लाख तक की आय वाले अभिभावक ही दाखिले के लिए आवेदन कर सकते हैं। दाखिले के बाद उन्हें निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा, किताब, यूनिफार्म दी जाती है।

    शिक्षा विशेषज्ञों का सुझाव

    • शिक्षा निदेशालय सभी संरक्षकता दस्तावेज की जांच सीडब्ल्यूसी या कोर्ट ऑर्डर से कराए।
    • एसडीएम द्वारा हस्ताक्षरित किए गए शपथपत्र बिना वैध आदेश के अस्वीकार किए जाएं।
    • सभी दाखिलों की बाद में आडिट की जाए, ताकि गड़बड़ियों पर कार्रवाई हो सके।
    • निदेशालय की ईडब्ल्यूएस दाखिले के दिशानिर्देशों में सातवां प्वाइंट संशोधित हो। बच्चों का आधार भी अनिवार्य हो।

    सरकार की मंशा तो यह थी कि हर वंचित वर्ग का बच्चा शिक्षा से जुड़ सके, लेकिन मौजूदा हालात यह बता रहे हैं कि कुछ लोगों ने सिस्टम को ही अपने हक में झुका लिया है। शपथपत्र के जरिए बनावटी अभिभावक बनना दाखिले के लिए अब एक कानूनी शार्टकट बन गया है। ऐसे हजारों आवेदन हर वर्ष किए जाते हैं, जिनमें अभिभावक जानबूझकर कानूनी अभिभावक के नाम पर रिश्तेदारों को आगे कर फर्जी आधार से आवेदन करते हैं, ताकि चयन की संभावना बढ़ाई जा सके और ईडब्ल्यूएस कोटे का लाभ मिल सके। इन मामलों में जो दस्तावेज सामने आए हैं, वे केवल एक कानूनी दिखावे की तरह इस्तेमाल किए गए हैं। न कोई जांच, न कोई सरकारी सत्यापन। जरूरत है कि अब एसडीएम स्तर पर जारी ऐसे दस्तावेज की भी स्वतंत्र जांच हो और स्कूलों को साफ दिशा-निर्देश मिलें कि शपथपत्र के आधार पर ही किसी को वैध अभिभावक न माना जाए, जब तक कि उसकी पुष्टि विधिक प्राधिकरण से न हो। - भरत अरोड़ा, अध्यक्ष, एक्शन कमेटी आफ अनएडेड प्राइवेट स्कूल