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    जेएनयू में हो रही जनता के पैसे की बर्बादी, अब रोकने का समय: तुली

    राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राष्ट्रीय प्रचार टोली के सदस्य राजीव तुली कहते हैं कि जेएनयू में जनता के पैसे की बर्बादी हो रही है। इसे रोकने का समय आ गया है। यह संस्था सफेद हाथी बनकर देश के अनमोल संसाधनों को उड़ा रही है।

    By Prateek KumarEdited By: Updated: Mon, 18 Apr 2022 06:10 AM (IST)
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    आंदोलनकारियों और अंसतुष्ट तत्वों को संवारने का मैदान बन गया जेएनयू।

    नई दिल्ली [राहुल चौहान]। रामनवमी के दिन बवाल होने बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) एक बार फिर सुर्खियों में है। आए दिन होने वाले विवादों को लेकर चर्चा में आने के कारण अब जेएनयू के एक विफल संस्थान होने की बातें कहीं जाने लगी हैं। इसको लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राष्ट्रीय प्रचार टोली के सदस्य राजीव तुली कहते हैं कि जेएनयू में जनता के पैसे की बर्बादी हो रही है। इसे रोकने का समय आ गया है। यह संस्था सफेद हाथी बनकर देश के अनमोल संसाधनों को उड़ा रही है।

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    यह शिक्षा के मंदिर का उदाहरण न होकर आंदोलनकारियों और लंपट और असंतुष्ट तत्वों को संवारने का मैदान बन गया है। उन्होंने कहा कि संस्थागत पतन के इस लोकाचार को बदलने का समय आ गया है। जेएनयू के संस्थापकों ने परिकल्पना की थी, वह छात्रों में राष्ट्रीय एकता, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की भावना को आत्मसात करेगा। लेकिन, छात्रों में प्रजातांत्रिक मूल्यों और राष्ट्रवाद की बुनियाद मजबूत होने के बजाय राष्ट्रहित के किसी भी मामले में सवाल उठाने की प्रवृत्ति आ गई।

    राजीव तुली ने आगे कहा कि धर्मनिरपेक्ष होने की बात तो दूर यह संस्था सबसे अधिक राजनीतिकरण वाला परिसर बन गया है, जहां सब कुछ वामपंथी और गैर वामपंथी विचारधाराओं में रंगा हुआ है। छात्र उपस्थिति मानदंड, छात्रावास के मानदंडों और प्रशासनिक निर्देशों की धज्जियां उड़ाने के लिए स्वतंत्र हैं, क्योंकि उन्हें किसी भी अधिकार या कानून के शासन का तिरस्कार करने के लिए तैयार किया जाता है। वे हिंसक या अन्य किसी भी माध्यम का उपयोग कर सकते हैं।

    उनके पास एक बेलगाम बोलने और अभिव्यक्ति का अधिकार है, जिसे वे पवित्र होने का दावा करते हैं। इस अधिकार का इस्तेमाल सरकार का विरोध करने की आड़ में राष्ट्र-राज्य पर सवाल उठाने के लिए किया जाता है। तुली आगे कहते हैं कि समाजवाद का उद्देश्य संसाधनों का समान वितरण करना है। जेएनयू में जनता के पैसे से औसतन प्रतिदिन 1.1 करोड़ रुपये खर्च होते हैं।

    शिक्षा की इकाई लागत सात लाख 15 हजार 716 रुपये है, जो बहुत अधिक है। 2019-20 के वित्तीय वर्ष में, जेएनयू को अनुदान और सब्सिडी के रूप में केंद्र सरकार से 411.49 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। मजाक में कहा जाता है कि अगर आप वर्ग शोषण की बात करना चाहते हैं तो आप जेएनयू आते हैं। लेकिन अगर आप जनता के पैसे का शोषण देखना चाहते हैं, तो आप यहां एक छात्र के रूप में शामिल होते हैं।

    उल्लेखनीय है कि हाल ही में लोकसभा में जेएनयू के गठन पर चर्चा के दौरान सांसद भूषण गुप्ता ने कहा था कि जेएनयू को वैज्ञानिक-समाजवाद की भावना पैदा करनी चाहिए। साथ ही नेक विचारों को ध्यान में रखते हुए समाज के कमजोर वर्गों के छात्रों तक पहुंच प्रदान करनी चाहिए। यह एक ऐसा विश्वविद्यालय था जिसे तीसरी दुनिया का हार्वर्ड और सामाजिक विज्ञान और अनुसंधान के लिए एक आदर्श संस्थान माना जाता था। लेकिन, यह अपनी स्थापना के उद्देश्य में सफल नहीं हो सका है। जबकि केंद्र सरकार 1969 में विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से अनुदान के रूप में बड़े पैमाने पर सब्सिडी दे रही है।