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    'हम पड़ोसियों को तंग नहीं करते लेकिन दंड देना राजा का कर्तव्य', पहलगाम हमले पर बोले मोहन भागवत

    Updated: Sat, 26 Apr 2025 06:26 PM (IST)

    RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदू मैनिफेस्टो और शास्त्रार्थ पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत की शास्त्रार्थ परंपरा सत्य को सहमति से स्थापित करती है और हिंदू मैनिफेस्टो इसी उद्देश्य से प्रस्तावित है। भागवत ने यह भी कहा कि अहिंसा हमारा स्वभाव है लेकिन आततायियों को सबक सिखाना भी धर्म है। पड़ोसियों को तंग नहीं करते लेकिन उपद्रव करने वालों को दंड देना राजा का कर्तव्य है।

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    मोहन भागवत ने हिंदू मैनिफेस्टो और शास्त्रार्थ पर अपने विचार रखे।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कश्मीर के पुलवामा में पर्यटकों पर आतंकियों के बर्बर हमले के बाद पाकिस्तान को निर्णायक सबक सिखाने की ओर बढ़ रही मोदी सरकार के साथ मजबूती से खड़े राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आततायियों से मार न खाना तथा गुंदागर्दी करने वालों को सबक सिखाना धर्म है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम कभी भी अपने पड़ोसियों का अपमान या हानि नहीं करते। बावजूद इसके अगर कोई बुराई पर उतर आए, तो राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना और राजा यह करेगा।

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    उन्होंने गीता का उल्लेख करते हुए कहा कि गीता में अहिंसा का उपदेश इसलिए है कि अर्जुन लड़े और मारे, क्योंकि उनके सामने ऐसे लोग थे, जिनका दूसरा इलाज नहीं था। यह अहिंसा की संतुलन रखने वाली भूमिका है, जिसे पाश्चात्य तरीके से नहीं समझा जा सकता है। वह प्रधानमंत्री संग्रहालय में आयोजित समारोह में वर्ल्ड हिंदू कांग्रेस के प्रवर्तक स्वामी विज्ञानानंद की पुस्तक द हिंदू मेनिफेस्टो के विमोचन अवसर को संबोधित कर रहे थे। समारोह में पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवाने वाले पर्यटकों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 

    अहिंसा ही हमारा स्वभाव और मूल्य: भागवत

    भागवत ने कहा कि अहिंसा ही हमारा स्वभाव और मूल्य है, लेकिन हमारी अहिंसा लोगों को बदलने और अहिंसक बनाने के लिए है। कुछ लोग तो हमारा उदाहरण लेकर बन जाएंगे, लेकिन कुछ लोग नहीं बनेंगे। वह इतने बिगड़े रहेंगे कि उपद्रव करेंगे। तो उसके लिए क्या करना है? जैसे कि रावण के मामले में हुआ। जब यह सिद्ध हुआ कि रावण शिव भक्त, वेदों का ज्ञाता व उत्तम सरकार चलाने वाला है। अच्छा आदमी बनने के लिए जो -जो चाहिए। वह सब है। लेकिन उसने जिस शरीर, मन और बुद्धि को स्वीकार किया। वो ऐसा है जो अच्छाई को आने नहीं दे रहा है। तो उसको अच्छा बनना है तो एक ही उपाय है कि उसके शरीर, मन, बुद्धि को समाप्त करके उसे दूसरे शरीर, मन और बुद्धि में लेकर आया जाए। भगवान ने उसका यह सम्मान किया। उसे हिंसा नहीं अहिंसा कहते हैं। 

     संतुलन वाला मार्ग भारत ही दिखा सकता है: भागवत

    संघ प्रमुख ने हिंदू समाज को हिंदू धर्म समझने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि हम विश्व को ज्ञान देने वाले हैं। ऐसा आश्वस्त होकर हमने हजार-1500 साल तक भाष्य की उपेक्षा की, जिसके चलते अज्ञानता में जातिवाद समेत तमाम बुराईयों को सुविधा व स्वार्थ अनुसार वेदों का उल्लेख कर बचाव करने लग गए।

    उन्होंने पुस्तक को भारत सहित पूरे विश्व को काल सुसंगत जीवन आचरण मार्ग रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि दुनियाभर के चिंतक कह रहे हैं कि भारत से उन्हें जीवन जीने का संतुलन वाला नया रास्ता चाहिए। विश्व में 2000 वर्ष से आस्तिक, नास्तिक, जड़वादी जैसे तमाम असफल प्रयोग हुए। जिससे सुविधाएं तो मिली, भौतिक सुख सुविधा बढ़ी, लेकिन दुख भी बढ़ा। पर्यावरण व विकास में टकराव बढ़े। संतुलन वाला मार्ग भारत ही दिखा सकता है। 

    डीयू के कुलपति प्रो योगेश सिंह भी रहे मौजूद

    विज्ञानानंद ने बताया कि पुस्तक समृद्धि, शासन, अर्थ व न्याय के लिए धर्म के सिद्धांतों और वेदों, रामायण, महाभारत समेत तमाम शास्त्रों से आधुनिक काल का ज्ञान प्रस्तुत करता है। जिसमें आठ मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। समारोह को डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह व वाल्मीकि मंदिर के मुख्य पुजारी कृष्ण शाह विद्यार्थी ने भी संबोधित किया।